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अमेरिकी नरमी की वजह से रूस का हौसला लगातार बढ़ता रहा
रविशंकर बुद्धवरप्पु
"आक्रमण". यह वह भारी शब्द है जो राजनीतिक उम्मीदों के बोझ तले दब सकता है. रक्षा मामले में कमजोर छवि वाले अमेरिका के जो बाइडेन (Joe Biden) प्रशासन ने यूक्रेन में रूस की कार्रवाई के लिए 'आक्रमण' (Invasion) शब्द का प्रयोग किया है. सोमवार के नर्म रुख के बाद अमेरिका की भाषा में आक्रामकता आयी, जब उसने यूक्रेन (Ukraine) के राज्यों दोनेत्सक और लुहांस्क (संयुक्त रूप से डॉनबास) में रूस की सेना के दाखिल होने को 'आक्रमण' बताया.
विडंबना यह है कि रूस के खिलाफ नर्म रुख अपनाना अमेरिका में एक राजनीतिक समस्या बन गई है. भले ही शीत युद्ध के तीन दशक बीत चुके हों, रूस और पुतिन की याद अब भी अमेरिका को आती रहती है. मगर लगता है अब बहुत देर हो चुकी है.
लड़ाई को लेकर अमेरिका में किसी तरह की चाहत नहीं
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पहले ही वह हासिल कर लिया है जो उन्हें चाहिए था. उन्हें जो चीज रोक सकती है उस स्तर तक जाने की बाइडेन या अमेरिका में कुव्वत नहीं दिखतीः यूक्रेन के विद्रोहियों को हथियार मुहैया कराना या यूक्रेन में अमेरिकी सैनिक तैनात करना. 2014 के फ्लैशबैक में जाएं: रूस का क्राइमिया पर 'आक्रमण' जो बाद में 'कब्जे' में बदल गया. अमेरिका इस तरह के क्रमिक प्रतिबंधों का इस्तेमाल पहले भी कर चुका है, जब बाइडेन अमेरिका के उप-राष्ट्रपति थे और बराक ओबामा राष्ट्रपति, यानि उनके बॉस. 2014 में रूसी आक्रमण से पहले अमेरिका ने यूक्रेन के विद्रोहियों को हथियारों की आपूर्ति बंद कर दी थी. हमलों के बाद पुतिन, उनके करीबी सहयोगियों और रूस की बड़ी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा कर सजा दी गई थी.
उस वक्त ओबामा प्रशासन को उम्मीद थी कि इन प्रतिबंधों का रूस पर आर्थिक रूप से बड़ा असर पड़ेगा और उसके व्यवहार में बदलाव आएगा. मगर ऐसा हुआ नहीं. यूक्रेन पर रूस की कार्रवाई के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन को विपक्ष के साथ सत्तापक्ष के भी कट्टर रूस विरोधी सांसदों की आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है.
प्रतिबंधों की जरूरत सजा के रूप में नहीं बल्कि रोकने के मकसद से
पहली समस्या प्रतिबंधों की है – उनकी तीव्रता और उनकी व्यापकता दोनों की. अमेरिका कई हफ्ते से दावा कर रहा है कि अगर पुतिन यूक्रेन पर हमला करते हैं तो वो अपनी पूरी सैन्य ताकत के साथ जवाब देगा. पहला तो यही वादा है जिसे अमेरिका ने तोड़ा है. 2 फरवरी को सैंक्शन्स कॉनफ्रेंस में व्हाइट हाउस के सहयोगी पीटर हैरेल ने कहा, "हम पारंपरिक रूप से क्रमिक तौर पर प्रतिबंधों को बढ़ाने वाला रुख नहीं अपनाएंगे जिसका हमने पूर्व में इस्तेमाल किया है. तब हमने सरकारी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने के बाद रूस की बड़ी सरकारी कंपनियों और आखिर में रूस के रणनीतिक सेक्टर पर एक के बाद एक प्रतिबंध लगाए थे."
"इसके बजाय हम शुरुआत में ही पूरी ताकत से प्रतिबंध लगाने वाली नीति अपनाएंगे और उस पर लंबे समय तक कायम रहेंगे." मगर अमेरिका के रुख में नर्मी साफ दिख रही है. व्हाइट हाउस ने रूस के बड़े बैंकों पर प्रतिबंध नहीं लगाए हैं. उसने मित्र देशों से सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्यूनिकेशन (SWIFT) से रूस को हटाने का भी प्रस्ताव नहीं दिया है. दूसरे वादे का लेना-देना दंड देने के उपाय की संरचना और समय के साथ है. इसे पुतिन की योजनाओं का हवाला देते हुए सार्वजनिक रूप से साझा किए गए इंटेलिजेंस इनपुट के साथ बार-बार दोहराया गया.
जिन रिपब्लिकन सांसदों ने बाइडेन को रूस पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रोत्साहित किया उन्होंने मंगलवार (22 फरवरी) को आधे-अधूरे प्रतिबंधों के लिए उनकी आलोचना की. वरिष्ठ सीनेटर और विदेश नीति पर आक्रामता रखने वाले सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने घटनाक्रम को "1930 के दशक में लौटने" वाली संज्ञा दी.
अमेरिका ने पुतिन को कमतर आंका
डेमोक्रेट पार्टी के शक्तिशाली सिनेटर और फॉरेन रिलेशंस कमेटी के बॉब मेनेंडेज ने कहा कि अमेरिका चाहता था कि प्रतिबंधों में वजन हो. वह सजा के बजाए रूसी आक्रमकता को रोकने के रूप में उठाया गया कदम अधिक लगे. मेनेंडेज़ ने कहा, "पता नहीं हम किस चीज का इंतज़ार कर रहे हैं." नाजी जर्मनी को चेकोस्लोवाकिया के कुछ हिस्सों पर कब्जा करने की इजाजत देने वाले 1938 के समझौते का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, "यहां पर हम दूसरा म्यूनिख समझौता होते नहीं देख सकते." हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने दावा किया कि नए प्रतिबंध पहले लागू किए गए प्रतिबंधों से "काफी कड़े" हैं. उन्होंने इस आरोप को उपहास में उड़ाया कि अमेरिका ने पुतिन को कमतर आंका है. लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि व्हाइट हाउस ने मंगलवार की शाम का ज्यादातर हिस्सा अपने उस रुख को उचित साबित करने में लगाया कि क्या ये फैसले रूस को रोकने के लिए काफी होंगे.
बाइडेन की परेशानी भांप कर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी विवाद में शामिल हो गए. रिपब्लिकन पार्टी के भरपूर समर्थन के साथ पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने भी पुतिन पर टिप्पणी की. 2016 के अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप पर पुतिन के साथ मिलिभगत का आरोप लगा था. एक रेडियो इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा, "मैं कल टीवी देख रहा था. पुतिन ने यूक्रेन के एक बड़े हिस्से को स्वतंत्र घोषित कर दिया. यह अद्भुत है." पूर्व राष्ट्रपति ने जोड़ाः "तो पुतिन अब कह रहे हैं, 'यह स्वतंत्र है,' यूक्रेन का एक बड़ा हिस्सा."
ट्रंप ने कहा, "कितने स्मार्ट हैं वे? पुतिन अब यूक्रेन के दो हिस्सों को स्वतंत्र देश घोषित करने के बाद वहां पर शांति स्थापित करेंगे." "अमेरिका अपनी दक्षिणी सीमा पर इस नीति का इस्तेमाल कर सकता है. यह 'शांति स्थापना' की अब तक की सबसे मजबूत सेना होगी, जहां तक मैंने देखा है. यह व्यक्ति बेहद होशियार है… मैं उसे बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. बहुत, बहुत अच्छी तरह से." पुतिन धैर्यपूर्वक व्हाइट हाउस के फिर से उसकी 'भाषा' बदलने का इंतजार कर रहे हैं. वह चाहते हैं कि 2022 को उस साल के रूप में याद किया जाए जिस साल उन्होंने 'आक्रमण' के बाद डोनेस्क और लुहान्स्क पर 'कब्जा' कर लिया.
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