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- सहमा हुआ कानून का...
राजीव सचान। दिल्ली-हरियाणा सीमा पर दस माह से जारी कृषि कानून विरोधी आंदोलन के ठिकाने पर लखबीर सिंह को तालिबानी तरीके से तड़पा-तड़पा कर मारने वाले यह अपुष्ट और अस्वाभाविक सा आरोप लेकर सामने आए थे कि उसने गुरुग्रंथ साहब का निरादर किया था। इस आरोप के पक्ष में कोई प्रमाण नहीं था, फिर भी लखबीर सिंह के हत्यारों का महिमामंडन करने वालों पर कोई असर नहीं पड़ा। वे उन्हें फूल-मालाओं के साथ नोटों की माला पहनाते रहे। उनकी धमक-धमकी के चलते लखबीर का विधि-विधान से अंतिम संस्कार नहीं हो पाया। जब उसका अंतिम संस्कार हो रहा था तो किसी ने श्मशान घाट की लाइट बंद कर दी। बिना किसी प्रमाण धर्मग्रंथ की बेअदबी के आरोप को तूल देने और लखबीर सिंह की हत्या को जायज ठहराने वालों का ही यह असर है कि एक-दो नेताओं को छोड़कर अन्य बड़े नेता लखबीर के परिवार को न्याय दिलाने की मांग कर नहीं कर पा रहे हैं। लखबीर सिंह दलित था, लेकिन पंजाब के दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी मौन साधे हैं। स्थिति यह है कि पंजाब के बसपा प्रमुख ने मायावती के उस ट्वीट को अपने फेसबुक से हटा दिया, जिसमें उन्होंने लखबीर के परिवार वालों को 50 लाख रुपया मुआवजा देने की मांग की थी।