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पश्चिमी प्रतिबंधों से कराहते रूस के पूंजीपतियों ने देश में उठाई पुतिन विरोधी आवाज
के वी रमेश
राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) के स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण में उनसे रूस (Russia) के खिलाफ कठोर शब्दों की उम्मीद तो थी, लेकिन यह रूस के एलीट क्लास में राष्ट्रपति व्लादिममीर पुतिन (Vladimir Putin) के सपोर्ट बेस पर भी भारी पड़ गया है. बाइडेन ने कहा है कि अमेरिका और सहयोगी देश रूस के पूंजिपतियों के लग्जरी याट (नौकाओं), अपार्टमेंट की पहचान कर उसे जब्त करेंगे – ये एक ऐसा कदम है जो रूस के अभिजात्य वर्ग पर बड़ा प्रभाव डालेगा.
सत्तापक्ष और विपक्ष की संयुक्त तालियों के बीच राष्ट्रपति ने एक काउब्वॉय की तरह घोषणा की, "हम गलत ढंग से कमाई गई आपकी संपत्ति को जब्त करने आ रहे हैं." इससे रूस के उन बड़े पूंजिपतियों में डर घर कर जाएगी जिन्होंने तीन दशकों से पुतिन के साथ मिल कर अकूत पैसे कमाए हैं और रूस में अपार संपत्ति अर्जित की है, साथ ही साथ पश्चिमी देशों के साथ भी आर्थिक संबंध इस तरह से मजबूत किए हैं जिससे दोनों पक्षों को लाभ हो.
डॉलर के मुकाबले रूस का रूबल 40 फीसदी तक कमजोर हो गया है
अगर किसी ने रूस में सोचा कि ये एक नौसीखिए अमेरिकी राष्ट्रपति की बंदरघुड़की है तो उनकी आशा को जर्मनी और फ्रांस ने दंडात्मक कदम उठा कर धराशायी कर दिया. संभवतः कनाडा और दूसरे ट्रान्सअटलांटिक देश भी इसी तरह का कदम उठाएंगे. यह महसूस करते हुए कि वे पुतिन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई नहीं कर सकते क्योंकि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस ने इस तरह की कार्रवाई के प्रस्ताव पर वीटो कर उसे रोक दिया, अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने आर्थिक प्रतिबंधों से रूस को वहां पर चोट करने की कोशिश की जहां पर सबसे अधिक दर्द होता है.
रूसी बैंकों और व्यक्तियों के खिलाफ वित्तीय प्रतिबंध लगाने, उन्हें धन को बाहर ले जाने से रोकने, गैर रूसी संस्थाओं के साथ व्यापारिक लेन-देन से रोकने का रूस पर भारी प्रतिकूल असर पड़ा है. डॉलर के मुकाबले रूस का रूबल एक महीने के भीतर 40 फीसदी तक कमजोर हो गया है. ज्यादा डॉलर प्राप्त करने और रूबल को मजबूत बनाने के लिए रूस के बैंकों ने ब्याज दर 20 फीसदी तक बढ़ा दिए. रूसी अधिकारियों ने विदेशी निवेशकों पर उनकी संपत्ति को रूस से बाहर ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है.
अमेरिका और उसके सहयोगियों का आर्थिक प्रतिबंध काफी सावधानीपूर्वक तैयार किया गया प्रतीत होता है. अगर वे यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का सैन्य कार्रवाई कर जवाब देते तो परमाणु युद्ध जैसा अप्रत्याशित परिणाम हो सकता था. रूस इराक या लीबिया नहीं है. उसके पास 6,000 से अधिक परमाणु मिसाइलें हैं, अमेरिका से अधिक और उन्हें लक्ष्यों तक पहुंचाने की क्षमता भी रूस के पास है.
पश्चिमी देशों ने रूसी खेल को पकड़ लिया है
पश्चिमी देश रूस के साथ नैतिक समानता भी नहीं चाहते हैं. नो फ्लाई जोन जैसे कदम से पुतिन को रूस के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर समर्थक हासिल करने में मदद मिल सकती है. अमेरिका, ब्रिटेन और दूसरे नाटो देशों ने अब विशेष रूप से पुतिन के उन करीबी लोगों पर हमला किया है जो पुतिन के इनर सर्किल के सदस्य हैं और रूसी अर्थव्यवस्था के 70 फीसदी हिस्से को नियंत्रित करते हैं. इसी कुलीन वर्ग के माध्यम से पुतिन पश्चिमी देशों से जुड़ते हैं जिससे रूस को पश्चिमी देशों के बैंकिंग सिस्टम का फायदा उठाने का मौका मिलता है. यही वर्ग भारी मुनाफे के साथ पेट्रोलियम पदार्थ और धातु विदेशों में बेचते हैं जबकि पुतिन अपनी कठोर छवि बनाए रखते हैं. पश्चिमी देशों ने रूसी खेल को पकड़ लिया है. युद्ध की जगह लगभग शत-प्रतिशत आर्थिक प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य दो हैं – रूस की अर्थव्यवस्था को पंगु बनाना और रूसी सत्ता से जुड़े लोगों में बेचैनी पैदा करना. जिससे उम्मीद है कि पुतिन के समर्थन का आधार कमजोर पड़ेगा और यह वहां सत्ता परिवर्तन का कारण बन जाएगा.
बुधवार को जर्मन अधिकारियों ने रूसी पूंजीपति और पेट्रोलियम पदार्थ बेच कर अमीर बने अलीशर उस्मानोव के स्वामित्व वाले एक सुपररीच 'दिलबर' यॉट को जब्त कर लिया जो हमबुर्क के जर्मन शिपयार्ड ब्लोहम+वॉस (कंपनी का नाम) में सर्विसिंग के लिए लाया गया था. फॉक्स बिजनेस के मुताबिक जर्मन शिपबिल्डर लर्सन के तैयार किए 600 मिलियन डॉलर के लग्जरी जहाज में 82 फीट का स्विमिंग पूल, दो हेलीकॉप्टर पैड, सौना, जिम और ब्यूटी सैलून है. इसमें 24 मेहमानों के रहने के लिए 12 लग्जरी सुइट हैं.
फोर्ब्स के अनुसार उस्मानोव लौह अयस्क और स्टील की दिग्गज कंपनी मेटलॉइनवेस्ट के एक प्रमुख शेयरधारक हैं. फेसबुक और चीनी तकनीकी दिग्गज ज़ियामी में उनके स्टॉक हैं. इसके अलावा दूरसंचार, खनन और मीडिया फर्मों में भी उनका दखल है. पेट्रोलियम पदार्थों की कमाई से अमीर बने चेल्सी के रोमन अब्रामोविच की तरह उस्मानोव के पास भी अंग्रेजी फुटबॉल क्लब आर्सेनल में शेयर है. अब्रामोविच को अब चेल्सी में अपना शेयर बेचने के लिए मजबूर किया जा रहा है, लेकिन उस्मानोव ने तीन साल पहले ही आर्सेनल में अपना 30 प्रतिशत हिस्सा 700 मिलियन डॉलर में बेच दिया था.
रूस के अभिजात वर्ग के लिए कई साल से लंदन और न्यूयॉर्क दूसरा घर रहा है
इन रूसी पूंजीपतियों के ज्यादातर यॉट (पानी के लग्जरी जहाज) जर्मन शिपयार्ड ब्लोहम+वॉस में बनाए गए हैं. रूसी सरकार के करीबी पूंजीपतियों के सुपर यॉट को ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी भी अपनी जल सीमा या बंदरगाहों में पाए जाने पर जब्त करने की योजना बना रहे हैं. रूस के कुलीन वर्ग से आने वाले पूंजीपति विलासिता वाली जिन्दगी जीने के शौकीन हैं और कई सुपर यॉट के मालिक हैं. इनमें खनन और धातु के उद्योगपति ओलेग डेरिपस्का भी शामिल हैं जो अपने महंगे यॉट को मोंटेनेग्रो और मालदीव की सुरक्षित पानी की तरफ ले जा रहे हैं.
अगला टारगेट पूंजीपति वर्ग के स्वामित्व वाले सुपर लग्जरी जेट हो सकते हैं, जिनमें से कई जब्ती से बचने के लिए रूस वापस लाए जा रहे हैं. रूसी पूंजिपतियों पर सबसे तगड़ी मार तब पड़ेगी जब पश्चिमी देशों में मौजूद इनकी जमीन-जायदाद और अचल संपत्ति जब्त की जाएगी. अमेरिका और ब्रिटेन न्यूयॉर्क और लंदन में रूसी पूंजिपतियों के लग्जरी घरों और विला को जब्त करने की योजना बना रहे हैं. रूस के पूंजीपतियों के लिए निवेश की ये पसंदीदा जगह है.
रूस के अभिजात वर्ग के लिए कई साल से लंदन और न्यूयॉर्क दूसरा घर रहा है. पुतिन से उन्हें जो कुछ भी प्राप्त हो रहा है वही उन्हें पश्चिम के पूंजीवादी व्यवस्था में भी मिलता रहा है. यह देखा जाना बाकी है कि कुलीन वर्गों पर डाला गया दबाव काम करेगा या नहीं. लेकिन पेट्रोलियम पदार्थों के कारण कुलीन वर्ग से आने वाले रुस के डेरीपस्का और यूक्रेन में जन्मे मिखाइल फ्रिडमैन पुतिन के युद्ध को लेकर पहले ही संदेह व्यक्त कर चुके हैं. डेरिपस्का ने सोमवार को "सरकारी पूंजीवाद को समाप्त करने की मांग के साथ चेतावनी दी कि रूस इस तरह के गंभीर प्रतिबंधों का सामना करने में सक्षम नहीं होगा."
आर्थिक तंगी से पुतिन को काबू में किया जा सकता है
रूसी सत्ता पर गंभीर टिप्पणी करते हुए डेरिपस्का ने अपने टेलीग्राम अकाउंट पर लिखा, "2014 की तरह इस बार केवल बैठ कर देखने से ही समस्या हल नहीं हो जाएगी. अगर यह वास्तविक संकट है तो हमें वास्तविक संकट प्रबंधकों की आवश्यकता है न कि कल्पनावादियों की मूर्खतापूर्ण प्रस्तुतियों की." अमेरिका के विदेश विभाग, पेंटागन और नाटो को लगता है कि रूसी अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल कर और पुतिन की छत्रछाया में पल रहे पूंजीपतियों की आर्थिक तंगी से पुतिन को काबू में किया जा सकता है.
रूस की जनता ने युद्ध का बहादुरी के साथ प्रतिरोध किया और युद्ध में अपने लोगों के नुकसान के बारे में आम रूसियों के बीच बढ़ती नाराजगी और चिंता पुतिन की आंखों की किरकिरी बन गई है. साफ है पुतिन जो चाह रहे हैं वो हो नहीं रहा है. एक क्षण के लिए ये चिंता जरूर होती है कि बढ़ते आर्थिक दबाव के साथ रूसी आक्रामकता का यूक्रेन की तरफ से कड़ा प्रतिरोध पुतिन के उन्माद को और बढ़ा सकता है. हालांकि रिपोर्टों से पता चलता है कि 2014 में क्राइमिया के कब्जे के बाद से रूसी सरकार ने इस तरह के झटके सहने के उपाय कर लिए हैं. लेकिन, जैसा कि डेरिपस्का ने चेतावनी दी है, रूस इससे आसानी से बाहर निकल सकता है यह दावा संदिग्ध ही लगता है.
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