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Russia Ukraine War: When it comes to nuclear attacks, we should put 'human interest' at the top
आशीष मेहता
Russia Ukraine Crisis :- कूटनीति (Diplomacy) उन शब्दों में से एक हैं जिनसे प्रेरित होकर विलक्षण नाटककार ऑस्कर वाइल्ड (Oscar Wilde) जैसे लोगों ने कई मशहूर कहावतें गढ़ी हैं. यह एक कला होती है जिसमें आप किसी और को आपका रुख अपनाने का मौका देते हैं. लोगों को नर्क में जाने के लिए कहने की वह कला जिसमें वह व्यक्ति पलटकर आपसे ही रास्ता भी पूछ बैठता है. इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि यह वो कला है जिसके जरिए मानवीय मूल्यों को किनारे करने को भी जायज ठहराया जा सकता है, जबकि आप रोज-रोज उन मूल्यों को तवज्जोह देने की बात करते हों.
हालांकि, ऐसा करना ज्यादा मुश्किल नहीं है, क्योंकि केवल शासन कला (Statecraft) के नाम पर इस तरह के मूल्यों के साथ-साथ तर्क करने की क्षमता और तथ्यों के प्रति आदर को हमेशा दरिकनार कर दिया जाता है. कूटनीति में 'राष्ट्रीय हित' के नाम पर इस दृष्टिकोण को और बढ़ावा दिया जा रहा है. इस शब्द की खूबी यह है कि इसका मतलब ठीक वही होता है जो आप बताना चाहते हैं. यह आमतौर पर इस आशय का संकेत होता है कि "हम कुछ गंभीर बात कर रहे हैं; कृपया अपनी चिंताओं और आदर्शवाद को एक तरफ छोड़ दें.
एक प्रमाणित सत्तावादी देश हमलावर है
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और इतिहास बदलने वाली इस घटना पर भारत के रुख को लेकर बहस – आधिकारिक स्तर पर और मीडिया में – कमोबेश इसी पैटर्न पर रही है. द्वितीय विश्व युद्ध से शीत युद्ध और USSR के विघटन तक हर घटना इतनी जटिल है कि अपने तर्क के आधार पर किसी भी पक्ष का समर्थन किया जा सकता है. इसलिए, जब से रूस ने पिछले सप्ताह यूक्रेन की सीमा पार की है, लोगों द्वारा कई अस्पष्ट रुख अपनाए गए हैं और उसके समर्थन में कई कहानियां भी गढ़ी गयीं है. हालांकि सभी इस मुद्दे पर तथ्यों की अनदेखी कर रहे हैं.
दुनिया के सबसे बड़े देश ने एक छोटे पड़ोसी देश पर आक्रमण कर उसके एक हिस्से पर कब्जा कर लिया है और उसने सीमावर्ती क्षेत्र में विद्रोह को भी बढ़ावा दिया है. एक प्रमाणित सत्तावादी देश हमलावर है और लोकतंत्र रक्षात्मक हो चुका है. हमलावर अप्रत्याशित रूप से प्रतिरोध का सामना कर रहा है और नागरिकों को मार रहा है. अपनी अर्थव्यवस्था का गला घोंटने वाले अभूतपूर्व प्रतिबंधों का सामना करते हुए, हमलावर ने N-शब्द का भी सहारा लिया है. ये अकाट्य तथ्य हैं.
यूक्रेन पर रूस के हमले ने ऐसी स्थितियां पैदा कर दी कि तटस्थता का पर्याय स्विट्जरलैंड भी अपने पुरानी परंपरा को ख़त्म कर वह कर बैठा जो उसने द्वितीय विश्व युद्ध में भी नहीं किया था. यानी कि उसने इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा. ऐसा उसने इसलिए किया क्योंकि यह एक ऐतिहासिक मोड़ है. लोकप्रिय इतिहासकार युवल नूह हरारी के अनुसार यूक्रेन में अगर कुछ दांव पर लगा है तो वह है मानव इतिहास की दिशा.
किसी भी स्थिति में युद्ध कोई विकल्प नहीं है
इस निर्णायक क्षण में, जवाहरलाल नेहरू को उचित श्रेय दिए बिना भारत गुटनिरपेक्षता के पदचिन्हों पर ही चल रहा है. हालांकि यदि किसी बड़े लक्ष्य को हासिल करना हो तो तटस्थ रहना पाप नहीं है. यह घोषित करना प्रशंसनीय होगा कि हम न तो हमलावर का समर्थन करते हैं और न ही रक्षक का, क्योंकि उनकी एक लंबी कहानी रही है और दोनों ने बार-बार गलतियां की हैं. वैसे किसी भी स्थिति में युद्ध कोई विकल्प नहीं है और इस आक्रामकता को कम करने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए.
यदि ऐसा रुख केवल बातों में ही नहीं बल्कि कर्मों से भी व्यक्त किया जाता है, तो भारत का कद दुनिया में और बढ़ेगा. जब हम एक विश्व गुरु के रूप में भारत की बात करते हैं, तो यह देखना होगा कि अशोक से लेकर गांधी तक दिए गए अहिंसा और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सबक क्या हैं? ऐसे समय में जब चीन भी तटस्थ है, भू-राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए न्यूट्रल होने से भारत को कोई लाभ नहीं होगा.
यदि उद्देश्य वर्तमान संकट से कुछ भू-राजनीतिक लाभ प्राप्त करना है, तो पश्चिम का पक्ष लेने से भी कुछ फायदे होंगे. भारत और अमेरिका पिछले कुछ दशकों से करीब आ रहे हैं और भारत-रूस संबंधों को शीत युद्ध और नेहरू-गांधी दौर के अवशेष के रूप में देखा जाता है. भारत ने यूरोपीय शक्तियों के साथ सैन्य संबंध बनाने पर भी ध्यान दिया है. रूस के प्रति भारत के झुकाव के समर्थन में दिए गए तर्कों के मुकाबले पश्चिम की ओर झुकाव के पक्ष में तर्कों को कोई विशेष महत्व नहीं दिया गया है. इसी तरह जब आप पुतिन को इस स्थिति में धकेलने के लिए नाटो द्वारा की गई त्रुटियों को जिम्मेदार ठहराते हैं, तो आप दिन के उजाले में रूस द्वारा क्राइमिया पर कि
परमाणु युद्ध का खतरा इतना वास्तविक कभी नहीं था जितना कि आज है
वास्तव में कोई भी पक्ष पूर्णतया सही नहीं है. लेकिन, आज हकीकत यह है कि रूस द्वारा यूक्रेन पर दागे गए रॉकेटों से नागरिक मर रहे हैं और वहां युद्ध अपराध हो रहे हैं. परमाणु युद्ध का खतरा इतना वास्तविक कभी नहीं था जितना कि रविवार को अपने अधिकारियों को परमाणु युद्ध के लिए तैयार रहने के पुतिन के निर्देश के बाद बन गया है. सबसे बड़े परमाणु शस्त्रागार के मालिक रूसी संघ ने 1991 में अपनी स्थापना के बाद से कभी भी परमाणु बम को लेकर इतना बड़ा खतरा उत्पन्न नहीं किया था.
वर्तमान खतरे को देखते हुए पूरी दुनिया (जिसमें भारत और उसके भू-राजनीतिक लक्ष्य भी शामिल हैं) के सामने यह राष्ट्रीय हित से ऊपर उठने और मानव हित के लिए खड़े होने का समय है. भारत का यूक्रेन को मानवीय सहायता भेजने का निर्णय उस दिशा में पहला कदम हो सकता है. हालांकि भारत यूक्रेन से बहुत दूर है और वह उस क्षेत्र में कोई बहुत बड़ा भौतिक अंतर पैदा नहीं कर सकता है. लेकिन गांधी को अपना पिता कहने वाले राष्ट्र को शांति और पीड़ितों के लिए कुछ न कुछ जरूर करना चाहिए.

Rani Sahu
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