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- अदालती कांटे पर नियम
आखिर कब तक हमारी व्यवस्था की आंख खोलने के लिए अदालती फरमानों का इंतजार रहेगा। प्रदेश के प्रति कानूनी सरोकारों की कमजोरी, जब राजनीतिक ख्वाहिशों के पांव तले कुचली जाने लगे, तो अदालतों को बोलना पड़ता है। माननीय हाई कोर्ट के दो फैसलों को तवज्जो दी जाए, तो प्रदेश के प्रति ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होने के सबूत पैदा होंगे। अपने एक फैसले में अदालत ने अवैध खनन को ढो रहे विकास की तरफ इशारा करते हुए यह पड़ताल करने के आदेश दिए हैं कि निर्माण स्थलों के मुहाने पर लगे रेत-बजरी के ढेर में तलाशा जाए कि ऐसी आपूर्ति का स्रोत क्या है। रेत-बजरी की आपूर्ति में ट्रांजिट पास की शर्त पर अमल सुनिश्चित हो तो सारी सप्लाई चेन में पारदर्शिता आएगी। भले ही अदालत के आदेश एक मामले के संदर्भ में सरकार से पूछ रहे हैं, लेकिन इसकी व्यापकता को समझते हुए कड़े कदमों की आशा की जा सकती है। प्रदेश में निर्माण सामग्री की बढ़ती मांग और विकास की बदलती शब्दावली ने अवैध खनन के कई चोर रास्ते बना दिए है। एक ओर उपभोक्ता सूची में आम आदमी की जरूरतों से रेत-बजरी की मांग बढ़ रही है, तो दूसरी ओर धंधे की् परतों के नीचे भ्रष्टाचार की सहमति से कानूनों के कई उल्लंघन हो रहे हैं, अतः खनन की जरूरतों को हल करते हुए व्यवस्था में सुधार वांछित है।