सम्पादकीय

रुलाती महंगाई

Subhi
16 Feb 2022 3:41 AM GMT
रुलाती महंगाई
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सांख्यिकी विभाग ने दो दिन पहले खुदरा महंगाई के आंकड़े जारी कर दिए। इस साल जनवरी में खुदरा महंगाई छह दशमलव एक फीसद पर पहुंच गई। यह पिछले सात महीने में सबसे ज्यादा है।

Written by जनसत्ता: विभाग ने दो दिन पहले खुदरा महंगाई के आंकड़े जारी कर दिए। इस साल जनवरी में खुदरा महंगाई छह दशमलव एक फीसद पर पहुंच गई। यह पिछले सात महीने में सबसे ज्यादा है। चिंता की बात ज्यादा इसलिए भी है कि महंगाई रिजर्व बैंक के निर्धारित दो से छह फीसद के दायरे से ऊपर निकल गई है। अगर महंगाई इस दायरे में रहती है तो केंद्रीय बैंक के लिए यह समस्या नहीं बनती, पर इस दायरे से बाहर जाने के बाद महंगाई बड़ा संकट बन जाती है।

हालांकि रिजर्व बैंक पहले से ही संकेत देता रहा है कि महंगाई से राहत के फिलहाल आसार हैं नहीं। इस महीने मौद्रिक नीति समिति ने भी नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं करके यह साफ कर दिया कि वह अभी कोई जोखिम लेने की स्थिति में नहीं है। नीतिगत दरें बढ़ाने का असर महंगाई और बढ़ने के रूप में सामने आता। और बात खुदरा महंगाई तक ही सीमित नहीं है, थोक महंगाई की दर भी पिछले दस महीने से दो अंकों में बनी हुई है।

ताजा आंकड़े बताते हैं कि जनवरी में महंगाई बढ़ने का कारण खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ना रहा। जनवरी में खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर 10.33 फीसद पर पहुंच गई, जबकि दिसंबर-2021 में यह 9.56 फीसद थी। जनवरी में सब्जियों के दाम पैंतीस फीसद से ज्यादा बढ़ गए, जबकि दिसंबर में यह आंकड़ा साढ़े इकतीस फीसद था। अनाज, दालें और धान भी महंगे हुए। यानी उन चीजों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं जो आम आदमी के रोजमर्रा के इस्तेमाल की हैं।

सवाल है कि अगर खाने-पीने की चीजें इसी तरह महंगी होती रहीं तो आम आदमी का गुजारा कैसे चलेगा, वह भी उस हालत में जब देश महंगाई के साथ बेरोजगारी जैसे संकट से भी जूझ रहा हो। केंद्र और राज्य सरकारें भले ही दावा करती रहें कि लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है, पर हकीकत तो किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में महंगाई और ज्यादा तकलीफदेह बनती जा रही है। रसोई गैस सिलेंडरों के दाम से लेकर पेट्रोल-डीजल तक के दाम जिस स्तर पर बने हुए हैं, वे भी आग में घी का काम कर रहे हैं।

लंबे समय से महंगाई का जो रुख बना हुआ है, उसे कहीं से भी अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता, मध्यवर्ग और गरीब तबके के लिए तो खासतौर से। पिछले दो साल में देश के चौरासी फीसद परिवारों की आमद में खासी गिरावट आई है। साफ है, लोगों के पास पैसा ही नहीं है खर्च करने को। जिनके पास बचा-खुचा होगा भी, तो वे भी भविष्य के खौफ को लेकर खर्च करने से बच रहे हैं। ऐसा भी नहीं कि सिर्फ खाने-पीने की चीजें ही महंगी हो रही हैं, कपड़े, ईंधन, बिजली, परिवहन क्षेत्र तक में दाम थमने का नाम नहीं ले रहे।

खुदरा क्षेत्र में गैर-खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ना इसलिए भी चिंताजनक है कि इनके दाम एक बार बढ़ जाने के बाद नीचे नहीं आने वाले। सामान बनाने की लागत का बोझ कंपनियां ग्राहकों से ही वसूलती हैं। एक और संकट है और वह है दुनिया में महंगा होता कच्चा तेल। इन दिनों यूक्रेन को लेकर बने तनाव से भी यह महंगा होता जा रहा है। फिर, विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। केंद्र और राज्य सरकारें इतनी दयालु हैं नहीं कि पेट्रोल-डीजल पर आम जनता को कोई भारी राहत देकर महंगाई की मार से बचा लें। जाहिर है, आने वाले दिनों में लोगों की मुश्किलें और बढ़ेंगी ही।


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