सम्पादकीय

Russia Ukraine War : अगर अमेरिका चाहता है यूक्रेन वॉर पर भारत अपना रुख बदले तो उसे उसकी कीमत चुकानी होगी

Gulabi
5 March 2022 11:50 AM GMT
Russia Ukraine War : अगर अमेरिका चाहता है यूक्रेन वॉर पर भारत अपना रुख बदले तो उसे उसकी कीमत चुकानी होगी
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अमेरिका को डिफेंस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करनी होगी
के वी रमेश।
भारत के लिए यह समय बड़े जोखिम से भरा है. पश्चिम को नाराज करने का इसे नुकसान तो होगा, लेकिन इसे बर्दाश्त किया जा सकता है. लेकिन पुतिन (Vladimir Putin) के विरोध में खड़ा होना कहीं ज्यादा महंगा साबित हो सकता है. रक्षा संबंधों को अगर अलग भी रख दें तो पुतिन, जो कि भारत-चीन टकराव में अब तक निष्पक्ष बने रहे हैं, चीन (China) के पाले में जा सकते हैं. और बुरी स्थिति में रूस, पाकिस्तान (Pakistan) को सस्ते सैन्य उपकरण देना शुरू कर सकता है, जो कि ऐसे ही अप्रत्याशित लाभ की उम्मीद लगाए बैठा है. मॉस्को में नया दोस्त पाकर पाकिस्तान वेस्टर्न फ्रंट पर फिर से छल-कपट शुरू करने का साहस जुटा लेगा.
चीन-पाकिस्तान-रूस का त्रिपक्षीय गठजोड़ भारत के लिए खतरनाक साबित होगा. रूस का दबाव चीन से हटा तो वह और आक्रामक हो जाएगा. रूस का समर्थन हटने के बाद सेंट्रल एशिया में भारत की उम्मीदें टूट जाएंगी. सस्ती ऊर्जा और अपने माल को खपाने का एक पूरा मार्केट हाथ से जा सकता है, क्योंकि सेंट्रल एशिया के पांच अहम देश CSTO (कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) के सदस्य हैं और ये मॉस्को के इशारे पर चलते हैं. यह त्रिपक्षीय गठजोड़ शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) में भी भारत की स्थिति कमजोर कर देगा. ऐसे में यह सदस्यता किसी काम की नहीं रह जाएगी.

अमेरिका को डिफेंस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करनी होगी
वोट को लेकर भारत ने जो रुख अख्तियार किया है, उससे आगे बढ़कर विचार करने की जरूरत है कि आने वाले समय में भारत को क्या करना चाहिए. विदेश मंत्री एस जयशंकर को यहां बेहद अहम भूमिका निभानी होगी. भारत को रूस और पश्चिमी देशों के लिए लाइन ओपन रखनी होगी. अगर भारत रूस के खिलाफ रेजॉल्यूशन के पक्ष में कभी वोट भी करता है तो नई दिल्ली को चाहिए कि वह मॉस्को को मैसेज दे कि यह कदम पश्चिमी देशों के दबाव में नहीं उठाया गया बल्कि देश के भीतर जनता की आवाज पर लिया गया है. पुतिन को यह बताया जाना चाहिए कि यूक्रेन पर रूसी हमले की पल-पल की कवरेज से भारत की जनता का मत रूस के खिलाफ हो रहा है. हालांकि, यह वही भारत की जनता है जो कि रूस को प्यार करती रही है. पब्लिक को नजरअंदाज करने के दुष्परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि ऐसी स्थिति में पश्चिमी देश चुनावों पर असर डाल सकते हैं. इस तर्क से पुतिन सहमत और असहमत हो सकते हैं, लेकिन यह सबसे सही दांव होगा.
इसी प्रकार से पश्चिम को भी मैनेज करना होगा. भारत को पश्चिम को मजबूती से बताना होगा, खासतौर पर अमेरिका को, कि UNGA (यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली) में भारत के वोट की कीमत है. सबसे पहले तो रूस के साथ S-400 डील को CAATSA (काउंटरिंग अमेरिकाज एजवर्सरीज थ्रू सैंग्सन्स एक्ट) से अलग रखना होगा. अमेरिका को डिफेंस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करनी होगी. साथ ही उसे हार्डवेयर भी देने होंगे. अमेरिका को न्यूक्लियर सबमरीन और निमित्ज क्लास एयरक्राफ्ट भी भारत को देने होंगे, ताकि चीन से टकराव की स्थिति में उससे निपटा जा सके.
भारत को चाहिए कि वह एकदम स्पष्टता से पश्चिम को याद दिलाए कि क्वॉड (क्वाड्रीलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग) सदस्यों में जापान के बाद भारत ही ऐसा देश है, जो चीनी खतरे का सामना कर रहा है. क्वाड सदस्यों में भारत इकलौता ऐसा देश है, जिसकी जमीनी सीमा चीन से लगती है. 1979 में हुए चीन-वियतनाम युद्ध के बाद से भारत ही इकलौता देश है जिसने जानमाल का नुकसान झेला है. युद्ध की स्थिति में जापान और भारत ही हैं, जिन्हें सीधे खतरा है, क्योंकि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तो काफी दूर हैं.
भारत को इस आपदा में अवसर सुनिश्चित करना होगा
भारत को पश्चिम को यह भी समझाना होगा कि पुतिन ऐसे नेता नहीं हैं जो पूरे रूस की अगुवाई करते हैं. वहां विरोध के स्वर उभर रहे हैं. रशियन इकॉनमी में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले प्रभावशाली लोग यूक्रेन पर पुतिन के हमले को पसंद नहीं कर रहे हैं. उनके बिजनेस इंट्रेस्ट पश्चिमी देशों के साथ जुड़े हैं. इनमें से दो – ओलेग डिराइपास्का और यूक्रेन बॉर्न मिखाइल फ्राइडमैन – जिनका रूस में बहुत बड़ा बिजनेस है, पहले ही पुतिन के इस कदम के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं. दूसरे कारोबारी भी विरोध में हैं. इसके अलावा लेखक, कवि, कलाकार और यंग एक्टिविस्ट भी युद्ध के खिलाफ खड़े हैं. यूएन क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस में ओलेग एनिसिमोव का यूक्रेन के लोगों से माफी मांगना बताता है कि रूस में पब्लिक ओपिनियन क्या है. यूक्रेन भले ही सेवियत यूनियन से अलग चला गया, लेकिन रूसी नागरिक आज भी द्वितीय विश्व युद्ध में यूक्रेनियनों की बहादुरी को नहीं भूले हैं जब वे अपने रूसी भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े थे. उस वॉर को रूस में महान युद्ध के तौर पर देखा जाता है, जिसे रशियंस ने राष्ट्रभक्ति के साथ लड़ा था.
यूक्रेन पर हमले से पहले जब नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में पुतिन ने संबोधन किया था तब उनके तर्क से बहुत से सदस्य इत्तेफाक रखते नजर नहीं आ रहे थे. यहां तक कि इंटेलिजेंस चीफ भी संतुष्ट नहीं दिखे. अगर यूक्रेन के साथ रूस का यह युद्ध लंबा खिंचा तो यूक्रेन के नागरिकों का और खून बहेगा. सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा होगी और पुतिन के दामन पर खून के दाग बढ़ते जाएंगे. ऐसे में रूस के अंदरूनी हालात में तेजी से बदलाव देखने को मिल सकता है. इस स्थिति में तख्तापलट भी हो सकता है, क्योंकि दुनिया में कोई भी नेता ऐसा नहीं है जिसे हटाया न जा सके. विरोध के स्वर जब उभरे तब हिटलर पर भी हमला हो गया था. हिटलर की नाजी जर्मनी में पूजा होती थी, लेकिन जर्मनी आर्मी के ही अफसर ने उन पर बम से हमला कर दिया था, इस अटैक में हिटलर की जान जाते-जाते बची.
मुसोलिनी को भी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था. हालांकि, बाद में उसे जर्मन कमांडोज ने छुड़ाया. ज्यादा पुरानी बात नहीं है मिश्र के राष्ट्रपति अनवर सदत को उनकी ही सेना के जवान ने मार गिराया. भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके ही बॉडीगार्डों ने गोली मार दी थी. कुछ भी हो सकता है, अगर क्रेमलिन में यह संदेश चला गया कि बस अब बहुत हो गया. जब कोविड-19 आया तब मोदी सरकार के कुछ जीनियस मिनिस्टर्स ने 'आपदा में अवसर' की बात की. हालांकि, वे उस तरह से काम नहीं कर पाए जैसी उम्मीद थी. लेकिन अब आपदा है और भारत को इसमें अवसर सुनिश्चित करना होगा, जो कि NATO देशों और क्रेमलिन के बीच चल रही कड़ी प्रतिद्वंद्विता के बीच छिपा है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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