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बिक्रम वोहरा
गुरुवार को जब यूक्रेन (Ukraine) में सूर्योदय हुआ तो वहां के विदेश मंत्री दिमित्रो केलेबा (Dmytro Kuleba) ने ट्वीट किया, "पुतिन (Vladimir Putin) ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया है. यूक्रेन के शांत शहरों पर हमले हो रहे हैं. यह आक्रामकता का युद्ध है. यूक्रेन अपना बचाव करेगा और जीतेगा. दुनिया पुतिन को रोक सकती है और उसे ऐसा करना भी चाहिए. अब कार्रवाई का वक्त है. दुनिया को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए. यूरोप और दुनिया का भविष्य दांव पर है."
दुनिया ने गहरी पीड़ा तो जरूर महसूस की मगर उसके हिसाब से प्रतिक्रिया काफी कम आई. इतिहास यह पूछेगा कि केवल मौखिक समर्थन देने और आश्वासन देने का क्या मतलब है? बाद में ज्यादा पीड़ा देने वाले प्रतिबंधों की बात करने के अलावा दुनिया के पास और क्या ठोस विकल्प हो सकते थे? नाटो या अमेरिका की कमान के तहत किसी भी दूसरे देश की सेना के लिए यूक्रेन की जमीन पर उतरने के बारे में सोचना भी वास्तविकता से परे होगा. यह कोई वीडियो गेम या हंसी-मजाक वाली बात नहीं है. अगर यूक्रेन संकट ज्यादा फैल जाता तो इससे दुनिया के अंत की शुरुआत भी हो सकती है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन जानते थे कि यूक्रेन का साथ देने कोई विदेशी सेना नहीं आएगी. इसलिए पुतिन ने सीमा पर बिना डरे 1,90,000 सैनिकों को इकट्ठा कर लिया और डोनबास क्षेत्र में मार्च करना शुरू कर दिया. लेकिन अब क्या
रूस और भारत ने 2031 तक सैन्य और तकनीकी सहयोग के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया है
राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा कड़ी पाबंदियों के ऐलानों के बाद यह मान लेना अतिश्योक्ति होगी कि इससे रूस की सैन्य क्षमता कम हो जाएगी. रूस कोई नौसिखिया राष्ट्र नहीं है. उसके पास यूक्रेन जैसे दस देशों को संभालने की पर्याप्त मारक क्षमता मौजूद है. इतना ही नहीं, वह 66 देशों को 19 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के हथियारों और पुर्जों का निर्यात करता है जिनमें एक बाजार भारत भी है. हमारी वायु सेना और आर्मर्ड कोर का हार्डवेयर काफी हद तक रूसी ही है. रूस से रिश्तों में किसी भी तरह की खटास भारत की सुरक्षा को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है, इसलिए ऐसा मुमकिन नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी पुतिन के साथ रिश्ते बिगाड़ लेंगे. इससे भारत की सेना पंगु हो जाएगी और पाकिस्तान को बढ़त मिल जाएगी, जो कि भारत के लिए कोई सहज बात नहीं होगी. कहा गया है कि दान की तरह सुरक्षा भी सबसे पहले घर से ही शुरू होती है.
रूस के रेडियो लिबर्टी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, "रूस और भारत ने 2031 तक सैन्य और तकनीकी सहयोग के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया है. दो महीने पहले राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नई दिल्ली यात्रा के दौरान असॉल्ट राइफल्स के उत्पादन के सौदे सहित कई द्विपक्षीय रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए. इसके अलावा, भारत के विदेश सचिव ने बताया कि दोनों देश कोयला, जहाज निर्माण, उर्वरक, इस्पात और स्किल्ड लेबर पर लंबे समय तक सहयोग करने की योजना बना रहे हैं.
रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि ज्वाइंट वेंचर के माध्यम से भारत के उत्तर प्रदेश के एक कारखाने में कलाश्निकोव असॉल्ट राइफलों के निर्माण का समझौता इंटर गवर्नमेंटल कमीशन ऑन मिलिट्री और मिलिट्री टेकनिकल को-ओपरेशन की बैठक में तय हुआ. सौदे के तहत भारत 600,000 से अधिक एके-203 राइफल का उत्पादन करेगा. 2018 में रूसी राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा के वक्त 5.4 बिलियन डॉलर में एडवांस्ड रशियन सिस्टम के एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. भारत अब इसकी डिलिवरी ले रहा है. भारत की नजर T14 टैंक और स्प्रट एसडीएम-1 लाइट टैंक पर भी है. सुखोई और हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बीच भारतीय वायु सेना के लिए पांचवीं पीढ़ी के एसयू-57 स्टील्थ लड़ाकू विमान बनाने के सौदे पर भी भारत की नजर है.
पुतिन डोनबास पर अपना नियंत्रण मजबूत करने जा रहे हैं
सिर्फ ये बात नहीं है कि रूस और भारत के बीच सिर्फ पैसे और सेना का लेन-देन है. ऐतिहासिक रूप से देखें तो नाटो रूस की सीमा पर यूक्रेन को खिला-पिला कर उसी तरह से बड़ा कर रहा था जैसे कुछ दशक पहले तक नाटो और पश्चिमी ताकतें हमारे पड़ोसी पाकिस्तान को हथियार से लेकर खाने तक की चीजें 70 साल से मुहैया करा रहे थे. सीएटो और सेंटो के माघ्यम से अमेरिका के कई राष्ट्रपति भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू पर तौलते थे और ज्यादातर उनका पलड़ा पाकिस्तान की तरफ ही भारी होता था. बैंकॉक और बगदाद समझौते तत्कालीन सोवियत संघ की ताकत से लोहा लेने के मकसद से किये गए. ये नाटो के क्षेत्रीय समकक्ष थे मगर इसमें सैन्य बल के इस्तेमाल की बात नहीं थी. पाकिस्तान ने दोनों ही समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. यूक्रेन के लिए भारत को निजी रूप से सहानुभूति हो सकती है, मगर इसका मतलब यह नहीं है कि हम सीधे-सीधे कोई पक्ष लें. जिस तरह से बाइडेन मामले पर रुक कर केवल नजर रखे हुए हैं, प्रधानमंत्री मोदी के लिए भी वही स्थिति सबसे अनुकूल है. बाद में आश्वासन देने का काम जारी रखा जा सकता है.
बहारहाल, बमों और मिसाइलों के गिरने के बीच, उक्रेनियों ने समझ लिया है कि ये लड़ाई उन्हें अकेले ही लड़नी होगी. कोई भी उनको बचाने नहीं आएगा. पुतिन डोनबास पर अपना नियंत्रण मजबूत करने जा रहे हैं. उसके बाद वे भविष्य के मापदंडों को स्थापित करने पर नाटो को बातचीत शुरू करने के लिए बुला सकते हैं. वे इतने चतुर हैं कि वे जानते हैं कि कार्रवाई रुकने पर दुनिया राहत की सांस लेगी. और इसे किसी धौंस दिखाने वाले व्यक्ति नहीं बल्कि एक बड़े राजनेता का फैसले की तरह देखा जाएगा और इसे जायज भी ठहराया जाएगा. पुतिन को लेकर फिर विश्व में इस तरह के बयान सुनने को मिल सकते हैं: "रूसी सशस्त्र बल यूक्रेन के शहरों पर कोई मिसाइल या जमीनी हमले नहीं कर रहे हैं. अत्याधुनिक सटीक हथियार केवल सैन्य संबंधी बुनियादी ढांचे को नष्ट कर रहे हैं: सैन्य हवाई अड्डे, विमानन, यूक्रेन के सशस्त्र बलों की वायु रक्षा सुविधाएं, आदि. आम नागरिकों को किसी तरह का जोखिम नहीं है."
दुनिया का बड़ा हिस्सा कहेगा पुतिन एक विवेकी व्यक्ति हैं. उन्होंने यूक्रेन के केवल सैन्य ठिकानों को तबाह किया और बाकी हिस्सों को नुकसान नहीं पहुंचाया. हम इस बात का आभार जताएंगे कि सबसे बुरा वक्त गुजर गया है. इसी तरह से दबंगों की जीत होती है. और इस बात की संभावना अधिक है कि इस युद्ध के अंत में पुतिन को झगड़ा शुरू करने वाले की जगह एक बड़े राजनेता की तरह देखा जाएगा.
आप एक बड़े परमाणु शक्ति से पंगा नहीं ले सकते
अपनी प्रेस कांफ्रेंस में बाइडेन खुद को बहादुर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं मगर उन्होंने रूस पर केवल नाम मात्र के प्रतिबंध लगाने की बात की. यह पूछे जाने पर कि बाइडेन ने चुनौती का सामना सीधे-सीधे क्यों नहीं किया उनके पास कोई जवाब नहीं होता. सच्चाई ये है कि आप एक बड़े परमाणु शक्ति से पंगा नहीं ले सकते. आप केवल इतना कर सकते हैं कि उन पर प्रतिबंध लगाकर उन पर हजारों छोटे हमले करके उसको कमजोर कर सकते हैं.
असल में इस मुद्दे पर पश्चिमी देशों के लिए करने को ज्यादा कुछ नहीं है. नैतिकता के आधार पर भी वो इलाके में नहीं घुस सकते. जब पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पुतिन को प्रतिभावान बताते हैं तो वो पूरी तरह से गलत भी नहीं हैं क्योंकि पुतिन अपनी कार्रवाई को सही ठहराने के लिए अमेरिका के ही मुनरो सिद्धांत का इस्तेमाल कर रहे हैं. अगर अमेरिका कहता है कि वह अपने आस-पास दूसरे देशों के हथियारों को जमा नहीं होने देगा तो रूस भी यूक्रेन को नाटो के करीब जाने से रोकने को लेकर अपनी जगह सही हैं. क्योंकि इससे नाटो की फौज रूस के दरवाजे तक पहुंच जाती.