- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- आरआरआर की सुपर सक्सेस:...
सम्पादकीय
आरआरआर की सुपर सक्सेस: क्या लोगों को राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का कॉकटेल पसंद आ रहा है
Gulabi Jagat
30 March 2022 8:50 AM GMT
x
आरआरआर की सुपर सक्सेस
संयम श्रीवास्तव।
द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files) के सुपर डुपर हिट होने के बाद आरआरआर (RRR) की सुपर सक्सेस फिल्मकारों को यह सोचने को जरूर मजबूर करेगी कि क्या देश के दर्शकों का मिजाज बदल रहा है? द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files) के सुपर डुपर हिट होने के पीछे अब तक कुछ लोग भारतीय जनता पार्टी का हाथ बता रहे थे. कुछ लोग लगातार आरोप लगा रहे हैं कि यह फिल्म बीजेपी के एजेंडे को ध्यान में रखकर बनाई गई है, इसलिए पार्टी लगातार इसका प्रचार कर रही है और अपनी सरकार वाले राज्यों में इसे टैक्स फ्री भी करा रही है.
लेकिन कश्मीर फाइल्स के बाद पूरे देश में धूम मचा रही आरआरआर के बारे में अब वही लोग क्या कहेंगे? क्या राजामौली जैसे फिल्मकार पर भी आरोप लागाए जाएंगे कि वे हिंदुत्व के एजेंडे पर काम करके अपनी फिल्म हिट करा रहे हैं. राजामौली की हालिया रिलीज फिल्म आरआआर पहले 3 दिन में ही वर्ल्ड वाइड कलेक्शन 500 करोड़ पार कर गया है. देश में कई भाषाओं में रिलीज यह फिल्म हिंदी सहित सभी भाषाओं में झंडे गाड़ रही है. आइये देखते हैं कि कैसे यह फिल्म राममय बन जाती है.
आरआरआर स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष पर आधारित फिल्म है तो उसके हिसाब से ही राष्ट्रवाद की तगड़ी छौंक फिल्म में लगाई गई है. उस पर फिल्म में राम-सीता और भीम जैसे हिंदू धर्म के नायकों वाले फिल्मी पात्र फिल्म राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का जोरदार कॉकटेल बना रहे हैं. पहले बनने वाली ऐसी फिल्मों में धर्मनिरपेक्षता का संदेश देने के लिए एक मुस्लिम पात्र भी होता था जो अल्ला हो अकबर बोलते हुए देश के लिए कुर्बान हो जाता था. यहां भी एक मुस्लिम पात्र है पर उसे एक संवाद में यह कहना पड़ता है कि वो मुस्लिम नहीं है, उसे एक गुप्त मिशन के चलते मुस्लिम वेश में रहना पड़ रहा है. तो क्या यह मान लिया जाए कि लोगों को राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का कॉकटेल खूब पसंद आ रहा है ?
रामायण की थीम
अपनी कई फिल्मों में राजामौली भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को बहुत ऊंचाई पर ले जाते रहे हैं. उनकी सुपरहिट फिल्में बाहुबली के दोनों पार्ट, मगधीरा आदि देखने वाले जानते हैं कि उनकी फिल्मों में प्राचीन भारत के लिए भव्यता और श्रेष्ठता का भाव पैदा होता है. आरआरआर भी एक पीरियड फिल्म है पर कहानी किसी राजघराने की नहीं है जैसा आमतौर पर राजामौली की फिल्मों की विशेषता होती है. स्टोरी लाइन अंग्रेजों का भारतीयों पर अत्याचार और उनसे लड़ने वाले क्रांतिकारियों पर ही फोकस है. पर नायक अंग्रेजों से लड़ते हुए क्लाइमेक्स में राम के अवतार में आ जाता है. कहानी का मुख्य पात्र का नाम भी राम है और उसकी मंगेतर का नाम सीता है.
राम अंग्रेजों के अत्याचार से मुकाबले के लिए अपने संगठन के लिए हथियार (बंदूकें) जुटाने के लिए एक बहुत बड़ी लड़ाई लड़ रहा है. पर अंत में अत्याचारियों के विनाश का आह्वान करते हुए भगवा धारण कर लेता है और तीर धनुष की सहायता से अंग्रेजों का विनाश करता है. कहने का मतलब कुल यही है कि अत्याचारी अंग्रेजों के विनाश के लिए इस महान क्रांतिकारी को राम का अवतार लेना पड़ता है जबकि लड़ाई बंदूकों और हथगोलों से भी हो सकती थी.
पर दर्शकों को शायद तीर धनुष वाले अपने धार्मिक नायक के हाथों अंग्रेज रूपी रावण के संहार में ज्यादा मजा आएगा यह सोचकर फिल्मकार ने ऐसे क्लाइमेक्स को शूट किया होगा. इस लड़ाई में उसका साथ देता है भीम जिसे राम के हनुमान का रूप माना जा सकता है. जो जंगल में रहने वाले एक जनजाति से ताल्लुक रखता है. प्राचीन रामायण धर्मग्रंथ में हनुमान राम की अंगूठी लेकर रावण की कैद में बैठी सीता के पास जाते हैं. इस फिल्म में भीम सीता की अंगूठी लेकर अंग्रेजों की कैद में राम के पास जाते हैं. इस तरह फिल्म की पटकथा राममय बन जाती है.
साऊथ की फिल्में लिबरल सोच वाली होती थीं
तमिलनाडु या केरल में बनने वाली फिल्मों का अंदाज हमेशा से भगवाधारियों के खिलाफ रहा है. मणिरत्नम की फिल्में इस तरह के विषय की ध्वजवाहक रही हैं. शाहरुख स्टारर दिल से रही हो या अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या वाली रावण रही हो. दिल से में जहां आतंकवादियों के जन्म के पीछे सुरक्षा बलों विशेषकर सेना के अत्याचार को बताया गया था वहीं रावण में राम को ग्रे शेड वाला दिखाया गया था. हालांकि इन दोनों ही फिल्मों को दर्शकों ने अस्वीकार कर दिया था. रजनीकांत या विजय की फिल्मों में भी एंटी भगवा, लिबरल सोच वाली सामग्री मिलती रही हैं. कमल हासन भी इस तरह के सब्जेक्ट को लेकर कभी पीछे नहीं रहे हैं. हालांकि आरआरआर को बनाने वाले राजामौली तेलुगु हैं और तेलुगु फिल्मों में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पसंदीदा विषय रहा है. बाहुबली और मगधीरा में उन्होंने प्राचीन भारत की महान शासन प्रणाली और ताकतवर सैन्य प्रणाली का महिमामंडन किया था. आरआरआर भी उसी तर्ज पर भारत की गौरव गाथा का गान है.
वंदेमातरम और राष्ट्रवाद से ओतप्रोत
फिल्म के अंत में एक गाना शोले शोले करके आता है जिसमें स्वतंत्रता आंदोलन के नामचीन चेहरों को दिखाया जाता है. इन चेहरों में वो नेता गायब हैं जो आजादी के बाद 50 साल तक देशभक्ति वाली फिल्मों में दिखाये जाते रहे हैं. याद करिए मनोज कुमार की फिल्में उपकार, पूरब पश्चिम जैसी फिल्में जिसमें गांधी-नेहरु ही नहीं इंदिरा गांधी भी दिख जाती थीं. पर आरआरआर से गांधी-नेहरु गायब हैं.
पोस्टर से गांधी-नेहरु गायब हैं.
वल्लभभाई पटेल, सुभाषचंद्र बोस और भगत सिंह दिखाई देते हैं. कश्मीर फाइल देखकर खिन्न हुए देश के तमाम उदारवादियों को ये देखकर अच्छा नहीं लगेगा कि उत्तर और दक्षिण में सभी भाषाआों में रिलीज हुई ये फिल्म राम को पैन इंडिया ऐक्सेप्टेस करा रही है. फिल्म के एक एक्शन सीन में वंदेमातरम का ध्वज तैयार हो जाने का दृश्य बेहद रोमांचन बन जाता है. एक फ्लैग जल-जंगल-जमीन का भी दिखता है.
दक्षिण में राम
दक्षिण में राम उत्तर के मुकाबले कभी भी कम लोकप्रिय नहीं रहे हैं. देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 1984 में सुना एक भाषण याद आता है. गोरखपुर के कस्बे बड़हलगंज में उन्हें सुनते हुए मेरे बाल मन में पहली बार राम की महिमा का भाव जगा था. वाजपेयी ने अपने भाषण में बताया कि उत्तर से राम जा रहे हैं और दक्षिण से राम आ रहे हैं. उन्होंने विस्तार से समझाया कि तमिलनाडु के सीएम एम जी रामचंद्रन, कर्नाटक के सीएम रामकृष्ण हेग़डे और आंध्र प्रदेश के सीएम एनटी रामाराव बन रहे हैं. मतलब रामनामी लोग दक्षिण में सरकार बना रहे हैं.
वाजपेयी जैसे बड़े नेताओं के भाषण बहुत ही गूढ़ दूरगामी असर वाले होते थे. उन्होंने राम नाम के धूम की महिमा करते हुए इंडोनेशिया और बाली का भी उदाहरण दिया था. हम सभी जानते हैं इन तीन दशकों में वाजपेयी के राम रूप का कैनवस अब बहुत बड़ा हो चुका है. यह जानना भी जरूरी है कि दक्षिण भारत में विष्णु के कई अन्य रूप जैसे तिरुपति बाला जी, यदाद्रीदेव भगवान नरसिंह के रूप सहित कई अन्य रूपों की पूजा बहुत आस्था के साथ होती रही है. यहां के जनमानस के रोम-रोम में विष्णु अवतार राम बसे हुए हैं पर लोकप्रिय मंदिरों में विष्णु के अन्य रूपों की पूजा होती रही है.
उत्तर भारत में भी कुछ ऐसा ही रहा है. हम बचपन से ही तमान हनुमान मंदिर जाते और प्रसाद मुख्य गर्भ गृह स्थित हनुमान मूर्ति को चढ़ाते फिर किसी कोने में राम और सीता के लिए श्रद्धा भाव प्रकट करते हुए मत्था टेक लेते. हालांकि युवा होने पर जब दिल्ली के कनॉट प्लेस वाले हनुमान मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में राम परिवार को सेंटर में और हनुमान जी को किनारे देखकर मन खटका जरूर था पर किनारे होने के बावजूद भक्तों की श्रद्धा के चलते हनुमान जी यहां भी मुख्य आकर्षण में हो जाते. दरअसल हनुमान भक्तों के लिए कष्ट निवारक हैं, सभी दुखों को हरने वाले हैं. पर रावण का विनाश करने के चलते राम पापियों और अत्याचारियों के संहारक के रूप में उत्तर भारत में जनमानस में रचे बसे हुए हैं. शायद इसके पीछे हर साल दशहरे में राम लीलाओं का मंचन और रावण का वध उन्हें बुराई पर अच्छाई के विजय का प्रतीक बना देती है. पर दक्षिण में न हर साल राम लीला ही होती और न ही दशहरे का भव्य आयोजन ही.
Gulabi Jagat
Next Story