सम्पादकीय

Russia Ukraine War : यूक्रेन के शहर बुचा में रूस का कथित नरसंहार भारत के रुख की परीक्षा ले रहा है

Rani Sahu
7 April 2022 9:32 AM GMT
Russia Ukraine War : यूक्रेन के शहर बुचा में रूस का कथित नरसंहार भारत के रुख की परीक्षा ले रहा है
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यूक्रेन संघर्ष (Ukraine War) में सभी पक्षों के साथ सावधानीपूर्वक प्रतिक्रिया देते हुए अब तक भारत इतिहास और भू-राजनीति में सही कदम उठाता रहा है

संदीपन शर्मा

यूक्रेन संघर्ष (Ukraine War) में सभी पक्षों के साथ सावधानीपूर्वक प्रतिक्रिया देते हुए अब तक भारत इतिहास और भू-राजनीति में सही कदम उठाता रहा है. लेकिन युद्ध के इर्द-गिर्द घट रही धटनाओं से भारत के लिए इस नाजुक स्थिति में संतुलन को बनाए रखना आसान नहीं होगा. बुचा (Bucha) जैसे शहरों में नागरिकों की सामूहिक हत्याओं की खबरें भयावह हैं. यूक्रेन की सरकार ने आरोप लगाया है कि नागरिकों को बांधकर, गोली मारकर सड़कों पर फेंक दिया गया. रूसी सैनिकों (Russian soldiers) ने महिलाओं से उनके बच्चों के सामने बलात्कार किया.
बुचा से आए कुछ वीडियो साक्ष्य और रूस के कब्जे में ट्रॉस्टियनेट्स और यूक्रेन के शहरों की रिपोर्ट बताती है कि वहां पर मध्ययुगीन बर्बरता की जा रही है. सामूहिक हत्याओं की भारत की निंदा और संयुक्त राष्ट्र में एक स्वतंत्र जांच की मांग से पता चलता है कि युद्ध की क्रूरता के कारण भारत के विकल्प धीरे-धीरे कम हो रहे हैं. भारत का यह बयान रूस के सामूहिक हत्याओं में शामिल होने से इनकार किए जाने के बाद आया है.
रूस की बर्बरता ने भारत के लिए तटस्थ बने रहना मुश्किल कर दिया है
रूस ने दावा किया है कि बुचा में सामूहिक कब्रों के फुटेज फर्जी हैं. उसने तर्क दिया कि इनमें से कुछ हत्या खुद यूक्रेन ने रूस की छवि को खराब करने के लिए की है. मास्को ने अत्याचार पर सुरक्षा परिषद में बहस की मांग की है. ऐसे में भारत की अधिक स्पष्टता के लिए स्वतंत्र जांच की मांग उचित है. फिर भी भारत के लिए समस्या यह है कि दुनिया भर में रूस के खिलाफ माहौल बन रहा है. कहा जा रहा है कि युद्ध के दौरान अनावश्यक हिंसा न केवल यूक्रेन बल्कि राष्ट्रपति पुतिन रूस पर भी थोप रहे हैं.

यूक्रेन के कड़े प्रतिरोध, पश्चिम के प्रतिबंधों और दुनिया भर में निंदा के बाद भी पुतिन के पीछे हटने से इनकार ने पुतिन के समर्थकों के लिए उनके पीछे खड़े रहना असंभव सा बना दिया है. मंगलवार को अमेरिकी कांग्रेस के सांसद जो विल्सन ने यूक्रेन पर भारत के रुख की आलोचना की. विल्सन ने कहा, "दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, जो भारत हमारा क़ीमती सहयोगी भी है, अमेरिकी और उससे संबद्ध शक्तियों की जगह रूसी हथियार प्रणालियों को चुनकर रूस को सहयोग करता हुआ दिख रहा है."
उनका बयान दर्शाता है कि पश्चिमी देश भारत के बारे में क्या सोचते हैं और कैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की छवि रूस-चीन धुरी का समर्थन करने वाले देश के रूप में सामने आ रही है. युद्ध जितना लंबा चलेगा और रूस की तरफ से जितनी ज्यादती होगी, भारत के लिए तटस्थ बने रहना उतना ही कठिन होगा. अब तक भारत ने अपने रणनीतिक और आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए तय किया है कि रूसी हथियार और तेल देश के लिए महत्वपूर्ण हैं.
यूक्रेन पर भारत के विकल्प एक बुरे सपने की तरह हैं
भारत यूरोप के ही कुछ देशों के रुख का उदाहरण देकर अपने रुख को बनाए रखने में सक्षम रहा है. जर्मनी जैसे देशों ने ऊर्जा के लिए मास्को पर निर्भरता के कारण रूसी तेल और गैस पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया है. लेकिन यूरोप अपनी रणनीति पर पुनर्विचार कर रहा है क्योंकि बुचा और रूस के कब्जे वाले दूसरे यूक्रेनी शहरों में भारी हिंसा हो रही है
एक बार रूसी ऊर्जा पर निर्भर पश्चिमी देश अपने आर्थिक हितों, अर्थव्यवस्था और लोगों को परेशानी में डाल कर भी खुद को रूस से पूरी तरह अलग करने का फैसला करते हैं तो भारत को अपने नैतिकता वाले रुख पर कायम रहने में मुश्किल पेश आएगी. रूस के खिलाफ सभी विकल्पों के इस्तेमाल के बाद – ज्यादा प्रतिबंध, ऊर्जा के आयात पर रोक – भारत के रूस को अछूत नहीं मानने पर पश्चिमी देश भारत के खिलाफ भी कड़ा रुख अपनाएंगे. इसके बाद भारत के लिए सब कुछ तलवार की धार पर चलने जैसा हो जाएगा.
यूक्रेन पर भारत के विकल्प एक बुरे सपने की तरह हैं. दुर्भाग्य से यह उस खेमे में फंस गया है जिसके पारंपरिक सहयोगी रूस के अलावा पाकिस्तान और चीन जैसे प्रतिद्वंदी हैं. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को असहज और असामान्य रूप से एक आतंक को बढ़ावा देने वाले असफल देश और दो निरंकुश देशों के साथ आने को अस्थायी गठबंधन माना जा रहा है. इसमें अंतर्निहित खिंचाव और दबाव जल्द ही यथास्थिति को बदल देगी.
भारत का बयान पश्चिमी देशों के दबाव को कम करने में मदद कर सकता है
इसी तरह सस्ते रूसी तेल और हथियारों की अनदेखी करने की भारत की अनिच्छा को जल्द ही पश्चिमी देश, विशेष रूप से वाशिंगटन, को अपने साथ व्यापार बढ़ा कर संतुलित करना होगा. नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार 113.391 बिलियन डॉलर का रहा. भारत ने 73 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के सामान का निर्यात किया और 40 बिलियन डॉलर से थोड़ा अधिक का सामान आयात किया. इसकी तुलना में भारत और रूस के बीच सिर्फ 10 अरब डॉलर से कम का व्यापार है.
अब तक अमेरिका ने व्यापार संबंधित समीकरणों को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. लेकिन जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ता है और रूस यूक्रेन पर कब्जे के लिए और अधिक खतरनाक हथियारों का सहारा लेता है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भारत पहले की तरह शाब्दिक और लाक्षणिक रूप से व्यापार करने में सक्षम रहे. संयुक्त राष्ट्र में भारतीय रुख से पता चलता है कि वह मौजूदा युद्ध के दौरान अपने रुख में बदलाव कर रहा है. यदि आवश्यक हो तो वह अपने हितों को संतुलित करने के लिए रूस के खिलाफ एकजुट हो रही दुनिया के बाद अपने रुख में परिवर्तन ला सकता है.
जो भी हो, अब वक्त आ गया है कि भारत रूस के सामने अपनी चिंता को साफ-साफ व्यक्त करे और यूक्रेन में शत्रुता को तत्काल समाप्त करने की बात करे. विदेश मंत्री एस जयशंकर अपने मॉस्को यात्रा में रूसी नेतृत्व को भारत की चिंता से अवगत करा सकते हैं. इसके बाद का भारत का बयान पश्चिमी देशों के दबाव को कम करने में मदद कर सकता है. अगर रूस भारत की अपील पर ध्यान देने से इनकार करता है तो भारत को रूस और यूक्रेन पर अपने रुख पर नये ढंग सोचने का मौका मिल जाएगा.
Rani Sahu

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