सम्पादकीय

Russia Ukraine War: सफेद कबूतरों को बचाना है...

Gulabi
3 March 2022 12:04 PM GMT
Russia Ukraine War: सफेद कबूतरों को बचाना है...
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रूस के प्रक्षेपास्त्रों की बौछार तथा लड़ाकू विमानों एवं टैंकों की गोलाबारी ने यूक्रेन के नीले आसमान को काले जहरीले धुएं के बादलों से भर दिया है
रूस के प्रक्षेपास्त्रों की बौछार तथा लड़ाकू विमानों एवं टैंकों की गोलाबारी ने यूक्रेन के नीले आसमान को काले जहरीले धुएं के बादलों से भर दिया है. जाहिर है कि इस धुएं के कसैलेपन से बेहाल सफेद कबूतर, जिन्हें हिन्दी में कपोत एवं अंग्रेजी में DOVE कहा जाता है, और जो पूरी दुनिया में शांति के प्रतीक (दूत भी) माने जाते हैं, बुरी तरह से हाल-बेहाल हैं. वे यूक्रेन को छोड़कर इत्मिनान की तलाश में पूरी दुनिया में उड़ानें भर रहे हैं, लेकिन किसी के भी प्रति वे आश्वस्त नहीं हैं. फिर भी, करूणा और याचना से भरी उनकी आंखें भारत से कुछ उम्मीद करती दिखाई पड़ रही हैं.
हम इसे इतिहास की हास्यास्पद विडंबना ही कहेंगे कि ईसाई धर्म में कपोत को शांति और प्रेम का दूत माना जाता है. कपोत को शांति के दूत के रूप में सन् 1949 में पेरिस में आयोजित द्वितीय वैश्विक शांति परिषद् की बैठक में स्वीकार किया गया था. कपोत का यह चित्र बनाने वाला महान चित्रकार था – पाब्लो पिकासो, जो था तो मूलतः स्पेन का, लेकिन उस समय वह फ्रांस में रह रहा था. और इस वैश्विक शांति सम्मेलन का आयोजन किया था उस समय के कम्यूनिस्टों ने.
अब रूस द्वारा यूक्रेन के कपोतों को बेहाल करने की घटना को इस आधार पर जांचिए-परखिये. आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे. रूस, जिसने आक्रमण किया है, कम्युनिस्ट राष्ट्र है. कम्युनिस्टों ने ही विश्व शांति सम्मेलन में इस कपोत को विश्व-शांति के रूप में स्वीकार किया था. रूस ने ऐसा नाटो संगठन के कारण किया, क्योंकि उसका पड़ोसी देश यूक्रेन, जो तीस साल पहले उसके ही शरीर का अंग था, अब उसके विरोधी खेमे में शामिल होने की बात कह रहा था. फ्रांस और स्पेन, ये दोनों इस नाटो संगठन के सदस्य हैं. क्या इससे आपको नहीं लगता कि वह शुभ कबूतर अभी कितना अधिक कन्फ्यूज्ड होगा. अपने साथ हुए धोखे और मजाक को लेकर वह कितना अधिक दुखी होगा.

यह सोचकर तो उसकी आत्मा कराह ही रही होगी कि उसकी इस बदहाली के लिए जिम्मेदार अधिकांश महत्वपूर्ण देशों का धर्मग्रंथ 'बाइबल' है. बाइबल में एक कथा है. कथा यह है कि पृथ्वी पर महा जल प्रलय आया. सब कुछ जलमग्न हो गया. जब देवता नूह को लगा कि अब शायद पृथ्वी पर पानी का जमाव घट गया होगा, तो इसकी खबर लेने के लिए उसने डोव को पृथ्वी पर भेजा. कुछ समय बाद यह सफेद कबूतर अपनी चोंच में जैतून की पत्ती लेकर नूह के पास लौटा. यह इस बात का प्रतीक था कि बाढ़ खत्म हो गई है, और पृथ्वी पर जीवन लौट आया है.

वही, कबूतर अब इस प्रतीक्षा में है कि यूक्रेन की धरती पर कब जीवन लौटकर आएगा. शायद जल्द ही, लेकिन काफी कुछ गुलामी के साथ. कभी-कभी व्यक्ति अनजाने में ही सही, लेकिन सत्य कथन कह जाता है. जब पाब्लो पिकासो द्वारा किये गये रेखांकन को विश्व शांति के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया, तो इससे उसे खुशी कम बल्कि आश्चर्य अधिक हुआ था. दरअसल, यह कारनामा उसके लेखक दोस्त आरागां ने कर दिखाया था. वह पिकासो के खजाने से यह चित्र ले गया था और देखते ही देखते यह चित्र पेरिस की हर दीवार पर टंग गया.
यह सब देखकर पिकासो ने कहा था कि "ये सब कबूतरों के बारे में कुछ नहीं जानते. कबूतर में कोमलता! इसके जैसा क्रूर प्राणी कोई नहीं है. मैंने खुद कुछ कबूतरों को एक कबूतरी को चोंच से मारते हुए देखा है. उन्होंने उसकी आँख फोड़ दी थी. भयानक ! क्या खूब शांति का प्रतीक है यह ! वाह !"
क्या पिकासो की कबूतरों के बारे में की गई यह भविष्यवाणी सही होती दिखाई नहीं पड़ रही है?
पाब्लो पिकासो दुनिया के एकमात्र ऐसे चित्रकार हैं, जिनके दो चित्रों को संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने लिए चुना. इनमें से एक है – गुएर्निका, जो युद्ध की विभीषीका को दर्शाता है. यह चित्र यूएनओ की सुरक्षा परिषद के सभाकक्ष के प्रवेश द्वार पर लगा है. शायद दुनिया में अमन-चैन के बारे में निर्णय लेने के लिए सभाकक्ष में जाने से पहले इस चित्र को देखकर वे विश्व को युद्ध की आग से बचा सकें. क्या इस चित्र का प्रभाव यूक्रेन में कपोतों को वापस बुला सकेगा ?
दूसरा चित्र श्वेत कबूतर का है, जिसे यूएनओ ने 'विश्व शांति दिवस' के लोगो (Logo) के लिए चुना.
चूंकि इस कबूतर को विश्व शांति के रूप में कम्युनिस्टों ने चुना था, इसलिए इसका अमेरिका में तो स्वागत होना ही नहीं था. सो नहीं हुआ. लेकिन जब फिलाडेल्फिया की 'अकादमी ऑफ फाइन आर्टस' ने पिकासो के उस नन्हें से मासूम चित्र को 'पेनेल मेमोरियल मेडल' देने की घोषणा की, तो यह कपोत उड़कर अमेरीका के कंगूरों में जा विराजा.
जेल से छूटने के बाद चीली के कवि पाब्लो नेरूदा ने सही कहा था कि 'पिकासो के कपोत ने अंतरिक्ष में उड़ान भर दी है. किसी भी दुष्ट बहेलिए का फंदा उसकी उड़ान को रोक नही सकता. शुभ्र श्वेत कपोत अब किसी पार्टी या देश की मिल्कियत नहीं रह गया है. सच्चे अर्थ में यह शांति का प्रतीक बन गया है.
इस प्रतीक-अर्थ को फिलहाल बहेलियो के फंदे का खतरा है. उसे इसका अर्थ लौटाना हम सबका दायित्व है, क्योंकि यह कबूतर हम सबका है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

डॉ॰ विजय अग्रवाल
पूर्व सिविल सेवा अधिकारी एवं प्रख्यात लेखक

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