सम्पादकीय

रूस और यूक्रेन युद्ध: कभी न भरने वाले जख्म देने वाले होते हैं युद्ध

Gulabi
28 Feb 2022 1:29 PM GMT
रूस और यूक्रेन युद्ध: कभी न भरने वाले जख्म देने वाले होते हैं युद्ध
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रूस और यूक्रेन युद्ध
स्वाति शैवाल।
जंग होगी तो,
फिर कुछ भी न होगा।
न तेरा घर होगा,
न मेरा घर होगा।
बस आग के दानवी शोले होंगे,
तबाही का भयानक मंजर होगा।
मासूमों की चीखें होंगी,
धरती फिर शर्मिंदा होगी।
क्यारियों में अंगारे दहकेंगे,
फसलें कुचली जाएंगी।
नदियों के रंग होंगे लाल,
पंछियों के गले रुंध जाएंगे।
इतिहास में दर्ज होंगे पन्ने काले,
नस्लों तक फिर ये ज़ख्म न भर पाएंगे।
युद्ध, कोई नहीं चाहता। यहां तक कि वे फौजी जो युद्ध लड़ते हैं वे भी यही चाहते हैं कि बेवजह शांति भंग न हो, अमन चैन बरकरार रहे। क्योंकि युद्ध होते हैं तो फिर कुछ भी और बाकी नहीं रह जाता। मानवता, प्रकृति सबकुछ युद्ध की कालिख के पीछे छुप जाती है। युद्ध अपने पीछे छोड़ जाते हैं ऐसे जख्म जो आने वाली कई पीढ़ियों तक दर्द देते हैं। बड़ी तादात में बच्चे बेघर या अनाथ हो जाते हैं, घरों और दुकानों के साथ साथ औरतों को भी लूटा खसोटा जाता है, बारूद की गंध और रसायनों से निकले जहरीले अवशेष सालों तक जमीन, हवा और पानी में घुल कर नुकसान पहुंचाते रहते हैं। यानी युद्ध किसी का भी फायदा तो नहीं ही करता। यहां तक कि युद्ध जीतने वाले के हिस्से भी उसकी जीत से ज्यादा लाशों के हिसाब, आर्थिक बदहाली और नुकसान ही आता है।
यही वह कारण था जिसने सम्राट अशोक को सारी मोहमाया छोड़कर बौद्ध धर्म की ओर मोड़ दिया। आखिर कोई भी व्यक्ति कैसे खुद की वजह से इतनी जिंदगियों के बर्बाद होने का बोझ लेकर जी सकता है?
हम लोग उस वक्त ताजे ताजे एनसीसी का दिल्ली नेशनल कैंप करके लौटे थे। आर्मी की लाइफ और नया-नया जोश सबकी रगों में भरा था। हमारे ग्रुप में एक लड़की थी जिसके पिता मेजर थे और उस समय राजस्थान सीमा पर तैनात थे। एक दिन हम में से एक साथी ने उससे गुजारिश की कि वो (जिस मित्र के पिता सेना में थे) सेना कैंटीन से उसको एक अच्छा हेलमेट दिलवा सकती है क्या। क्योंकि वहां ब्रांडेड हेलमेट बहुत सस्ता था। उसने हमको ऑफर दिया कि हम सभी उस दिन उसके घर आ जाएं। कैंटीन से हेलमेट खरीदकर आइस्क्रीम पार्टी करेंगे और फिर अपने-अपने घर वापस पहुंच जाएंगे। कार्यक्रम तय हो गया। कैंटीन के अलावा हमारा उत्साह वर्दीधारी ऑफिसर्स को देखने के लिए भी था।
खैर, कैंटीन ने हमें चमत्कृत कर दिया था। जिन चीजों को महीने के बजट में फिट करने के लिए हमने अपने घरों में खींचतान होते देखी थी, वो वहां काफी कम दाम में उपलब्ध थी। आइसक्रीम खाते-खाते हमारी एक मित्र अपना यह भाव मन में नहीं रख पाई और उसके मुंह से आखिर ये निकल ही गया-"यार, तुम लोगों के ऐश हैं। सरकारी नौकरी के सारे ठाठ, ऊपर से ये कैंटीन की सुविधा। बिना टेंशन की जिंदगी है।" हम बाकी लोग सकपकाए से जवाब के लिए उस सहेली का चेहरा देखने लगे जिससे प्रश्न किया गया था।
रूस-यूक्रेन जंग: कोरोना के वार को झेल रही दुनिया के सामने आई ये नई स्थिति भयावह है।
उसने मुस्कुराते हुए कहा- "एक बात पूछूं?" "हां", प्रश्न पूछने वाले मित्र ने कहा। "तेरे पापा जब किसी दिन ऑफिस से टाइम पर नहीं आते। उनसे कोई कॉन्टैक्ट भी नहीं हो पाता। तब तुझे कैसा फील होता है? हमारे लिए पापा के घर न लौट पाने का यह टेंशन हर रोज, हर घड़ी साथ होता है। हम इसी के साथ जिंदगी जीते हैं। हां, यह हमारा चुना हुआ जीवन है, क्योंकि हमने खुद से पहले देश को चुना। लेकिन इससे स्थिति बदल नहीं जाती। हम भी हर वक्त यही प्रार्थना करते हैं कि युद्ध की स्थिति न बने।"
आज जब यूक्रेन और रूस के सिपाहियों की तस्वीरें, उनके अलविदा कहते संदेश सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं, तब अपनी उस मित्र की बातें और भी तेजी से मेरे जहन में गूंज रही हैं। आखिर तो युद्ध में रत सिपाही भी इंसान ही होते हैं। जिन्हें विशेष प्रशिक्षण देकर देश की सुरक्षा के लिए तैयार किया जाता है। वे कोई खूनी-लुटेरे नहीं होते। उनके भी अपने परिवार होते हैं जो साथ रहकर हर त्योहार मनाना चाहते हैं।
वे भी चाहते हैं कि जब देश सेवा की अपनी ड्यूटी से घर लौटें तो उनके बच्चों के खिलखिलाते चेहरे उनका स्वागत करें, उनके बूढ़े माता-पिता के चेहरों पर खुशियां दमकें और वे तसल्ली से कुछ दिन अपने परिवार के साथ गुजार कर वापस ड्यूटी पर लौट सकें। उन वीर सिपाहियों के तिरंगे में लिपटे शरीर गौरव जरूर होते हैं लेकिन उन्हें देखकर सबका मन रोता है और उनके परिवार के सपने टूट जाते हैं।
कोरोना के वार को झेल रही दुनिया के सामने आई ये नई स्थिति भयावह है। वह दौर जब लोगों को और ज्यादा प्रेम और शांति, एकता की जरूरत है, तब युद्ध का होना बहुत ही नकारात्मक स्थिति है। तमाम राजनीतिक परिस्थितियां, कूटनीति और सत्ता का लालच एक तरफ और इंसान की जान एक तरफ। बिना इंसानों के तो कोई भी मुल्क यूं भी बेकार है।
हम भारतीय थोड़ी अलग मिट्टी के बने हैं। हम कभी भी यूं ही आगे होकर किसी पर हमला नहीं करते। ज्यादातर ऐसे मामलों में हम शांति वार्ता के जरिए उलझने सुझाने की कोशिश करते हैं। लेकिन कोई अगर हम पर हमला करता है तो मुंह तोड़ जवाब देने से हम पीछे भी नहीं हटते।
दुनिया मे अभी जो स्थिति है उसके चलते भविष्य में इस आशंका को नकारा नहीं जा सकता कि कभी हमें न चाहते हुए भी अपने देश की रक्षा के लिए हथियार उठाने पड़ें। इन लाइनों को लिखते लिखते खबर आई कि यूक्रेन बातचीत के लिए तैयार हो गया है। उम्मीद करें कि ये जंग थम जाए और अगली सुबह जब सूरज उगे तो लोग यही सोचकर दिन की शुरुआत करें कि "बुरा सपना था, बीत गया।"
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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