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- रुपए और डालर की...

मैं सेंसेक्स और रुपए की गिरावट का खेल नहीं समझ पाया हूं। मेरा एक मित्र अर्थशास्त्र का प्रोफेसर है। उससे भी मैंने दो-तीन बार समझने का प्रयास किया, लेकिन इतना ही समझ आया कि बाजार में रुपए की तुलना में डॉलर की कीमत बहुत ज्यादा है, अतः आजकल लोगों में बाहर जाकर डॉलर कमाने की होड़ मची हुई है। मेरा बच्चा यहां एक अच्छी कारपोरेट कम्पनी में काम कर रहा है। लेकिन उसका अपनी मातृभूमि एवं रुपए से मोहभंग हो गया है। वह कहता है कि जल्दी ही वीजा बनवाकर वह अमेरिका चला जाएगा। वहां जाकर और कुछ नहीं तो टैक्सी चला लेगा, लेकिन कमाई डॉलरों में करेगा। मैंने समझाया भी कि मुन्ना घर की तो आधी रोटी का भी मुकाबला नहीं है, लेकिन उसके फॉरेन जाने की तथा वहां जाकर बस जाने की धुन सवार है। उसका भी यह मानना है कि जीवन में रुपयों की (डॉलरों की) बहुत आवश्यकता है। स्वदेश में तो कोहनी भी मुंह में नहीं आती। यहां की महंगाई के सामने वह पस्त हो गया है।
