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By: divyahimachal
शिक्षा की जमीन पर भी आई यह आपदा, उसकी पलकों पर भविष्य की निगरानी भटक गई। जिन्हें पढक़र अपनी और देश की बुनियाद मजबूत करनी, वे संस्थान की रोशनी में अंधेरों को बुलारहे हैं। रैगिंग की रोटेशन में बदनाम होते शिक्षण संस्थानों की फेहरिस्त जिस तरह लंबी हो रही है, उससे शिक्षा के स्तर और अध्ययन का सफर कहीं बाधित है। आईआईटी मंडी और नेरचौक मेडिकल कालेज के बाद टांडा मेडिकल कालेज के बागीचे में रैगिंग के दस्तावेज सड़ रहे हैं। एक बार फिर काचरू रैगिंग मामले के जख्म टीएमसी परिसर में कुरेद दिए गए। चौदह साल पहले अमन काचरू प्रकरण में बदनाम हुए परिसर के भीतर पुन: आठ सीनियर प्रशिक्षुओं ने भावी डाक्टरों के साथ न केवल अमानवीय व्यवहार किया, बल्कि अपने प्रोफेशन की धज्जियां भी उड़ा दीं। दरअसल मामला असाइनमेंट से भी जुड़ा है, जहां वरिष्ठ हो चुके छात्र अपने जूनियर को उनका काम निपटाने का दबाव डालते हुए इस नौबत तक पहुंच गए कि इनकार के लिए रैगिंग हथियार बन गया। कुछ प्रशासनिक लीपा पोती के बीच जिस तरह आईआईटी और नेरचौक एमसी की खबर सुस्ता गई, उसी तरह टीएमसी के आरोपी छात्र भी इस कृत्य से बरी हो जाएंगे, लेकिन ऐसी हरकतों से यह तो साबित हो रहा है कि हिमाचल में उच्च शिक्षा या प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों के अध्ययन की परिपाटी कितनी लचर व आवारा हो चुकी है।
यही आवारगी कल ऐसे डाक्टरों के सुपुर्द अस्पतालों की कार्यशैली को कर देगी। आवारगी का यही दस्तूर लज्जाजनक तरीके से पूरे विभाग की नाक काटने के लिए काफी है। मामला आज अगर टीएमसी का है, तो कल इसी प्रवृत्ति से निकल कर बीमारों और तीमारदारों से अभद्रता और उपेक्षापूर्ण व्यवहार तक पहुंच जाएगा। एक के बाद एक रैगिंग के मामलों ने छात्रों की प्रोफेशनल सोच पर सवालिया निशान चस्पां कर दिया है। प्रश्रों की सूची तो इन कालेजों के फ्रेम में भी नजर आ रही है और संस्थानों के प्रबंधन की ओर भी इशारा कर रही है। आईआईटी मंडी यूं तो अपनी प्रतिष्ठा व रैगिंग में हिमाचल के तमाम संस्थानों में सबसे ऊपर है, लेकिन रैगिंग के पेंच ने बदनामी का एक बड़ा कारण इसे भी सौंप दिया। दूसरी ओर हिमाचल के दो मेडिकल कालेजों के माहौल में पुन: अस्थिरता के बादल और कल के डाक्टरों की पौध का एक अवांछित गुट तैयार होता दिखाई दे रहा है। जाहिर तौर पर कहीं मेडिकल कालेजों के आदर्श बुरी तरह तहस नहस हैं। जिन्हें नेतृत्व की जिम्मेदारी मिली, वे सियासत के वातावरण में पलना और अपना बचाव करना सीख गए।
दरअसल मेडिकल कालेजों के वरिष्ठ डाक्टर भी अपने दायित्व को निचले स्तर या अध्ययन रत डाक्टरों को स्थानांतरित कर रहे हैं और यही दबाव नीचे सरकता-सरकता रैगिंग का कारण बन रहा है। आश्चर्य यह कि हमारे मेडिकल कालेज अनेक कारणों से विवादित हैं, जबकि विश्वसनीयता के हिसाब से सबसे निम्न स्तर पर पहुंच गए हैं। चिकित्सा विभाग में रैफरल सिस्टम अब दायित्व सरकाने का सिस्टम है। पहले अनावश्यक मेडिकल कालेज खोलकर सरकारों ने डाक्टरी पेशे को प्रोमोशन का सर्किल बना दिया और अब इन्हें लावारिस छोड़ दिया गया है। कोई ऐसी गवर्निंग बॉडी सामने नहीं आ रही, जो बता सके या मॉनिटर कर सके कि आम मरीज क्यों रैफरल मरीज बन कर दर-दर भटक रहा है। सामान्य अस्पतालों के डाक्टर इमर्जेंसी सेवाओं का बोझ मेडिकल कालेजों पर डाल रहे हैं और विश्वसनीय इलाज के लिए अब निजी अस्पतालों के पते तमाम मेडिकल कालेजों के वजूद पर चस्पां हैं।
Rani Sahu
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