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यूक्रेन पर पुतिन की आक्रामकता से भारत के लिए तटस्थ रहना मुश्किल हो जाएगा
सुबीर भौमिक
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) से "हिंसा की तत्काल समाप्ति और कूटनीतिक वार्ता और बातचीत के रास्ते पर लौटने" की जो अपील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने गुरुवार को की उसमें हताशा की भावना साफ झलक रही थी. संयुक्त राष्ट्र के मंच से लेकर लगभग हर जगह भारत अब तक यूक्रेन (Ukraine) पर सैन्य हमले के लिए रूस की आलोचना करने से कतराता रहा है. दिल्ली में रूसी राजनयिकों ने अपने "स्वतंत्र रुख" के लिए भारत की प्रशंसा की है, वहीं दूसरी तरफ पुतिन ने यूक्रेन पर जारी युद्ध और पाकिस्तान के इमरान खान की मेजबानी के बीच मोदी को धैर्यपूर्वक सुना है.
लेकिन जब तक पुतिन "विशेष सैन्य अभियान" को जल्दी से समाप्त नहीं करते और बातचीत के टेबल पर नहीं लौटते, पश्चिमी भागीदारों के धैर्य के साथ-साथ भारत के विकल्प भी समाप्त हो जाएंगे. फ्रांस, जो अब यूरोपीय संघ परिषद की अध्यक्षता कर रहा है, ने इस बात पर पहले ही जोर दिया है कि यूक्रेन के खिलाफ सीधा सैन्य हमला शुरू करके रूस ने जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन किया है, उसका भारत संयुक्त राष्ट्र में पुरजोर तरीके से विरोध करे. फ्रांस के सूत्रों का कहना है कि पुतिन के यूरोप को अस्थिर करने से भारत को मदद नहीं मिलेगी.
पश्चिमी राष्ट्र भारत की तटस्थता से परेशान हैं
दिल्ली में यूक्रेन के राजदूत ने सीधे तौर पर कहा है कि उनका देश उम्मीद करता है कि भारत रूस के साथ अपने विशेष संबंधों का उपयोग कर इस युद्ध को जल्द से जल्द रुकवाने का प्रयास करेगा. अब जबकि करीब 20,000 भारतीय, जिनमें ज्यादातर छात्र हैं, अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं, दिल्ली के लिए कीव की उम्मीदों से मुंह फेरना आसान नहीं होगा. अन्य पश्चिमी राष्ट्र भारत की तटस्थता से परेशान हैं और वे इसे भारत का रूस के साथ लंबे समय से चले आ रहे संबंधों को ख़राब न करने के प्रयास के रूप में देखते हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस संकट में रूस का समर्थन करने वाले सभी देशों को चेतावनी देते हुए कहा कि उन्हें इस "दाग युक्त संगठन" की भरपाई करनी होगी. अब जबकि रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया है, यह स्पष्ट है कि अमेरिका रूसी सैन्य हार्डवेयर के भारत के आयात पर CAATSA प्रतिबंध लगाने पर अमल करेगा. भारत को अभी रूस से चार S-400 ट्रायम्फ एंटी-मिसाइल के साथ-साथ अकुला क्लास न्यूक्लियर अटैक सबमरीन प्राप्त करना है. ऐसी स्थिति में भारत को CAATSA के तहत अमेरिकी प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ सकता है.
यदि भारत यूक्रेन के मुद्दे पर ऐसे ही अस्पष्ट बना रहता है, तो यह अमेरिका और फ्रांस दोनों के साथ अपने उभरते सामरिक संबंधों को खतरे में डाल सकता है. यह भारत के लिए ठीक नहीं होगा क्योंकि भारत को हिमालय में चीनी आक्रामकता का सामना करना पड़ सकता है. यदि भारत पुतिन द्वारा यूक्रेन पर किये इस दुस्साहसिक कार्य पर चुप रहता है, तो दिल्ली के लिए हिमालय में किसी भी संभावित चीनी सैन्य आक्रामकता के खिलाफ क्वॉड देशों को जुटाना मुश्किल हो जायेगा. अब जबकि ऑस्ट्रेलिया और जापान दोनों ने पुतिन के यूक्रेन युद्ध का जोरदार विरोध करते हुए प्रतिबंधों की बारिश कर दी है, भारत पहले से ही इस मुद्दे पर QUAD के भीतर कुछ हद तक अलग-थलग पड़ गया है.
भारत ने "सबकी सुरक्षा चिंताओं" की धारणा पर बल दिया
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मेलबर्न में यह तर्क देने की बहुत कोशिश की है कि क्वॉड को यूरोप के बजाय एशिया पर ध्यान देना चाहिए. यह तर्क तब तक ठीक था जब तक पुतिन ने यूक्रेन पर हमला नहीं किया था. अब जबकि पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है तो यह तर्क कोई मायने नहीं रखता है. नाटो में शामिल होने के यूक्रेन के दृढ़ संकल्प के बाद भारत को पुतिन द्वारा यूक्रेन की घेराबंदी कुछ हद तक सही लग सकती है. इसलिए भारत ने "सबकी सुरक्षा चिंताओं" की धारणा पर बल दिया. भले ही भारत और रूस के साथ उसके पारंपरिक संबंधों के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा हो, लेकिन पुतिन के लिए यूक्रेन पर हमला करने के निर्णय का बचाव करना तो मुश्किल होगा ही क्योंकि इस हमले ने दुनिया भर में इस बात का डर फैला दिया है यह युद्ध यूक्रेन के साथ अन्य देशों को भी अपनी लपेट में ले सकता है और ऊर्जा की कीमतें आसमान छू सकती हैं.
पुतिन ने सैन्य हमले शुरू करने से पहले ही यूक्रेन के अलग राष्ट्रीयता के दावे को नकार दिया है. यह रूस के इस कदम से ध्यान हटा देता है और पुतिन को ऐसे रूसी साम्राज्यवादी के रूप में स्थापित करता है जो यूक्रेन को अपनी पहचान देने के लिए महान लेनिन की भी आलोचना कर सकता है. यदि भारत यूक्रेन पर पुतिन के कदम की निंदा नहीं करता है तो उसे 'दक्षिण तिब्बत' को मुक्त करने के लिए चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में 1962 की तरह किसी संभावित आक्रमण की स्थिति में वैश्विक समर्थन हासिल करने के लिए बहुत ही कड़ी मेहनत करनी होगी. ऐसी स्थिति में जब चीन इस गर्मी में हिमालय में व्यापक सैन्य अभ्यास की योजना बना रहा है, भारत को वास्तव में सावधान रहना होगा.
तो, भारत के लिए रास्ता यही है कि वह रूस को तुरंत युद्ध रोकने और बातचीत के टेबल पर लौटने के लिए राजी करे. केवल इस तरह की प्रभावी मध्यस्थता ही न केवल भारत को यूक्रेन पर हो रही वैश्विक रस्साकस्सी से बचा सकता है बल्कि कच्चे तेल की कीमतों को नियंत्रित रख अपनी अर्थव्यवस्था को घातक प्रतिकूल परिस्थितियों में जाने से भी बचा सकता है.
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