सम्पादकीय

Russia Ukraine War : यूक्रेन पर रूस के हमले ने फिनलैंड और स्वीडन के नाटो के बहुत करीब खड़ा कर दिया है

Rani Sahu
5 May 2022 9:58 AM GMT
Russia Ukraine War : यूक्रेन पर रूस के हमले ने फिनलैंड और स्वीडन के नाटो के बहुत करीब खड़ा कर दिया है
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नॉर्डिक शिखर सम्मेलन (Nordic Summit) में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन पहुंच गए. दोनों पक्षों के बीच चर्चा में यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) और उसका प्रभाव न केवल यूरोप में बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में प्रमुखता से सामने आएगा

प्रणय शर्मा

नॉर्डिक शिखर सम्मेलन (Nordic Summit) में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन पहुंच गए. दोनों पक्षों के बीच चर्चा में यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) और उसका प्रभाव न केवल यूरोप में बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में प्रमुखता से सामने आएगा. शिखर सम्मेलन में यह पता करना रोचक होगा कि क्या दो नॉर्डिक देश, फिनलैंड और स्वीडन, अगले महीने नाटो में शामिल होने की योजना बना रहे हैं. यदि वह नाटो में शामिल होते हैं तो रूस इसे किस तरह से देखेगा और इससे चल रहा युद्ध कितना प्रभावित होगा यह जानना रोचक होगा.
नाटो शिखर सम्मेलन 29 और 30 जून को स्पेन की राजधानी मैड्रिड में आयोजित हो रहा है. फिनलैंड और स्वीडन दोनों ने अब तक रूस और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी गठबंधन के बीच तटस्थता बनाए रखी है. लेकिन यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद हो रही गर्मागरम बहस का नतीजा है कि दोनों देशों की सरकारों से नाटो में शामिल होने की मांग उठने लगी है ताकि रूस की आक्रामकता के खिलाफ वो अपनी सुरक्षा के साथ यूरोप की भी सुरक्षा कर सकें. नाटो में शामिल होने पर दोनों देशों में से किसी ने भी अब तक अपनी आधिकारिक स्थिति साफ नहीं की है. लेकिन अगर शिखर सम्मेलन से पहले ऐसा होता है तो यह यूक्रेन युद्ध के पैमाने और दायरे में काफी कुछ बदल सकता है. खासकर अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों के साथ रूस के संबंधों को खराब करने में इसका बड़ा असर होगा.
सभी कार्यक्रमों में यूक्रेन के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया है
पांच नॉर्डिक देश, डेनमार्क, नॉर्वे, फिनलैंड, स्वीडन और आइसलैंड भारत के साथ यूरोप में उभरती स्थिति के बारे में विचार-विमर्श में हिस्सा लेंगे. दोनों पक्ष इस पर भी चर्चा करेंगे कि आपसी लाभ के लिए वो अपने सहयोग को कैसे गहरा और मजबूत कर सकते हैं. फरवरी में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से अपनी पहली यूरोप यात्रा पर आए प्रधानमंत्री मोदी कोपेनहेगन आने से पहले ही जर्मनी और फ्रांस का दौरा कर चुके हैं. जाहिर है, सभी कार्यक्रमों में यूक्रेन के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया है और प्रधानमंत्री मोदी को जारी रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख को स्पष्ट करना पड़ा. भारत इस बात पर जोर दे रहा है कि हिंसा खत्म हो और दोनों देश बातचीत के टेबल पर लौटें. भारत किसी देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने और संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून के महत्व को बनाए रखने का पक्षधर है.
पीएम मोदी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इस युद्ध में कोई विजेता नहीं होगा और इसका प्रतिकूल प्रभाव सभी देशों पर पड़ेगा. शिखर सम्मेलन में भी यही स्थिति दोहराए जाने का अनुमान है. अमेरिका एकमात्र दूसरा देश है जिसके साथ नॉर्डिक देश ऐसा शिखर सम्मेलन आयोजित करते हैं. यह भारत और इस क्षेत्र के देशों के बीच संबंधों के बढ़ते महत्व को दिखाता है. पहला नॉर्डिक शिखर सम्मेलन अप्रैल 2018 में स्टॉकहोम में आयोजित किया गया था और 2021 वाला सम्मेलन कोविड -19 महामारी के कारण स्थगित करना पड़ा था.
भारतीय कंपनियों के लिए यहां व्यापार करना काफी आसान होता है
ऐसे दूसरी बार होगा जब भारत और पांच नॉर्डिक देशों के बीच इस तरह का शिखर सम्मेलन होगा. शिखर सम्मेलन के बाद प्रधानमंत्री मोदी सभी पांच देशों के प्रधानमंत्रियों के साथ अलग-अलग व्यक्तिगत बैठकें करने वाले हैं. नॉर्डिक देशों के पास कई मामलों में विशेषज्ञता है. इन्हें इनोवेशन या नवाचार, स्वच्छ ऊर्जा, ग्रीन टेकननोलॉजी और शिक्षा जैसे कई क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल है. नॉर्डिक देश, विशेष रूप से फिनलैंड, टेक महिंद्रा, विप्रो, इंफोसिस और एचसीएल टेक्नोलॉजीज जैसी भारतीय आईटी कंपनियों के लिए एक पसंदीदा निवेश स्थान बन गए हैं.
चूंकि अधिकांश नॉर्डिक देशों में अंग्रेजी बोली जाती है, भारतीय कंपनियों के लिए यहां व्यापार करना काफी आसान होता है. यहां से भारतीय कंपनियों के लिए यूरोप और वैश्विक बाजार तक भी पहुंच आसान हो जाती है. फिर सभी पांच नॉर्डिक देशों में भी लोकतंत्र है. शिखर सम्मेलन और दोनों पक्षों के बीच बढ़ते संबंध उनके साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और कानून के शासन के सम्मान का भी प्रतीक हैं. शिखर सम्मेलन में नॉर्डिक देश अपनी विशेषता वाले क्षेत्रों में अपनी व्यक्तिगत ताकत को उजागर करने के अलावा भारत के साथ संयुक्त रूप से और द्विपक्षीय स्तर पर भी अपने संबंधों को जबूत करने का प्रयास करेंगे.
उदाहरण के लिए, नॉर्वे और भारत दोनों वैश्विक समुद्री क्षेत्र में मजबूती के लिए जाने जाते हैं. ऐसे में ये दोनों देश समुद्र के जरिए अर्थव्यवस्था में साझेदारी को मजबूत करने पर जोर देंगे. स्वीडन अक्षय, नवीन और स्वच्छ ऊर्जा में भारत की मदद कर सकता है. इसी तरह आइसलैंड रिन्यूएबल ऊर्जा और मछली पालन के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग कर सकता है. डेनमार्क की ताकत ग्रीन टेकनोलॉजी है और यह हरित सामरिक भागीदारी में भारत के साथ सहयोग कर रहा है. अपनी ओर से फिनलैंड पहले ही भारतीय आईटी प्रौद्योगिकी कंपनियों का केंद्र बन चुका है.
यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया है
नॉर्डिक देशों के लिए भारत भी अपने उत्पादों और निवेश के लिए एक बड़ा आकर्षक बाजार बन गया है. भारत और नॉर्डिक देशों के बीच व्यापार वर्तमान में 18 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का है. लेकिन इसके तेजी से बढ़ने का अनुमान है क्योंकि नॉर्डिक कंपनियां चीन से दूर जा रही हैं और वो भारत में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाह रही हैं, खासकर प्रधानमंत्री मोदी के आत्मानिर्भर भारत कार्यक्रम के तहत.
Rani Sahu

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