सम्पादकीय

Russia Ukraine War: रूस से जंग के बीच 'Ghost of Kyiv' बना यूक्रेनवासियों का युद्ध-नायक

Gulabi
1 March 2022 4:55 PM GMT
Russia Ukraine War: रूस से जंग के बीच Ghost of Kyiv बना यूक्रेनवासियों का युद्ध-नायक
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रूस से जंग के बीच
बिक्रम वोहरा
Russia Ukraine War: हर युद्ध में वीरता को याद करने के लिए एक कहानी होती है. वह राजा और देश के साथ झंडा भी हो सकता है. वह कोई भी प्रतीक हो सकता है जो मनोबल बढ़ाने के साथ दृढ़ विश्वास को जन्म दे और साहस पैदा करे. यूक्रेन के लोगों ने 'Ghost of Kyiv' को अपनी वीरता का प्रतीक बनाया है. यह यूक्रेन का एक अज्ञात फाइटर पायलट है, जिसने अकेले अपने विमान से दुश्मन देश रूस के 5 से 10 सुखोई और मिग लड़ाकू विमानों को हमला कर गिरा दिया. अब वह यूक्रेन में एक किंवदंती बन गया है. सोशल मीडिया की मदद से वह अब वायरल हो गया है और लोगों में उम्मीद की किरणें जगा रहा है. उसने यूक्रेन के लोगों में अदम्य साहस का संचार किया है – जैसे मुश्किलों के बीच भी यूक्रेन के लोग कह रहे हों कि आखिर जीत उनकी होगी. यह बात मायने नहीं रखती कि 'Ghost of Kyiv' वास्तव में है भी या नहीं, या केवल एक झूठे प्रचार का नतीजा है. लेकिन रूसी हमलों के बीच उसने लोगों की कल्पना में तो अपना घर बना ही लिया है. आगे जब भी यूक्रेन का इतिहास लिखा जाएगा तो रूसी काफिले को रोकने के लिए एक पुल को उड़ाने के लिए अपनी जान देने वाले सैनिक के साथ 'Ghost of Kyiv' का भी जिक्र जरूर होगा. इनसे प्रेरणा लेकर हजारों सैनिक और फाइटर पायलटों के मन में ये विचार जरूर कौंधेगा कि जब वो साहस दिखा सकते हैं तो हम क्यों नहीं?
युद्ध के ये प्रतीक अच्छे, बुरे, दुष्ट और यहां तक ​​​​कि कपटी भी हो सकते हैं. मगर उनमें एक खासियत यह है कि वे देर तक टिके रहते हैं. इस तरह की बातें आने वाले समय में एक मील का पत्थर बन जाती हैं जिनके माध्यम से वह घटना हमारे जेहन में ताजा रहती है. वियतनाम युद्ध तब समाप्त हुआ जब नापाम बम के हमले के बाद 9 साल की बच्ची फान थू किम फुक की डर के मारे बगैर कपड़ों के बदहवास दौड़ती हुई तस्वीर दुनिया के सामने आई. सूडान में केविन कार्टर द्वारा खींची गई एक मरणासन्न बच्चे के सामने गिद्ध की तस्वीर देख कर दुनिया की घिग्घी बंध गई. साठ और सत्तर के दशक में राइफलों के बैरल पर फूल रखने की तस्वीर हिंसा रोकने का प्रतीक बनी. और उस बेहद बहादुर आदमी को भला कौन भूल सकता है जिसने तियानमेन स्क्वायर पर टैंकों का सामना किया था? प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अपने उड़ते हुए स्कार्फ और ब्रिस्टॉल एफ2 विमान से जर्मनी से लोहा लेता हुआ इंग्लैड का बिगल्स हर उम्र के लोगों का दुलारा बन गया. इंग्लैड का बिगल्स पूछता था कि हेंकेल (जर्मन विमान) को मार गिराने के लिए कौन साथ आएगा. यह ताबड़तोड़ बम गिराने वाले फाइटर पायलट का प्रतीक बन गया.
माता हारि जर्मन जासूस थीं, जिन्होंने जासूसी में अपनी काबिलियत को स्थापित किया. माता हारि उर्फ मार्गरेटा गीर्ट्रूडा "मैग्रीट" ज़ेले मैकलियोड डच मूल की एक नर्तकी थीं जिन्हें जर्मनी के लिए जासूसी करने के आरोप में फ्रांस में फांसी दे दी गई थी. आज भी चतुर महिलाओं के लिए उनके नाम का इस्तेमाल किया जाता है. इन सभी में एक लक्षण समान है – ये सभी दुश्मनों में बेचैनी पैदा कर देते थे. जैसे इटली के प्रतिभाशाली कलाकार गीनो बोकासिल, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में फासीवादी शासन के पोस्टर अभियान चलाया था. जापानियों के पास कामिकेज आत्मघाती दस्ते थे जो खुशी में चिल्लाते हुए अपने शिकार पर अचूक हमला करते थे. उनकी मानसिकता हक्को इचिऊ (दुनिया की आठ कोनों को मिलाने को लेकर जापानी स्लोगन) की मानसिकता से प्रभावित थी. इसके लिए मरना भी उन्हें गवारा था. याद है एक्सिस सैली, अमेरिकी अभिनेत्री मिलड्रेड गिलर्स, जिसने सिर्फ जर्मनी सेना का मनोबल गिराने के लिए अमेरिकी सेना के लिए गीत गाया.
असल में इस तरह के नायक हर तरह के रंग, रूप में सामने आते हैं. ये सामरिक महत्व रखते हैं और विरोधियों के लिए नर्क से कम नहीं होते. अंग्रेजों ने अपने सैनिकों को पैराजंपर रूपर्ट दिया जो टाट या बोरे और कचरे से बना था. इन्हें जर्मनी के आधिकार वाले इलाके में पैराशूट से गिराया गया ताकि उनका ध्यान बंट जाए. यैंक्स ने युद्ध के लिए ऑडी मर्फी को अपना पोस्टर हीरे बनाया जो बाद में एक फिल्म स्टार (टू हेल ऐंड बैक) और द्वितीय विश्व युद्ध का सबसे ज्यादा मेडल पाने वाला सैनिक बना. भारत के पास भी साहस बढ़ाने वाले इस तरह के कई प्रतीक हैं. याद करें केलोर भाइयों – ट्रेवर और डेनजेल – को जिन्होंने 1965 के युद्ध में अपने छोटे नेट विमान से पाकिस्तान के अत्याधुनिक सैबर जेटों को मार गिराया. 'असल उत्तर' की लड़ाई को 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में सबसे बड़े टैंक युद्ध के लिए जाना जाता है.
4 ग्रेनेडियर्स के क्वार्टरमास्टर हवलदार अब्दुल हमीद ने यहां आठ पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया और नौवें टैंक को नष्ट करते हुए शहीद हो गए. सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने 1971 में शहीद होने से पहले 10 पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया. लांस कॉर्पोरल अल्बर्ट एक्का ने 1971 में गंगासागर में दुश्मन के पोस्ट को देखा जहां से भारतीय सेना पर भारी गोलाबारी हो रही थी. एक्का ने दुश्मन के एक सैनिक को लाइट मशीन गन के साथ देखा जो उनकी कंपनी को भारी नुकसान पहुंचा रहा था. अपनी सुरक्षा का ख्याल नहीं रखते हुए एक्का ने दुश्मन के बंकर पर धावा बोल दो सैनिकों पर राइफल की संगीन से हमला किया जिससे उनकी बंदूकें शांत हो गईं. भारतीय पोस्ट एंड टेलीग्राफ ने एक्का के सम्मान में डाक टिकट जारी किया. उन दिनों न व्हाट्सएप होता था, न फेसबुक, न कंप्यूटर. लेकिन उन दिनों ये हमारे हीरो होते थे जिन्होंने हमें बेहतर और मजबूत महसूस कराया… और हां, अजेय भी.
1962 के मेजर शैतान सिंह और उनके 120 सी कंपनी 13 कुमाऊं के यादव जवानों को कोई भूल नहीं पाएगा. उन पर कोई ब्लॉकबस्टर फिल्म भी नहीं बनी. मगर इन बहादुरों ने बगैर पीछे से सहायता आए लहर की तरह आ रहे एक हजार से ज्यादा चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. क्या अदम्य साहस का परिचय उन्होंने दिया. और वो भी तब जब ठंडी जगह पर हमारे सैनिकों के पास पहनने को गर्म कपड़े भी नहीं थे और चीनियों की तुलना में काफी कमजोर हथियार थे. फिर भी उन्होंने साहसिक काम किया.हमेशा मनुष्य ही कुछ बड़ा करे ये जरूरी नहीं. शुरुआत में काफी बदनाम रहे बोफोर्स 155 एमएम होविट्जर तोप ने 1999 के कारगिल संघर्ष में हमें बड़ी बढ़त दिलाई. वहां यह बात कभी सामने नहीं आई कि हमारे हथियार कितने कमजोर थे और आज भी हैं.
रूस और यूक्रेन की तरफ लौटें तो विश्व युद्ध के दौरान एक सोवियत स्नाइपर लेडी ऑफ डेथ से मशहूर हुई. ल्यूडमिला मिखाइलोव्ना पावलिचेंको राइफल से अचूक निशाना लगाती थी. 300 लोगों को अपने अचूक निशाने से मौत के घाट उतारने का रिकॉर्ड उनके नाम है. उनकी उपस्थिति रूस के दुश्मनों के लिए अभिशाप थी. खास बात यह है कि वह एक यूक्रेनी महिला थीं, जो कीव के दक्षिण में बिला त्सेरकवा में पैदा हुई थी, और इससे भी बड़ी बात यह है कि वे सोवियत संघ की वॉर हीरो थी! इसलिए, यूक्रेन के लोगों के बीच उनके 'Ghost of Kyiv' को रहने दीजिए. उनके लिए उसका अस्तित्व वास्तविक है. वहां की मौजूदा स्थिति में उसे होना ही चाहिए… और उसे ऊंचाई पर उड़ना भी चाहिए. भले ही वह काल्पनिक क्यों न हो.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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