सम्पादकीय

शारीरिक क्षमताओं के विकास को रनिंग जरूरी

Rani Sahu
14 March 2022 6:53 PM GMT
शारीरिक क्षमताओं के विकास को रनिंग जरूरी
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वर्ष 2018 में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा किए गए एक शोध में यह बताया गया कि भारत की 54 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं है

वर्ष 2018 में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा किए गए एक शोध में यह बताया गया कि भारत की 54 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं है। ये आंकड़े देश के लिए स्वास्थ्यवर्धक नहीं हैं। इसलिए देशवासियों में शारीरिक सक्रियता को बढ़ाने के लिए जागरूकता की तरफ बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। एक सक्रिय शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता एक निष्क्रिय शरीर से कहीं अधिक होती है। केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए फिट इंडिया कार्यक्रम से भी इस जागरूकता को घर-घर पहुंचाने की कोशिश की जा रही है । मानव शरीर को सक्रिय रखने के लिए किसी भी प्रकार का व्यायाम, सुबह की सैर या फिर दौड़ बहुत उपयोगी क्रियाएं होती हैं। नित्य व्यायाम और सैर करने से शरीर को मिलने वाले फायदों को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन यह भी सत्य है कि सुबह उठकर दौड़ लगाने से मिलने वाले लाभों की फेहरिस्त इनसे कहीं अधिक लंबी है। व्यायाम, सैर और दौड़ने जैसी शारीरिक क्रियाओं में से अगर किसी क्रिया को सबसे अधिक मुश्किल समझा जाता है तो वो भी दौड़ ही है। सुबह उठकर दौड़ने के लिए शारीरिक ताकत से कहीं अधिक मानसिक ताकत की आवश्यकता होती है, लेकिन जब एक बार हम इससे मिलने वाले लाभों को महसूस करने लग पड़ते हैं तो सुबह जल्दी उठकर दौड़ लगाना न केवल काफी आसान हो जाता है, बल्कि इससे खुद को रोक पाना भी मुश्किल हो जाता है। दौड़ हो या अन्य किसी भी तरह का व्यायाम, उसको करने से हमारे शरीर में प्रचुर मात्रा में एंडोर्फिन हार्मोन का निर्माण होता है जिसे फील गुड हार्मोन भी कहते हैं, क्योंकि इससे इनसान को खुशी और आनंद की अनुभूति होती है।

इसी हार्मोन की बदौलत हम रनर्स हाई के स्तर को भी प्राप्त कर सकते हैं। रनर्स हाई की स्थिति तक पहुंचना आसान कार्य नहीं है। रनर्स हाई एक ऐसी स्थिति होती है जब किसी एथलीट को कुछ समय के लिए बहुत ही गहरी आरामदेह और परमसुख की अनुभूति होती है। रनर्स हाई के स्तर को प्राप्त करने वाले लोगों को व्यायाम और दौड़ लगाने से होने वाले दर्द भी कम महसूस होते हैं। इस स्तर तक पहुंचने के लिए लगातार प्रयास और मेहनत की आवश्यकता होती है। जब हम एक लंबी और आनंददायक दौड़ लगाने के बाद या लंबे समय तक व्यायाम करने के बाद फिर से उतनी ही लंबी दौड़ या व्यायाम के लिया तैयार हों तो इसका अर्थ है कि हम रनर्स हाई के स्तर पर पहुंच चुके हैं। ऐसा केवल तब होता है जब कोई धावक बहुत लंबी दौड़ लगा करके रुकता है या फिर लंबे समय तक व्यायाम करने के बाद विराम लेता है। व्यायामों की तुलना में दौड़ से हमारी फिटनेस पर बहुत अधिक सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। सुबह की दौड़ हमारे मूड को पूरा दिन तरोताजा रखती है और हम दैनिक क्रियाओं को अधिक ऊर्जा के साथ पूरा कर सकते हैं। सामान्य से अधिक बॉडी मास इंडेक्स को भी रनिंग के द्वारा जल्दी से काबू में लाया जा सकता है। आजकल गूगल पर बीएमआई कैलकुलेटर की मदद से अपने वजन, कद और उम्र के आंकड़ों के आधार पर अपनी सही बीएमआई की गणना की जा सकती है। एक फिट व्यक्ति का बीएमआई 18 से पच्चीस के बीच में होना चाहिए। अठारह से कम बीएमआई सामान्य से कम वजन और पच्चीस से अधिक बीएमआई सामान्य से अधिक वजन और मोटापे का सूचक होता है।
वजन अधिक होने के बाद अगला स्तर मोटापे का ही होता है जिसे कि अब एक बीमारी समझा जाने लगा है। बीएमआई बढ़ने से शरीर के बीमारियों की चपेट में आने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। मोटापे से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन की दौड़ बहुत अधिक लाभकारी होती है। दौड़ से हमारे शरीर में जमा वसा की मात्रा कम होती है जिससे कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में बहुत मदद मिलती है। दौड़ से हमारी याददाश्त और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे शरीर में लचीलापन और गतिशीलता बढ़ती है। इसके अलावा दौड़ लगाने से हमारी हृदय संबंधी क्षमताएं भी बढ़ती हैं। जब भी हम दौड़ लगाना शुरू करते हैं तो हमारा हृदय तेजी से धड़कना शुरू करता है। इससे हमारा हृदय ऑक्सीजन युक्त खून को पंप करके हमारे शरीर के हर कोने में पहुंचाने का कार्य तेजी से करता है। प्रतिदिन दौड़ लगाने वाले व्यक्ति के हृदय का स्वास्थ्य एक निष्क्रिय व्यक्ति के हृदय से कहीं अधिक अच्छा होता है। इसके साथ-साथ दौड़ने से अवसाद से छुटकारा पाना आसान हो जाता है। अवसाद का एक सबसे बड़ा लक्षण अनिद्रा है और प्रतिदिन भागने से एक अच्छी नींद का भी आनंद उठाया जा सकता है, जो कि अवसाद को खत्म करने में मददगार होती है। दौड़ लगाने को शुरू करने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है। आज हमारे आसपास बहुत से ऐसे उदाहरण हैं जिनसे प्रेरणा पाकर हम अपने दौड़ने के सफर की शुरुआत कर सकते हैं। 110 वर्षीय पंजाब के फौजा सिंह आज भी बहुत से धावकों के प्रेरणास्त्रोत हैं।
इन्होंने सन् 2000 में 89 वर्ष की आयु में भागना शुरू किया और उसके बाद अपनी उम्र के वर्ग में कई रिकॉर्ड अपने नाम किए। इसके अलावा पंजाब के पटियाला से संबंध रखने वाली 105 वर्षीय मन कौर जिन्होंने 93 वर्ष की उम्र से अपने भागने के करियर की शुरुआत की थी, वे आज तक अपने आयु वर्ग में कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार जीत चुकी हैं। उनके इसी जज्बे को देखते हुए उन्हें भारत सरकार द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। दौड़ने के प्रति लोगों को प्रेरित करने के लिए कई मैराथन प्रतियोगिताओं का आयोजन पूरे भारत में पूरे वर्ष किया जाता है। इस तरह के आयोजनों से न केवल फिटनेस के प्रति जागरूकता बढ़ती है, बल्कि रनिंग के प्रति लगाव रखने वाले लोगों में इस कार्य के प्रति आकर्षण भी बना रहता है। इसी क्षेत्र में जम्मू का इको साइक्लेचर ग्रुप भी अपनी अहम भूमिका अदा करते हुए न केवल जम्मू, बल्कि हिमाचल प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों के धावकों के लिए भी प्रेरणा का कार्य कर रहा है। धावकों को दौड़ने के लिए अपनाई जाने वाली सावधानियों के बारे में महत्त्वपूर्ण टिप्स देने के अलावा इस ग्रुप के सदस्य सरदार हरप्यास सिंह, राजेश पाधा, अभिषेक गुप्ता, सुधीर आनंद और विवेकशील राणा आदि लोगों को फिट रहने का संदेश देकर मानवता की सेवा में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं।
राकेश शर्मा
लेखक जसवां से हैं
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