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- सुशासन का मलबा
तवलीन सिंह: प्रधानमंत्री ने कई भाषण दिए, सो मोरबी की घटना काफी हद तक दूर हो गई सुर्खियों से। काश, ऐसा न हुआ होता। इसलिए कि कुछ हादसे ऐसे हैं, जिनके मलबे में दिखती हैं भारत की राजनीतिक और प्रशासनिक कमजोरियों की तस्वीरें। मोरबी के उस टूटे पुल के मलबे को टटोलने का कष्ट आप करेंगे तो आपको दिखेगा एक ऐसा आईना।
उस आईने में सबसे पहले दिखेगा कि बेमौत मारे गए थे मोरबी के एक सौ पैंतीस लोग, जिनमें बच्चों और औरतों की गिनती ज्यादा थी। कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा आई होती, तो शायद समझ में आती मोरबी के उस अधिकारी की बात, जिसने हादसे के बाद कहा कि भगवान की मर्जी से यह हादसा हुआ था। यह न सिर्फ झूठ, बल्कि शर्मनाक झूठ है।
सैर करने निकले थे वे लोग, जो पुल के टूटने से मरे थे। उनको मालूम होता कि पुल पर जाने से उनकी और उनके बच्चों की जानें जा सकती हैं तो कभी न चढ़ते पुल पर। कभी न खरीदते सत्रह रुपए के टिकट।
किसी ने उनको नहीं रोका पुल पर जाने से। किसी ने नहीं उनको बताया कि अभी तक नगर पालिका ने इस पुल के सुरक्षित होने का सर्टिफिकेट नहीं दिया है। जिन्होंने ये बातें छुपा कर रखी थीं उस दिन, उन सब पर लगना चाहिए हत्या का आरोप।
कुछ अधिकारी गिरफ्तार हुए हैं अभी तक, लेकिन गायब हो गए हैं उस कंपनी के मालिक, जिनको ठेका मिला था इस एक सौ तैंतालीस साल पुराने पुल की मरम्मत करने का। तामझाम से उन्होंने उद्घाटन किया था पुल का, उसके टूटने से कुछ दिन पहले, लेकिन उसके टूटने के बाद गायब हैं।
गुजरात सरकार के आला अधिकारी भी ऐसे चुप बैठे हैं, जैसे कि उनका कोई दोष न हो। दोष सबका है और अगर किसी विकसित देश में यह हादसा हुआ होता, तो वहां के मुख्यमंत्री ने फौरन अपना त्यागपत्र दे दिया होता। यहां उल्टा हुआ। प्रधानमंत्री जिस दिन मोरबी पहुंचे हादसे की समीक्षा करने, उनके बगल में दिखे मुख्यमंत्री। उसके बाद कुछ कहे बिना चले गए।
प्रधानमंत्री के आने की खबर सुनते ही मोरबी के स्थानीय अधिकारी अस्पताल की लीपापोती में व्यस्त हो गए। सफाई की गई, पुराने पानी के कूलर निकाल कर नए लाए गए, नए पलंग और चादरें खरीदी गईं, ताकि मोदीजी को खबर न हो कि उनके 'गुजरात माडल' में खामियां हैं बहुत सारीं।
नहीं होतीं, तो न पुल टूटता और न बेकसूर लोगों के जीवन ऐसे बर्बाद होते कि आगे की जिंदगी उनकी दर्द से भरी रहेगी। जैसे एक पीड़ित मां ने एक पत्रकार को बताया, 'मेरा बेटा सात साल का था, वह चला गया, मेरी नौ साल की बेटी थी वह चली गई, मेरे पति नहीं रहे, तो अब जब आप पूछ रहे हैं कि सरकार से क्या मदद चाहती हूं। क्या कर सकती है मेरे लिए अब सरकार?' प्रधानमंत्री को पीड़ितों से दूर रखा गया। मोरबी के अस्पताल में मिलाया गया सिर्फ उनसे, जिनको सरकार से कोई शिकायत न थी।
इस हादसे से उठते हैं कई सवाल, जो प्रधानमंत्री के कानों तक नहीं पहुंचेंगे। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण ये हैं- नगर पालिका के कौन से अधिकारियों की देखरेख में पुल की मरम्मत करवाई गई थी? कौन से अधिकारियों ने उस दिन पुल पर लोगों को जाने की इजाजत दी थी? कहां थे प्रशासन के आला अधिकारी उस दिन? ऐसा कैसे हुआ कि आला अधिकारियों को मालूम ही नहीं था कि पुल पर जाने के लिए टिकट बेचे जा रहे हैं?
इस तरह के सवालों के जवाब कभी मिलते नहीं हैं अपने देश में, उल्टा जो सवाल ज्यादा पूछने लगते हैं उनको भारत-विरोधी कहा जाता है। सो, हादसे के घंटों बाद भारतीय जनता पार्टी की सोशल मीडिया सेना को हरकत में लाया गया और ट्वीट करके इस सेना के प्यादे आरोप लगाने लगे कि अब साबित हो गया है कि पुल के टूटने में 'अर्बन नक्सलियों' का हाथ है।
इशारा साफ तौर पर था आम आदमी पार्टी की तरफ, जो सर्वेक्षणों के मुताबिक गुजरात के आने वाले चुनावों में भाजपा का नुकसान कर सकती है। ट्रोल सेना और भाजपा प्रवक्ताओं ने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि चिताओं पर राजनीतिक रोटिया सेंकी जा रही हैं। क्यों न सेंकी जाएं? पिछले सत्ताईस सालों से गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने राज किया है और ऐसा राज, जिसको 'गुजरात माडल' कहा जाता है और देश भर में इस तथाकथित माडल की प्रशंसा होती है।
इस माडल की प्रशंसा सबसे ज्यादा करते हैं प्रधानमंत्री खुद और उनके पुराने साथी अमित शाह। ऐसा कोई चुनाव नहीं रहा है पिछले दो दशकों में, जिसके प्रचार में गुजरात माडल की प्रशंसा नहीं सुनने को मिली है। इस माडल के टुकड़े दिखते हैं मोरबी पुल के मलबे में। कैसा माडल है यह, जिसमें इतनी बदइंतजामी थी कि अस्पताल में बुनियादी सुविधाएं सिर्फ हादसा होने के बाद उपलब्ध करवाई गईं? कैसा माडल है यह, जिसमें अधिकारी पीड़ित लोगों की सेवा करने के बजाय अपने कंधों से जिम्मेदारी झाड़ने पर ज्यादा ध्यान देते दिखे?
कैसा 'न्यू इंडिया' बन रहा है मोदीजी आपके राज में, जहां उस 'पुराने इंडिया' की सारी कमजोरियां दिख रही हैं, जो न उस समय गवारा थीं और न आज गवारा हैं। पुराने भारत की सबसे बड़ी कमजोरी थी सरकारी संवेदनहीनता और वही शर्मनाक संवेदनहीनता दिख रही है आज मोरबी के उस टूटे पुल के मलबे में।