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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने एक नवीन विश्व व्यवस्था का स्पष्ट संकेत दे दिया है
गौरव कुमार।
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने एक नवीन विश्व व्यवस्था का स्पष्ट संकेत दे दिया है। वैश्विक महाशक्तियों के टकराव की आशंका के साथ विश्व की अगुवाई करने वाले नए समूह के गठन की संभावनाओं को भी नकारा नहीं जा सकता है। इतिहास खुद को दोहराता है और यह बात साबित होती भी दिख रही है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जिस प्रकार विश्व दो ध्रुवों में बंट गया था, आज एक बार फिर वैसा ही परिवेश तैयार हो चुका है।
कोरोना के पूर्व और बाद में वैश्विक अस्थिरता और अशांति की स्थितियों के बीच जिस प्रकार विश्व के विभिन्न देश आंतरिक और बाहरी संघर्ष से जूझ रहे हैं, वह स्पष्ट रूप से विश्व को एक नई दिशा की ओर धकेलने वाला है। चाहे वह रूस और यूक्रेन का जारी युद्ध की स्थिति हो, अफगानिस्तान का मुद्दा हो, सीरिया का मुद्दा हो, इरान-अमेरिका विवाद, ईराक- इजराइल विवाद, पश्चिम एशिया सहित समूचा मध्य पूर्व और एशिया किसी न किसी विवाद में फंसा हुआ है। दूसरी तरफ चीन की विस्तारवादी नीति के कारण दक्षिण चीन सागर क्षेत्र सहित विभिन्न देशों में कई तरह के नए स्वरूपों में विवाद बनते जा रहे हैं।
नाजुक और बेहद संतुलित सामरिक संबंधों की विश्व व्यवस्था निरंतर परिवर्तनकारी रहती है। विश्व व्यवस्था की नवीन संरचना भी इसी सिद्धांत पर निर्भर है। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर जिस प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं उसने विश्व व्यवस्था के नए आयाम खड़े किए हैं। इसमें विभिन्न देशों के आंतरिक संबंध ही नहीं, बल्कि द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंध भी लगातार बदल रहे हैं। विगत वर्ष जब अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच जेनेवा में आयोजित शिखर बैठक संपन्न हुई थी, उससे कई तरह के कयास लगाए गए थे। दोनों बड़ी शक्तियों के नेताओं की मुलाकात ऐसे समय में हुई थी, जब दोनों देशों के नेताओं का मानना था कि अमेरिका और रूस के संबंध अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर सामरिक जानकार इसका विश्लेषण अलग-अलग तरीके से कर रहे थे। हालांकि इस शिखर सम्मेलन से जितनी उम्मीदें की जा रही थीं, उतनी संभव नहीं थी। लेकिन इसे तनाव कम करने और कूटनीतिक संबंधों की बहाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा था। एक साल भी नहीं बीते कि मामला फिर से वहीं पहुंच गया। यूक्रेन मामले ने इस आग में घी डालने का काम कर दिया।
विगत कुछ वर्षों से भारत का अमेरिका और रूस दोनों के साथ अच्छे संबंध बने हैं। किंतु हाल के समय में रूस के साथ संबंधों में थोड़ी जटिलता दिखने लगी है। विगत कुछ वर्षों से रूस और भारत के संबंधों में अमेरिका का कारक हावी हो गया है। भारत के साथ रूस के संबंधों का नया आकलन कुछ नए उभरते समीकरणों से भी हो रहा है कि रूस की नजदीकियां चीन और पाकिस्तान से बढ़ रही हैं। यह स्थिति भारत के लिए काफी चिंताजनक है। इस चिंता की जो प्रमुख वजह है वह क्षेत्रीय शक्ति संतुलन, भारत की सुरक्षा चुनौतियां और भारत का करीब 60 प्रतिशत रक्षा उपकरणों के लिए रूस पर निर्भरता भी है।
इस चिंता को बढ़ाने का काम किया है हाल के कुछ वर्षों में अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते तनाव ने। इसका व्यापक असर भारत के साथ रूस के संबंधों पर पड़ रहा है और भविष्य में इसके और भी गहराने की आशंका है। वैसे देखा जाए तो भारत और रूस शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से ही बेहद करीबी दोस्त के तौर पर अपने संबंधों को निर्धारित करते रहे हैं। अब तक कोई प्रत्यक्ष हितों के टकराव का मामला दोनों देशों के बीच नहीं उत्पन्न हुआ है। किंतु अमेरिका के साथ भारत के संबंधों के प्रगाढ़ होने के साथ कई बार रूस भारत से छिटकने की स्थिति में आता दिखा है। इसके समानांतर भारत भी रूस का चीन के साथ बढ़ती नजदीकियां नहीं देख सकता।
इतने सारे जटिल द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों के बीच भारत के लिए सामरिक चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं। रूस और यूक्रेन के बीच के ताजा विवाद के साथ इस नई विश्व व्यवस्था को लेकर कुछ भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। लेकिन इतना अवश्य है कि इस बात की पूरी संभावना है कि इस संघर्ष का परिणाम चाहे जो भी हो विश्व के सामने एक नई विश्व व्यवस्था जरूर उभरेगी। इस नई व्यवस्था का स्वरूप क्या होगा, इसका कितना विस्तार या व्यापकता होगी, इसे भी अभी कहना मुश्किल होगा। इसके साथ ही विश्व के ध्रुवीकरण का भी माहौल शुरू हो जाएगा जिसका असर संयुक्त राष्ट्र सरीखे वैश्विक संगठन पर भी पड़ेगा।
विश्व व्यवस्था में बदलाव स्वाभाविक है। यह इतिहास के विभिन्न कालखंडों में होता रहा है, इस बार भी हो रहा है। लेकिन जो दो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य हैं, वे रूस-यूक्रेन विवाद से ही नहीं उभरे हैं। वास्तविकता यह भी है कि करीब तीन वर्षों से विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। कोरोना का उद्गम चीन रहा है और चीन को लेकर विश्व समुदाय में इस आशंका को बल दिया जाता रहा है कि वह अपने व्यापारिक इरादों की सफलता के लिए किसी भी हथकंडे को अपना सकता है। यहां से विश्व के सामने एक नए दृष्टिकोण ने जन्म लिया जिसे विश्व में उत्पन्न विविध अव्यवस्था के साथ कोरोना महामारी से जूझने से लेकर टीकाकरण और वैक्सीन कूटनीति तक एक विशिष्ट समीकरण ने जन्म लिया है। इसकी परिधि में चीन, रूस, अमेरिका, पाकिस्तान, यूरोपिय देश और यूक्रेन तक शामिल रहे हैं। अब जो परिस्थिति उत्पन्न हो चुकी है उसमें ये सभी अब केंद्र में आ चुके हैं और यहीं से विश्व में बदलाव की व्यवस्था का सूत्रपात हो चुका है। इससे विश्व के सभी देश प्रभावित होंगे जिसमें केवल अर्थव्यवस्था ही नहीं, बल्कि सामरिक और सुरक्षा भी बड़े मुद्दे बनेंगे।
बहरहाल हम स्थिति को बदल नहीं सकते, किंतु स्थिति की गंभीरता के अनुरूप अपनी रणनीति बना सकते हैं और उस पर रणनीतिक रूप से काम कर सकते हैं। चिंता की एक अन्य बात यह भी है कि अभी यूक्रेन में जो कुछ हो रहा है वह भारत या विश्व के अन्य देशों के लिए एक उदाहरण न बन जाए। यदि ऐसा होता है तो विश्व में एक नई प्रकार की अशांति और तनाव का परिवेश कायम हो सकता है।

Rani Sahu
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