सम्पादकीय

Russia Ukraine War: पुतिन की वजह से अब NATO की सदस्यता लेने पर विचार कर रहे कई यूरोपीय देश

Gulabi
3 March 2022 5:09 AM GMT
Russia Ukraine War: पुतिन की वजह से अब NATO की सदस्यता लेने पर विचार कर रहे कई यूरोपीय देश
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रूस ने भी चेतावनी दी है कि इस तरह के कदम से दोनों देशों के लिए “गंभीर सैन्य और राजनीतिक परिणाम” होंगे
प्रशांत सक्सेना।
जैसे-जैसे यूक्रेन (Ukraine) पर रूसी (Russia) आक्रमण तेज होता जा रहा है, यूरोपीय देश (European countries) अपनी नीतियों में बदलाव ला रहे हैं. मिसाल के तौर पर, जर्मनी ने रविवार को कहा कि वह यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के मद्देनज़र नीतिगत बदलावों की श्रृंखला में अपने रक्षा बजट में 2 प्रतिशत का इजाफा कर रहा है. पश्चिमी सहयोगियों के दबाव का लंबे समय तक विरोध करने और क्रेमलिन के प्रति बहुत अधिक उदार रवैया अपनाने के आरोपों के बाद जर्मनी ने यूक्रेन को हथियार भेजने पर भी सहमति व्यक्त की. दूसरी ओर, स्वीडन और फिनलैंड रूस की चेतावनियों की अनदेखी करते हुए अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो में शामिल होने पर विचार कर रहे हैं.
रूस ने भी चेतावनी दी है कि इस तरह के कदम से दोनों देशों के लिए "गंभीर सैन्य और राजनीतिक परिणाम" होंगे. रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में शुक्रवार को अमेरिका और उसके कुछ सहयोगियों द्वारा फिनलैंड और स्वीडन को नाटो में शामिल करने के प्रयासों पर चिंता व्यक्त की और चेतावनी दी कि अगर वे गठबंधन में शामिल होते हैं तो मास्को जवाबी कार्रवाई करने के लिए मजबूर हो जाएगा.
स्वीडन और फिनलैंड भी नाटो में शामिल होने पर विचार कर रहे
बहरहाल, फ़िनलैंड के विदेश मंत्री पेक्का हाविस्टो ने शनिवार को कहा कि "हमने इसे पहले भी सुना है, हमें नहीं लगता कि यह एक सैन्य खतरा है." हाविस्टो ने फिनिश सार्वजनिक प्रसारक वाईएलई के साथ एक साक्षात्कार में कहा. हाविस्टो ने रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा द्वारा दिए गए बयान का जवाब देते हुए कहा, "क्या फ़िनलैंड को नाटो की बाहरी सीमा होनी चाहिए, इसका मतलब यह है कि रूस निश्चित रूप से अपनी रक्षा योजना में इसे ध्यान में रखेगा. मुझे ऐसा कुछ नया नहीं दिख रहा है."
द्वितीय विश्व युद्द के बाद यूरोप, सामूहिक या व्यक्तिगत रूप से, कभी भी इतना असहज नहीं दिखा जितना कि सात दिन पहले व्लादिमीर पुतिन के यूक्रेन पर हमला के बाद से दिख रहा है. रूसी आक्रमण अप्रत्याशित तर्ज पर नहीं आया है, यह ऐसे समय में आया जब COVID-19 महामारी के बाद विश्व की डगमगाती अर्थव्यवस्थाओं में तेजी आने लगी. और ऐसे समय में पुतिन को अधिक विवेकी और संवेदनशील दिखना चाहिए था. नाटो की सिक्योरिटी अम्ब्रेला (सुरक्षा छतरी) के तहत यूरोप का अधिकांश भाग सुरक्षित है, लेकिन पुतिन की परमाणु धमकी के बाद, यूरोपीय राष्ट्र यह महसूस कर रहे हैं कि उन्हें ट्रान्सएटलांटिक गठबंधन से कुछ और ज्यादा करने की जरूरत है. यूरोप के सशस्त्रीकरण का ये स्पष्ट संकेत है कि पहले जर्मनी ने अपना रक्षा बजट बढ़ाया है और अब स्वीडन और फिनलैंड नाटो में शामिल होने पर विचार कर रहे हैं.
स्कोल्ज़ का नया जर्मनी
जर्मनी सबसे बड़ा यूरोपीय देश है और इस क्षेत्र में सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में इसकी पहचान है. यह द्वितीय युद्ध के अपराध-बोध की वजह से अपनी सैन्य प्रोफ़ाइल को मजबूत करने के लिए हमेशा अनिच्छुक रहा है. हालांकि, इसके नए चांसलर, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के ओलाफ स्कोल्ज़ अब इस स्थिति में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए के पसोपेश में बिल्कुल नहीं दिख रहे हैं.
स्कोल्ज़ ने रक्षा खर्च में 100 अरब यूरो (113 अरब डॉलर) के एकमुश्त इजाफे का ऐलान किया है. वे अब जर्मनी के आर्थिक उत्पादन का 2 प्रतिशत (करीब 84 अरब डॉलर) सालाना रक्षा पर खर्च करना चाहते हैं. ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के वैश्विक मैक्रो मॉडल और विश्लेषकों के मुताबिक 2022 के अंत तक जर्मनी की जीडीपी के 4,200 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. इस परिप्रेक्ष्य में भारत का वार्षिक रक्षा खर्च 2022-23 70 बिलियन डॉलर से थोड़ा अधिक है.
रूसी आक्रमण के कुछ घंटों बाद ही जर्मनी ने अपनी सैन्य नीति को बदल डाला. स्कोल्ज़ सरकार ने शनिवार (26 फरवरी) को घोषणा की कि वह 1,000 कंधे से दागे जाने वाले एंटी टैंक रॉकेट और 500 सरफेस-टू-एयर स्टिंगर मिसाइल यूक्रेन भेजेगी. समाचार एजेंसियों के मुताबिक, जर्मनी ने डचों को जर्मन निर्मित एंटी-टैंक हथियार यूक्रेन को भेजने की अनुमति दी है और एस्टोनियाई सरकार को नौ पुराने हॉवित्जर भेजने की अनुमति दी है. यह सब संघर्ष क्षेत्रों में हथियार भेजने की जर्मन नीति के बहुत खिलाफ है. इस बीच, स्वीडन ने बाल्टिक सागर में स्थित अपने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण गोटलैंड द्वीप पर सैनिकों को भेजा है. उधर डेनमार्क ने भी इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है.
नॉर्डिक की बेचैनी
रूसी आक्रमण के मद्देनज़र फिनलैंड और स्वीडन दोनों देशों में एक बहस छिड़ गई है कि क्या उन्हें नाटो में शामिल होना चाहिए. हालांकि, बड़ी चिंता यूरोप को विभाजित और अस्थिर करने के मास्को के प्रयास पर है, जो क्रेमलिन के पक्ष में शक्ति संतुलन को शिफ्ट करना चाहता है. करीबन 1340 किलोमीटर की सीमा फिनलैंड और रूस साझा करते हैं. बहरहाल सशस्त्र संघर्षों की वजह से इस सीमा को कई बार आगे और पीछे धकेला गया है. मॉस्को संधि (12 मार्च, 1940) के मुताबिक, फ़िनलैंड को कुल 35,084 वर्ग किलोमीटर का फ़िनिश करेलिया और सल्ला सोवियत संघ को सौंपना पड़ा और हैंगो के अतिरिक्त 117 वर्ग किलोमीटर को 'लीज़' पर देना पड़ा.
शुक्रवार को रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने घोषणा की कि अगर स्वीडन और फ़िनलैंड को नाटो का सदस्य बनाया गया तो इस कदम के "गंभीर सैन्य और राजनीतिक परिणाम होंगे." यूक्रेन की स्थिति के संबंध में एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्वीडन और फिनलैंड को नाटो महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग के निमंत्रण के बाद रूस की यह प्रतिक्रिया आई थी. ऑस्ट्रिया, आयरलैंड, साइप्रस और माल्टा के साथ फिनलैंड और स्वीडन यूरोपीय संघ के दो ऐसे राष्ट्र हैं जो अभी तक नाटो के सदस्य नहीं हैं. द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से दोनों देश सैन्य रूप से तटस्थ रहे.
एक बयान में, ज़खारोवा ने कहा, "फिनलैंड और स्वीडन सहित OSCE (आर्गेनाइजेशन फॉर सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप) के सभी सदस्य-देशों ने अपनी राष्ट्रीयता के तहत इस सिद्धांत की पुष्टि की है कि एक देश की सुरक्षा दूसरे राष्ट्र की सुरक्षा की कीमत पर नहीं बनाया जा सकता है." OSCE सुरक्षा के मुद्दे पर दुनिया का सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है जिसे संयुक्त राष्ट्र में पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ है. ज़खारोवा ने कहा था, "बेशक,जैसा कि आप अच्छी तरह से समझते हैं कि फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने के गंभीर सैन्य और राजनीतिक परिणाम होंगे. नाटो मुख्य रूप से एक सैन्य गठबंधन है और इसके खिलाफ हमारे देश को कदम उठाने की जरूरत होगी."
स्वीडन रूस के साथ सीमा साझा नहीं करता है, लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति और मौजूदा संघर्ष के फैलाव से इसके हित प्रभावित हो सकते हैं. स्वीडन और रूस बाल्टिक सागर में गोटलैंड द्वीप के मुद्दे पर बंटे हुए हैं जहां अक्सर मास्को की सैन्य कार्रवाई होती रहती है. स्वीडन के प्रधानमंत्री मैग्डेलेना एंडरसन ने शुरुआत में 22 फरवरी के रूसी हमले को "आक्रमण" कहने से बच रहे थे. हालांकि, स्वीडन की प्रतिक्रिया दो दिन बाद बदल गई. एंडरसन ने ट्वीट किया: "स्वीडन रूस के यूक्रेन पर चल रहे आक्रमण की कड़े शब्दों में निंदा करता है. रूस की हरकतें यूरोपीय सुरक्षा व्यवस्था पर भी हमला हैं. इसका सामना यूक्रेन के साथ एकजुटता निभाते हुए मजबूती के साथ दिया जाएगा. इस मानव पीड़ा के लिए अकेले रूस जिम्मेदार है."
रूस के खिलाफ यूरोप
यूरोपीय देश संयुक्त रूप से इस कोशिश में जुटे हैं कि किस तरह रूस के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को पंगु बना दिया जाए. रूस के खिलाफ यूरोपीय देशों के नए प्रतिबंधों के बाद डॉलर के मुकाबले रूबल में 40 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. सेंट्रल बैंक ऑफ रूस पर नए प्रतिबंध के बाद रूबल को बचाने की कोशिश में अपने 630 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार के इस्तेमाल की रूस की क्षमता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा.
यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और उनके सहयोगियों द्वारा स्विफ्ट से कई रूसी बैंकों को अलग करने का कदम मॉस्को पर लगाया गया अब तक का सबसे कठोर उपाय है. रूस के केंद्रीय बैंक की संपत्ति को भी फ्रीज कर दिया जाएगा, जिससे विदेशों में मुद्रा-भंडार के इस्तेमाल की रूस की क्षमता भी सीमित हो जाएगी. एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि हमलोगों का इरादा "रूस को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली से अलग करना" है. रूस अपने तेल और गैस के निर्यात के लिए SWIFT प्रणाली पर बहुत निर्भर है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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