- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- Russia Ukraine War:...
x
सुरक्षा परिषद में सोवियत समर्थन का इतिहास
के वी रमेश।
आजादी के बाद के पहले तीन दशकों में जब भारत आर्थिक और सैन्य रूप से मजबूत नहीं था तो सोवियत संघ, जो मौजूदा रूस का पूर्ववर्ती देश था, हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) की निंदा प्रस्तावों से सोवियत संघ हमें हमेशा बचाता रहा. रूस (Russia) ने 1957 (कश्मीर पर), 1962 (गोवा पर) और 1971 (बांग्लादेश युद्ध पर) अपने वीटो का इस्तेमाल किया जब पश्चिमी ब्लॉक भारत की निंदा करना चाहता था. प्रस्तावों के मुताबिक, भारत के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र हस्तक्षेप करना चाहता था.
1961 में जब भारत ने गोवा को पुर्तगाली कब्जे से मुक्त करने की कोशिश की तो पुर्तगाल ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर को लागू करने की कोशिश की और एक प्रस्ताव लाया कि भारत को गोवा से अपनी सेना वापस बुला लेनी चाहिए. इस प्रस्ताव को संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस का समर्थन था. लेकिन यूएसएसआर भारत के बचाव में आया और वीटो पावर का इस्तेमाल कर प्रस्ताव को खारिज कर दिया. सोवियत संघ के वीटो ने भारत के उद्देश्य को मजबूत किया और 19 दिसंबर, 1961 को गोवा अंततः पुर्तगाल शासन से मुक्त हो गया. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह यूएसएसआर का 99वां वीटो था.
सुरक्षा परिषद में सोवियत समर्थन का इतिहास
कई मौकों पर भारत की मदद करने के लिए वीटो की जरूरत नहीं होती थी. ऐसे समय में भारत के सहयोगी जैसे सोवियत संघ और पोलैंड ने भारत को निशाने पर रखने वाले या उसके हितों को प्रभावित करने वाले प्रस्तावों में मतदान करने से परहेज किया है. भारत के स्वतंत्र होने के तुरंत बाद, पाकिस्तान ने फौज की मदद से कबाइलियों को कश्मीर में धकेल दिया था. कश्मीर राज्य ने भारत से मदद मांगी. भारत ने घाटी में सेना भेजी और आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 38 को 17 जनवरी, 1948 को अपनाया गया था. इस प्रस्ताव के मुताबिक भारत और पाकिस्तान की सरकारों से कश्मीर की स्थिति को किसी भी तरह से बिगड़ने से रोकने और इसे सुधारने के लिए किसी भी साधन को तैनात करने का आह्वान किया गया था. यहां आगे अनुरोध किया गया कि दोनों सरकारें परिषद को स्थिति में किसी भी भौतिक परिवर्तन के बारे में सूचित करें, जब तक कि यह परिषद के विचाराधीन है.
प्रस्ताव को नौ वोटों से मंजूर किया गया जबकि यूक्रेनी एसएसआर और सोवियत संघ ने मतदान नहीं किया. यदि सोवियत संघ ने प्रस्ताव के लिए मतदान किया होता तो कश्मीर पर भारत का मामला काफी कमजोर हो गया होता और इसे कभी बदला भी नहीं जा सकता था. सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 39 को 20 जनवरी, 1948 को अपनाया गया था. इस प्रस्ताव के मुताबिक तीन सदस्यों के एक आयोग का गठन कर कश्मीर संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान में सहायता करने की पेशकश की गई थी. इन तीन सदस्यों में एक-एक सदस्य को भारत और पाकिस्तान द्वारा चुना जाना था और तीसरा आयोग के अन्य दो सदस्यों द्वारा चुना जाता. आयोग को सुरक्षा परिषद को सलाह देते हुए एक संयुक्त पत्र लिखना था कि इस क्षेत्र में शांति कायम करने के लिए किस तरह के कदम उठाना चाहिए.
सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 96 को 10 नवंबर, 1951 में अपनाया गया था
प्रस्ताव 80 ने प्रस्ताव 47 में एक बदलाव किया जिसमें पाकिस्तान को पहले अपनी सेना वापस लेने का आह्वान किया गया था. प्रस्ताव 80 ने भारत और पाकिस्तान को जनमत संग्रह के उद्देश्य से एक साथ अपने सैनिकों को वापस लाने के लिए कहा. इसने पाकिस्तान के सशस्त्र बलों और जम्मू और कश्मीर राज्य बलों को एक समान माना, जो संयुक्त राष्ट्र आयोग द्वारा दिए गए पहले के आश्वासनों के खिलाफ थे. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और जम्मू-कश्मीर को एक नजरिए से देखने की इस कोशिश का भारत ने पुरजोर विरोध किया था.
प्रस्ताव में दोनों सरकारों से युद्ध विराम जारी रखने के लिए सभी आवश्यक सावधानी बरतने का अनुरोध किया. भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र आयोग के सदस्यों के साथ-साथ जनरल एजीएल मैकनॉटन को धन्यवाद दिया और सहमति व्यक्त की कि युनाइटेड नेशन्स कमिशन फॉर इंडिया एंड पाकिस्तान को एक महीने के बाद समाप्त कर दिया जाएगा. और ये तब होगा जब दोनों पक्ष संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि को युनाइटेड नेशन्स कमिशन की शक्तियों और जिम्मेदारियों के हस्तांतरण की अपनी स्वीकृति के बारे में सूचित कर देगा. प्रस्ताव के पक्ष में आठ मत पड़े और इसे पारित किया गया; भारत और यूगोस्लाविया ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया और सोवियत संघ भी मतदान के समय अनुपस्थित रहा.
सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 96 को 10 नवंबर, 1951 में अपनाया गया था. इसे भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि फ्रैंक ग्राहम द्वारा एक रिपोर्ट प्राप्त करने के साथ-साथ परिषद के समक्ष उनके भाषण को सुनने के बाद विसैन्यीकरण के एक कार्यक्रम के लिए एक आधार को मंजूरी के साथ नोट किया गया था. परिषद ने संतुष्टि के साथ भारत और पाकिस्तान दोनों से कहा कि वे एक शांतिपूर्ण समाधान के लिए काम करेंगे, संघर्ष विराम का पालन जारी रखेंगे और इस सिद्धांत को स्वीकार किया कि जम्मू और कश्मीर राज्य का विलय एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए, जिसका आयोजन संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में होगा.
24 जनवरी 1957 को सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 122 को अपनाया गया था
परिषद ने तब संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि को कहा कि वे अपनी कोशिशें जारी रखें ताकि जम्मू और कश्मीर राज्य के विसैन्यीकरण के लिए एक योजना पर पार्टियों की सहमति प्राप्त की जा सके. साथ ही परिषद ने कहा कि वे अपने प्रयासों पर और समस्याओं पर उनके द्वारा बताई गई दृष्टिकोण के साथ छह सप्ताह के अंदर रिपोर्ट पेश करें. प्रस्ताव के पक्ष में नौ वोट पड़े जबकि विरोध में एक भी नहीं; भारत और सोवियत संघ ने मतदान में भाग नहीं लिया. सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 98 को 23 दिसंबर, 1952 को अपनाया गया था. इस प्रस्ताव के मुताबिक भारत और पाकिस्तान की सरकारों से भारत और पाकिस्तान के लिए युनाइटेड नेशन्स रिप्रजेंटेटिव फॉर इंडिया एंड पाकिस्तान के तत्वावधान में तत्काल बातचीत करने का आग्रह किया, ताकि युद्ध विराम रेखा के दोनों तरफ सैनिकों की संख्या रखने पर एक समझौता हो सके.
संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि ने यह प्रस्ताव दिया था कि पाकिस्तान की तरफ यह संख्या 6000 आज़ाद बलों और 3500 गिलगित और उत्तरी स्काउट्स की होनी चाहिए, जबकि 18000 भारतीय बल और 6000 स्थानीय राज्य बल भारतीय सीमा के अंदर होंगे. प्रस्ताव ने तब संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि को उनके प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया. भारत और पाकिस्तान की सरकारों के इस प्रस्ताव को अपनाने के 30 दिनों के भीतर परिषद को रिपोर्ट करने का अनुरोध किया, साथ ही संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि को यह कहा गया कि वह परिषद को इस मामले में किसी भी प्रगति के बारे में सूचित करें. प्रस्ताव के पक्ष में नौ मत पड़े जबकि विरोध में एक भी नहीं. सोवियत संघ अनुपस्थित रहा और पाकिस्तान ने मतदान में भाग नहीं लिया.
24 जनवरी 1957 को सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 122 को अपनाया गया था और इसमें जम्मू और कश्मीर के इलाकों के मद्देनज़र भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच विवाद को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी. यह देशों के बीच विवाद से निपटने के लिए 1957 में ( प्रस्ताव 123 और 126 के साथ) तीन सुरक्षा प्रस्तावों में से पहला था. प्रस्ताव ने घोषणा की कि जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस द्वारा प्रस्तावित विधानसभा सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 91 में परिभाषित समस्या का समाधान नहीं हो सकता है जिसे लगभग छह साल पहले अपनाया गया था.
रूस कश्मीर के मुद्दे को भारत का आंतरिक मामला बताता है
प्रस्ताव 122 के पक्ष में 10 वोट पड़े तो विरोध में एक भी नहीं. इसमें सोवियत संघ मतदान में शामिल नहीं हुआ. जम्मू और कश्मीर पर संघर्ष तेज होने के बाद 21 फरवरी, 1957 को सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 123 को अपनाया था. परिषद ने अनुरोध किया कि सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष उपमहाद्वीप का दौरा करें और भारत और पाकिस्तान की सरकारों के साथ ऐसे किसी भी प्रस्ताव की जांच करें जिससे विवाद का समाधान तलाशा जा सके. परिषद ने अनुरोध किया कि वह 15 अप्रैल से पहले रिपोर्ट करें. इसके बाद इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 126 तौयार किया जिसे उसी वर्ष दिसंबर में अपनाया गया था. प्रस्ताव के पक्ष में 10 और विरोध में एक भी वोट नहीं पड़े. सोवियत संघ एक बार फिर मतदान में शामिल नहीं हुआ.
भारत और पाकिस्तान के बयानों को सुनने के बाद, 21 दिसंबर, 1971 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव 307 अपनाया गया. इसमें परिषद ने मांग की कि जम्मू और कश्मीर में संघर्ष विराम रेखा का सम्मान करने के लिए सेना की वापसी होने तक एक स्थायी संघर्ष विराम रखा जाए. परिषद ने पीड़ितों की राहत और शरणार्थियों के पुनर्वास के साथ-साथ उनकी घर वापसी में अंतर्राष्ट्रीय सहायता का भी आह्वान किया और सुरक्षा परिषद् के सेक्रेटरी जनरल से परिषद को घटनाक्रम से अवगत कराते रहने का अनुरोध किया. प्रस्ताव के पक्ष में 13 मत पड़े जबकि विरोध में एक भी नहीं. इस बार भी पोलैंड और सोवियत संघ ने मतदान में भाग नहीं लिया. बांग्लादेश युद्ध के दौरान, सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 303 को 6 दिसंबर 1971 को अपनाया गया था. 1606वीं और 1607वीं बैठकों में सर्वसम्मति की कमी की वजह से परिषद को अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी का प्रयोग करने से रोका गया. परिषद ने बाद में इस मुद्दे को जनरल एसेम्बली में भेजने का फैसला लिया.
जम्मू-कश्मीर और पूर्वी पाकिस्तान में हुए संघर्ष के साथ-साथ विभिन्न मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान तनावों के मद्देनज़र परिषद की बैठकें बुलाई गईं. इसके अतिरिक्त युनाइटेड नेशन्स मिलिटरी ऑबजर्वर ग्रुप इन इंडिया एंड पाकिस्तान ने 1949 के कराची समझौते के दोनों पक्षों द्वारा उल्लंघन की सूचना दी. इस प्रस्ताव के पक्ष में 11 मत पड़े जबकि फ्रांस, पोलैंड, सोवियत संघ और यूनाइटेड किंगडम ने मतदान में भाग नहीं लिया. अगस्त 2019 में, रूस पहला P-5 देश था जिसने कश्मीर पर भारत के कदम (अनुच्छेद 370 और राज्य के विभाजन को खत्म करने) को विशुद्ध रूप से एक आंतरिक मामला बताया था. साथ ही रूस ने कहा कि 1972 के शिमला समझौते और 1999 के लाहौर घोषणापत्र के तहत ही विवादों का हल तलाशा जाना चाहिए.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Next Story