सम्पादकीय

रुलाती महंगाई

Subhi
21 July 2022 5:39 AM GMT
रुलाती महंगाई
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कमरतोड़ महंगाई की वजह से आम लोगों के जीवनयापन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। आलम यह है कि आम लोग अपनी जेब ढीली करके अपने उपयोग की जरूरी वस्तुएं खरीद रहे हैं।

Written by जनसत्ता: कमरतोड़ महंगाई की वजह से आम लोगों के जीवनयापन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। आलम यह है कि आम लोग अपनी जेब ढीली करके अपने उपयोग की जरूरी वस्तुएं खरीद रहे हैं। फिर भी लगातार बढ़ रही महंगाई की मार का सरकार के पर कोई असर नहीं देखने को मिल रहा है। यह सत्य है कि इस वक्त सिर्फ हमारे देश में ही महंगाई नहीं है, बल्कि इसकी चपेट में दुनिया के कई देश हैं।

लेकिन महंगाई का ठीकरा दूसरे देशों पर फोड़ना आम जनता के हक में कितना मुनासिब होगा? क्या इससे लोगों को महंगाई से निजात मिल जाएगी? यह सबको पता है कि भारत से ज्यादा महंगाई विश्व के सबसे धनी राष्ट्र अमेरिका में है। यूरोप के भी कई देश महंगाई के बोझ तले दबे हुए हैं। इसके बावजूद यह सही नहीं है कि सरकार बढ़ती मंहगाई से बच निकलने के लिए दूसरे देशों के कंधे पर गोली रखकर दाग दे।

बीते दो- तीन वर्षों में देश में गैस सिलेंडर के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। पेट्रोल और डीजल की कीमतें आसमान छू रही हैं। और तो और, खाद्यान्न और तेलों के दाम ने आंख में आंसू लाने पर मजबूर कर दिया है। ऐसे में पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे आम जन को एक बार फिर से सरकार ने झटका दिया है और डिब्बा बंद तथा अन्य खाद्य पदार्थों पर जीएसटी दर बढ़ा कर कीमतें बढ़ा दी हैं। इससे अब कई खाद्य सामग्री के दाम बढ़ गए हैं। यह आम जन के लिए दोहरे झटके से कम नहीं है।

गौरतलब है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अगुआई में हुई जीएसटी परिषद की बैठक में यह फैसला लिया गया कि पहले से पैक और लेबल वाले पदार्थों जैसे आटा, दही, पनीर आदि वस्तुओं पर पांच फीसदी जीएसटी दर लागू किया जाए। यह 18 जुलाई से प्रभाव में आ गया है। फिलहाल बढ़ती महंगाई के बोझ से आम जनजीवन के ऊपर असर पड़ तो रहा है, लेकिन सरकार को इस बात की तनिक भी चिंता नहीं है। सरकार अपने दफ्तरों के अंदर खुश है। इस कमरतोड़ महंगाई से साधारण लोग परेशान हैं।

सरकार को इस बात पर जरूर चिंता करनी चाहिए कि हम करोड़ों रुपए विज्ञापन पर खर्च कर देते हैं, करोड़ों-अरबों रुपए नेताओं की यात्रा में खर्च कर देते हैं, लेकिन क्या हम इन्हीं पैसों को बचाकर गरीब जनता की सेवा नहीं कर सकते हैं? उनकी परेशानियों को दूर नहीं कर सकते हैं? यह बात राजनेताओं के दिमाग में कौन डालेगा? नेता तो अपनी सुविधाजनक जिंदगी में मशगूल हैं।

उन्हें किसी तरह की दिक्कत हो, तब शायद उन्हें सब समझ में आएगा। मगर वे अपनी जिंदगी के हर पहलू को आराम से जीते रहते हैं। महंगाई की मार से आम जन पहले से ही त्रस्त है और सरकार उसके ऊपर दवाब पर दवाब बनाती जा रही है। तो सरकार को याद रखना चाहिए कि यह वही जनता है जो सरकार बनाना जानती है तो सरकार गिराना भी जानती है।


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