सम्पादकीय

रुपए और डालर की आंख-मिचौली

Gulabi
7 Jan 2022 4:36 AM GMT
रुपए और डालर की आंख-मिचौली
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सरकार भरसक प्रयत्न कर रही है कि सेंसेक्स संभला रहे तथा रुपए की कीमत बाजार में बढ़ जाए। लेकिन
मैं सेंसेक्स और रुपए की गिरावट का खेल नहीं समझ पाया हूं। मेरा एक मित्र अर्थशास्त्र का प्रोफेसर है। उससे भी मैंने दो-तीन बार समझने का प्रयास किया, लेकिन इतना ही समझ आया कि बाजार में रुपए की तुलना में डॉलर की कीमत बहुत ज्यादा है, अतः आजकल लोगों में बाहर जाकर डॉलर कमाने की होड़ मची हुई है। मेरा बच्चा यहां एक अच्छी कारपोरेट कम्पनी में काम कर रहा है। लेकिन उसका अपनी मातृभूमि एवं रुपए से मोहभंग हो गया है। वह कहता है कि जल्दी ही वीजा बनवाकर वह अमेरिका चला जाएगा। वहां जाकर और कुछ नहीं तो टैक्सी चला लेगा, लेकिन कमाई डॉलरों में करेगा। मैंने समझाया भी कि मुन्ना घर की तो आधी रोटी का भी मुकाबला नहीं है, लेकिन उसके फॉरेन जाने की तथा वहां जाकर बस जाने की धुन सवार है। उसका भी यह मानना है कि जीवन में रुपयों की (डॉलरों की) बहुत आवश्यकता है। स्वदेश में तो कोहनी भी मुंह में नहीं आती। यहां की महंगाई के सामने वह पस्त हो गया है।
सरकार भरसक प्रयत्न कर रही है कि सेंसेक्स संभला रहे तथा रुपए की कीमत बाजार में बढ़ जाए। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी रुपया बुरी तरह लड़खड़ा गया है तथा डॉलर के सामने उसकी कीमत शून्य जैसी हो गई है। सोने के भाव भी आसमान छू रहे हैं। सरकार कह रही है कि लोग सोना खरीदना बंद कर दें तो रुपए की कीमत में सुधार हो सकता है, लेकिन रिश्वत-कमीशन खाने वालों तथा काली कमाई करने वालों के समक्ष सरकार बेबस हो गई है। डॉलर की बढ़ती कीमत ने मुझे डॉलर के दर्शनों का मैं दर्शनाभिलाषी बन गया। प्रोफेसर मित्र विदेश जाते रहते हैं, मैंने सोचा उनके पास तो डॉलर होंगे, अतः वहीं उनके दर्शन करना ठीक रहेगा। मैंे उनके दौलतखाने पर शाम को पहुंचा तो वे ही बोले- 'डॉलर देखने आए हो शर्मा? लो मैं दिखाता हूं तुम्हें डॉलर।' वे अंदर गए और एक पूरी गड्डी ले आए और मेरे हाथ में रखकर बोले- 'लो इत्मीनान से देखो इसे। लेकिन किसी को बताना मत दोस्त। वरना मेरे काले कारनामे सामने आ जाएंगे और मैं खामख्वाह कोर्ट-कचहरी के चक्करों में फंस जाऊंगा।'
मैंने डॉलर की गड्डी को भरपूर नजरों से देखा और बोला- 'यार दस-पंद्रह डॉलर मुझे दे दो। अपने लॉकर में रखना चाहता हूं तथा दीपावली पर इसको पूजा में शामिल करना चाहता हूं।' मित्र हंसकर बोले-'शर्मा, तुम भी क्या याद रखोगे, पूरा पचास का बंच ले जाओ। मेरे पास तो बहुत हैं। बस सावधानी यह रखना कि इनका ब्लैक करने बाजार मत चले जाना। वरना भइया जेलयात्रा हो जाए तो मुझे दोष मत देना।' मैंने कहा-'चिंता मत करो, मैं तो इन्हें घर के लॉकर की शोभा बढ़ाने के लिए ले जाना चाहता हूं।' मित्र ने पचास डॉलर मुझे दे दिए, मैंने उन्हें उनसे निःशुल्क लेकर घर आ गया। घर में आकर मैंने अपने लाड़ले को बुलाया-'ये लो डॉलर, रखो अपने पास, लेकिन भैया देश त्यागने का इरादा त्याग दो।' वह लापरवाही से बोला-'इतने से क्या होगा पापा? मैं इतना डॉलर कमाना चाहता हूं कि उसके लिए विदेश में शिफ्ट होना ही पड़ेगा। थोड़े दिन बाद आपको और मम्मी को भी ले जाऊंगा।' मैंने कहा-'बेटा हमारे लिए तो हमारी पेंशन पर्याप्त है। तू हमारा इकलौता आंखों का तारा है, सोचना तुम्हें है।' उसने कहा-'इन्हें संभालकर अपने खजाने में रख लो, लेकिन प्लीज मुझे रोको मत फॉरेन जाने से पापा।' यह कहकर वह घर से बाहर चला गया। मैं कभी पचास डॉलर को तो कभी पत्नी को देख रहा था। मेरी समझ में नहीं आ रही थी, रुपए और डॉलर की यह आंख मिचौली।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक
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