सम्पादकीय

असंतोष की जड़ें

Subhi
9 Oct 2021 1:46 AM GMT
असंतोष की जड़ें
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लखीमपुर खीरी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश प्रशासन के रवैए पर उचित ही नाराजगी जाहिर की है।

लखीमपुर खीरी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश प्रशासन के रवैए पर उचित ही नाराजगी जाहिर की है। इस मामले का संज्ञान खुद प्रधान न्यायाधीश ने लिया और कुछ वकीलों की लिखी चिट्ठी को याचिका मानते हुए उस पर सुनवाई शुरू की है। एक दिन पहले अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि वह अपना पक्ष रखे। शुक्रवार को मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने स्पष्ट कहा कि वे उत्तर प्रदेश प्रशासन की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हैं। क्या वजह है कि पांच दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस अब तक आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर पाई है। क्या ऐसे ही किसी दूसरे मामले में भी वह कर सकती थी। जैसे ही सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले का संज्ञान लिया, उत्तर प्रदेश पुलिस मुख्य आरोपी आशीष मिश्र के घर के बाहर गिरफ्तारी का नोटिस चिपका आई थी।

जब सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी गिरफ्तारी की बाबत पूछा तो उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि पुलिस ने उसे हाजिर होने का नोटिस दिया है, अगर हाजिर नहीं हुआ तो आगे कार्रवाई करेंगे। फिर अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा है कि इस मामले की जांच किससे कराई जा सकती है। वहां के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया है कि जब तक जांच समिति अपना काम शुरू नहीं करती, तब तक वे साक्ष्यों की सुरक्षा का ध्यान रखें।
यह छिपी बात नहीं है कि लखीमपुर खीरी में गाड़ियों से रौंद दिए गए चार लोगों और भीड़ हिंसा में मारे गए चार अन्य लोगों की मौत को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस शुरू से शिथिलता बरत रही है। इस मामले में चूंकि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के बेटे को नामजद किया गया है और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है, इसलिए प्रदेश पुलिस की शिथिलता को भी समझना मुश्किल नहीं है। गृह राज्यमंत्री शुरू से अब तक यही कहते आ रहे हैं कि इस मामले में उनके बेटे का कोई हाथ नहीं है। लेकिन कई वीडियो और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों से अब स्थिति काफी कुछ स्पष्ट हो चुकी है।
गृह राज्यमंत्री की बातें किसी के गले नहीं उतर रहीं। किसान आंदोलनकारी और तमाम विपक्षी दल मांग कर रहे हैं कि गृह राज्यमंत्री को उनके पद से हटाया और उनके बेटे को गिरफ्तार किया जाए। मगर इन दोनों मांगों में से एक पर भी कोई निर्णय लिया जाता नहीं दिख रहा। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि इस मामले में दोषियों को किसी भी रूप में बख्शा नहीं जाएगा। मगर उसका दावा व्यवहार में नहीं दिख रहा।
सर्वोच्च न्यायालय के इस मामले में स्वत: संज्ञान लेने से लोगों का न्याय मिलने के प्रति भरोसा पैदा हुआ है। यह छिपी बात नहीं है कि जिन घटनाओं में रसूखदार लोग आरोपी होते हैं, उनमें साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़, जांचों को प्रभावित करने और गवाहों को डरा-धमका-बरगला कर बयान बदलवाने जैसे काम बहुत आसानी से कर लिए जाते हैं। इसके चलते अदालतें साक्ष्य के अभाव में दोषियों को बरी करने पर मजबूर होती हैं।
ऐसे ममलों में दोष सिद्धि की दर न्यूनतम है। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने खुद अपनी देखरेख में इस मामले की जांच आदि की जिम्मेदारी लेकर पीड़ितों को न्याय दिलाने का भरोसा दिया है, इसलिए उम्मीद बनी है। लखीमपुर खीरी का मामला अब तक के जघन्यतम अपराधों की श्रेणी में है, यह लोकतांत्रिक अधिकारों को रौंदने का भी मामला है, इसलिए अगर इसमें न्याय मिलता है, तो वह एक बड़ी नजीर बनेगा।

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