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कोरोना और वैश्वीकरण वर्तमान समय के दो सबसे चर्चित मुद्दे हैं
ज्योतिर्मय रॉय.
कोरोना (Corona) और वैश्वीकरण (Globalization) वर्तमान समय के दो सबसे चर्चित मुद्दे हैं. आधुनिक संचार प्रणाली और परिवहन व्यवस्था ने दुनिया के विभिन्न प्रांतों में रहने वाले लोगों के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को जोड़ने में मदद की, जिसके कारण विश्व के विभिन्न राष्ट्र या राज्यों के विचार आपस में एक दूसरे से जुड़े, जिसे हम वैश्वीकरण कहते हैं. दुनिया आज एक वैश्विक गांव बन गया है, और हम उस वैश्विक गांव के सदस्य हैं. यही कारण है कि आज दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली किसी भी घटना जैसे रूस-यूक्रेन विवाद (Russia-Ukraine tension) ही ले लीजिए, से हम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित होते हैं.
इस शताब्दी के त्रासदी रहे कोरोना महामारी ने वैश्वीकरण को प्रभावित किया है, जिसके कारण भू-राजनीति में भी हलचल देखने को मिल रही है. कोरोना के कारण वैश्वीकरण में आए परवर्तन ने एक नई वैश्विक व्यवस्था उत्पन्न कर रहा है, जो विश्व के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित और नियंत्रित करेगा. अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश वैश्वीकरण के मूल वाहक हैं.
वैश्वीकरण ने विश्व को बेहतर जीवन का सपना दिखाया
वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप पूरे विश्व में विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी का विस्तार हुआ है, चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति हुई है. वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप, लोगों को एक देश से दूसरे देश की यात्रा करने में आसानी हुई है. वैश्वीकरण ने विश्व के कोने-कोने में रह रहे लोगों से आधुनिक जीवन शैली का परिचय कराया है. आज लोग पश्चिमी जीवन शैली को आधुनिक मानकर उसका अनुकरण करने का सपना देख रहा हैं, यही वैश्वीकरण का उद्देश्य है. वैश्वीकरण ने आज दुनिया के कोने-कोने में रहने वाले लोगों से आधुनिक जीवन शैली का परिचय कराया है. वैश्वीकरण के कारण आज लोग पश्चिमी जीवन शैली को आधुनिक मानकर अनुकरण करने का सपना देख रहे हैं.
शुरुआत में यह कहा गया था कि वैश्वीकरण एक नई वैश्विक आर्थिक व्यवस्था है, जो विश्व व्यापार के सुचारू संचालन के लिए राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के नीति निर्धारक के रूप में काम करेगी. वैश्वीकरण से उम्मीद लगाया जा रहा था कि, वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया में माल और पूंजी का मुक्त प्रवाह होगा. समय के साथ-साथ यह धारणा बदलता गया. सच तो यह है कि, वैश्वीकरण की आड़ में दुनिया पर शासन करने के लिए नई आर्थिक और राजनीतिक रणनीतियों का विकास किया गया. कमजोर राष्ट्रों को नियंत्रित करने के लिए अमीर देशों द्वारा आर्थिक प्रभाव का इस्तेमाल किया जा रहा है.
वैश्वीकरण के कारण उपनिवेशवाद को प्रोत्साहन मिला
आज वैश्वीकरण उपनिवेशीकरण का एक नया रूप बन गया है. वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप, पूंजीपतियों को अपनी पूंजी बढ़ाने का अवसर मिला है. वैश्वीकरण के साथ वे नए उपनिवेश बनाने में सक्षम हुए हैं. वैश्वीकरण के नाम पर एक विशेष पूंजीपतियों कि गोष्ठी ने विश्व राजनीति के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था और संस्कृति को नियंत्रित करने की वैधता हासिल कर ली है. वैश्वीकरण का उपयोग करके अब पूरी दुनिया पर एक विशेष केंद्र से शासन किया जा रहा है. इन पूंजीवादी गुटों द्वारा कभी धर्म के नाम पर तो कभी मानवाधिकारों के हनन के नाम पर छोटे-छोटे राष्ट्रों पर हस्तक्षेप किया जा रहा है.
वैश्वीकरण के विकास में विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी का बहुत बड़ा योगदान है. पूंजीवादी राष्ट्रों द्वारा आवश्यकता के आधार पर एक के बाद एक नई-नई अधीनस्थ संगठन बनते हैं जो वैश्वीकरण के विकास में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. मगर वैश्वीकरण को शुरू में इस तरह से प्रचार किया जाता है कि वैश्वीकरण स्थापित होने पर गरीब देशों को अधिक लाभ होगा, वास्तव में ऐसा नहीं हुआ है. ज्यादातर मामलों में, साम्राज्यवादी देशों ने ही सबसे अधिक लाभ उठाया है और गरीब देशों पर अनिश्चितकालीन अस्थिरता थोपी है. वैश्वीकरण का विचार मुख्यतः पूंजीवादी राष्ट्रों का है, इसलिए उन्होंने ईयू, जी-20, सुरक्षा परिषद, नाटो आदि जैसी संस्थाएं बनाई हैं. सच तो यह है कि महान विचार की आड़ में पूंजीवादी राष्ट्र अपने लाभ के लिए वैश्वीकरण का उपयोग कर रहे हैं. ये पूंजीवादी राष्ट्र संघबद्ध हैं और आपस में मिलकर काम करते हैं.
वैश्वीकरण के नाम पर उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है. शांति बनाए रखने के नाम पर विभिन्न देशों में सैन्य सहायता और सैन्य कार्यवाही के नाम पर विभिन्न देशों की संप्रभुता को क्षति पहुचाया जा रहा है. सुरक्षा के नाम पर हथियारों के व्यपार को आगे बढ़ाया जा रहा है. शांति वार्ता और मानव अधिकार के नाम पर विवादों का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया जा रहा है और इन सभी कृत को वैध बनाने के लिए वैश्वीकरण का इस्तेमाल किया जा रहा है. क्षेत्रीय शांति के नाम पर विभिन्न गुटों के हाथों में हथियारों को पहुचाया जा रहा है. वैश्वीकरण के लिए परोक्ष रूप से आतंकवादियों से भी नरमी बरती जा रही है. आतंकवादियों की मदद से विश्व राजनीति में अस्थिरता पैदा करके अन्य देशों में हस्तक्षेप करने के वैध तरीके तैयार किए जा रहे हैं और साम्राज्यवादी राष्ट्र इसका लाभ उठा रहे हैं. अफगानिस्तान इसका ज्वलंत उदाहरण है. वैश्वीकरण ने असमानता, भूख, गरीबी को बढ़ावा दिया है.
यूक्रेन को लेकर रूस के विरुद्ध नाटो की लामबंदी वैश्वीकरण का ही परिणाम है
यूक्रेन-रूस विवाद में रूस के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों की लामबंदी भी वैश्वीकरण का ही परिणाम है. रूस-अमेरिका तनाव को हम उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की लड़ाई भी कह सकते हैं. रूस-यूक्रेन विवाद और चीन-ताइवान विवाद से हथियारों के बाजार में उछाल आया है, जिसका सीधा लाभ अमेरिका को हो रहा है. इन दोनों विवादों ने चीन और रूस को एक-दूसरे के करीब आने में मदद की है, जिसका परणाम भू-राजनीति पर पड़ा है.
वैश्वीकरण को हथियार बनाकर अमीरिका के नेतृत्व में पश्चिमी राष्ट्र विश्व बाजार पर अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं. विश्व बाजार व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए इन समूहों द्वारा आर्थिक प्रतिबंधों का उपयोग हथियारों के रूप में किया जाता है. यहां तक कि चीन और रूस जैसे देशों के लिए भी यह आर्थिक प्रतिबंध उनके आर्थिक विकास में बाधक हैं.
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने विश्व में अमेरिका की सुपर पवार छवि को प्रभावित किया है. अमेरिकी जनता अफगानिस्तान में सैनिकों की वापसी और अमेरिकी करदाताओं के पैसे की बर्बादी के बारे में तरह-तरह के सवाल कर रहे थे. कोरोना महामारी ने आर्थिक विकास पर सवालिया निशान लगा दिया था. बाइडेन सरकार पर दबाव बढ़ रहा था. बाइडेन सरकार को चीन-ताइवान और रूस-यूक्रेन विवादों में अपनी छवि सुधारने का मौका मिला और बाइडेन इस मौके का फायदा बखूबी उठा रहा है. दूसरी ओर चीन अपने समर्थन से रूस को युद्ध की ओर धकेल रहा है, जो किसी भी रूप से रूस के लिए हितकर नहीं है. अमेरिका-रूस युद्ध से अमेरिका की तुलना में रूस को दीर्घकालिक नुकसान होने की संभावना है. निस्संदेह यह युद्ध चीन को और अधिक मजबूत करेगा, जो रूस के लिय हितकर नहीं है, क्योंकि रूस-चीन सीमा विवाद आज भी यथावत जीवित है. रूस को विश्व बाजार के लिए पश्चिमी देशों पर निर्भर रहना पड़ेगा. पश्चिमी देशों को अमेरिका-रूस संघर्ष को बातचीत के जरिए सुलझाना चाहिए. चीन पश्चिमी देशों के लिए रूस से ज्यादा हानिकारक है.
बता दें कि रूस का कहना है कि हमला करने का उसका कोई इरादा नहीं है, लेकिन वह चाहता है कि पश्चिमी देश यूक्रेन और पूर्व सोवियत देशों को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) से बाहर रखें. और व्हाइट हाउस का कहना है कि "जर्मनी, पोलैंड, आर्मेनिया में अमेरिकी सेना की तैनाती यूक्रेन में रूस से लड़ने के लिए भेजे जाने वाले सैनिक नहीं हैं. वे यूक्रेन में युद्ध करने या रूस के साथ युद्ध लड़ने नहीं जा रहे हैं. वे आक्रमण के खिलाफ नाटो क्षेत्र की रक्षा करने जा रहे हैं. यह रक्षात्मक और गैर-एस्केलेटरी तैनाती है." जो भी हो, यह स्पष्ट है कि वैश्वीकरण के साए में पैदा हुआ यूक्रेन विवाद वास्तव में अब एक भू-राजनीतिक टकराव में बदल गया है, जो किसी भी तरह से विश्व के लिए फायदेमंद नहीं है. इसलिए इस टकराव को रोकना जरूरी है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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