सम्पादकीय

राज्यों में चुनावों की गड़गड़ाहट

Gulabi
28 Feb 2021 7:35 AM GMT
राज्यों में चुनावों की गड़गड़ाहट
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स्वतन्त्र भारत के चुनावी इतिहास में संभवतः ऐसा पहली बार होने जा रहा है

स्वतन्त्र भारत के चुनावी इतिहास में संभवतः ऐसा पहली बार होने जा रहा है जब चुनावों की घोषणा करने वाला कोई मुख्य चुनाव आयुक्त इनके जारी रहते ही अवकाश प्राप्त कर लेगा। जिन पांच राज्यों केरल, तमिलनाडु, असम, प. बंगाल व पुड्डुचेरी (अर्ध राज्य) के चुनावों में मतदान की तालिका घोषित करने वाले चुनाव आयुक्त श्री सुनील अरोड़ा आगामी 13 अप्रैल को तब अवकाश प्राप्त कर लेंगे जब प. बंगाल में चुनाव चल रहे होंगे और इनके चार चरण शेष रह रहे होंगे जबकि सभी चुनावों के परिणाम 2 मई को घोषित किये जायेंगे। इससे यह तो साबित होता ही है कि भारत की विधि व्यवस्था में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन व्यक्ति किस संवैधानिक संस्था का मुखिया है बल्कि इस बात से फर्क पड़ता है कि सम्बन्धित संस्था अपनी भूमिका किस तरह निभाती है। चुनावों की तालिका घोषित करते हुए प. बंगाल में आठ चरणों में व असम में तीन चरणों में मतदान कराने की घोषणा हुई जबकि तमिलनाडु, पुड्डुचेरी व केरल में एक ही दिन एक चरण में 6 अप्रैल को मतदान कराना तय हुआ। इसे लेकर कुछ राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग की जिस तरह आलोचना की है वह लोकतन्त्र में शोभनीय नहीं कहा जा सकता। खास कर प. बंगाल में आठ चरण में मतदान कराये जाने की चुनाव आयोग की तालिका पर भाजपा के अलावा प. बंगाल के शेष सभी राजनीतिक दल अंगुली उठा रहे हैं। एेेसा करके वे अपनी ही कमजोरी को साबित कर रहे हैं क्योंकि लोकतन्त्र में मतदाता सर्व प्रमुख होता है और उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि मतदान कितने चरणों में हो रहा है, उसे तो केवल अपनी बारी आने पर एक वोट डालना ही होता है।


पिछले वर्ष नवम्बर महीने में बिहार में हुए चुनाव भी कई चरणों में पूरे हुए थे और ये चुनाव लगभग शान्तिपूर्ण माहौल में सम्पन्न हो गये थे। अतः चुनाव आयोग की नीयत पर शक करना बुद्धिमानी नहीं कहा जा सकती। जो लोग आजाद भारत के इतिहास से अच्छी तरह वाकिफ हैं वे जानते हैं कि इसी देश में 1952 के पहले आम चुनाव पूरे छह महीने अक्तूबर 1951 से लेकर मार्च 1952 तक चले थे। अतः मतदान का लम्बा खिंचना चुनाव आयोग की मंशा पर कोई सवालिया निशान नहीं खड़ा करता है हालांकि वर्तमान सूचना टैक्नोलोजी के दौर में कई दूसरे व्यावहारिक सवाल जरूर खड़े होते हैं जिनमें सर्वप्रमुख है मतदान से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार बन्द होना। एक ही राज्य के आपस में मिले हुए चुनाव क्षेत्रों में अलग-अलग चरण में मतदान कराये जाने से प्रचार के माध्यम से 48 घंटे पहले मतदाताओं को प्रभावित न करने का कानून जरूर नाकारा बन जाता है। अब अगर इन राज्यों की राजनीतिक स्थिति देखें तो असम में भाजपा शासन है जबकि तमिलनाडु की शासक पार्टी अन्ना द्रमुक के साथ उसका सहयोग है। केरल में वामपंथी पार्टियां सत्ता में हैं, प. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की ममता दीदी की सरकार है। भाजपा केन्द्र की भी सत्तारूढ़ पार्टी है अतः वह इन सभी राज्यों में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है। असम में फिर से अपनी सरकार बनाना उसका लक्ष्य है और तमिलनाडु में अन्ना द्रमुक के विरोधी द्रमुक-कांग्रेस गठबन्धन को हराना उसका उद्देश्य हो सकता है परन्तु प. बंगाल में वह अपने बूते पर ही ममता दी को सत्ता से बाहर करने की रणनीति पर चल रही है।

गौर से देखा जाये तो इन पांचों राज्यों में से प. बंगाल के चुनाव सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इस राज्य में भाजपा ने चुनावों की घोषणा होने से पहले से ही वह राजनीतिक विमर्श खड़ा कर दिया है जिसके चारों तरफ ममता दी की तृणमूल कांग्रेस घूम रही है। परन्तु यह तस्वीर का एक पहलू ही है क्योंकि भाजपा ने अपने विमर्श को खड़ा करने के लिए बहुत ऊंचाई से अलख जगाई है। इससे ऊपर जाना अब किसी भी पार्टी के लिए संभव नहीं है और चुनावों की घोषणा हो जाने पर यही संकट भी चौतरफा रहेगा जिसकी वजह से चुनावी मैदान में स्कूटी सवारी और स्कूटर सवारी भी आ गई है।

यह भाजपा के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भी राज्य है और पहली लोकसभा में वह इसी राज्य से चुने गये थे। उन्होंने जिस राष्ट्रवाद की विचारधारा को राजनीति में चलाया था वह स्वतन्त्र भारत की राजनीति में उस समय एक प्रयोग थी क्योंकि उन्होंने हिन्दू महासभा छोड़ कर जनसंघ की स्थापना की थी। इसी विचारधारा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य की 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी। दूसरी तरफ दक्षिण के सिरमौर तमिलनाडु राज्य में भाजपा का अन्ना द्रमुक के साथ गठजोड़ इसी विचारधारा के साये में किस तरह कमल की खुश्बू महसूस करता है यह भी देखना होगा। जहां तक केरल का सवाल है तो यह राज्य भारत की सांस्कृतिक विविधता का एेसा दर्पण है जिसने सृष्टि के सभी प्राचीनतम धर्मों का उद्भव अपनी ही धरती पर देखा है। चुनावों के शोरगुल में यह राज्य इस बार कौन सा शास्त्रीय राग अलापता है, इस तरफ भी भारतवासी 2 मई को उत्सुकता से देखेंगे।


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