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- अग्निवीरों के लिए रोल...

'जीत के बाद तिरंगा लहराकर आऊंगा या फिर उसी तिरंगे में लिपट कर आऊंगा, लेकिन आऊंगा जरूर'। वतनपरस्ती से लबरेज इन जज्बाती अल्फाज का इजहार हिमाचल प्रदेश के जांबाज कैप्टन विक्रम बत्रा ने सन् 1999 की भारत-पाक जंग के दौरान किया था। कारगिल युद्ध में प्वांइट 4875 (बत्रा टॉप) पर पाक फौज को धूल चटाकर 7 जुलाई 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा ने मातृभूमि की रक्षा में अपना र्स्वोच्च बलिदान देकर अपनी इस तहरीर को सच साबित कर दिया था। युद्ध में असीम शौर्य पराक्रम के लिए सेना ने कै. विक्रम बत्रा को सर्वोच्च सैन्य सम्मान 'परमवीर चक्र' (मरणोपरांत) से अलंकृत किया था। कारगिल में प्वांइट 5140 को फतह करने के बाद उस नौजवान अफसर ने रेडियो सेट के जरिए 'ये दिल मांगे मोर' का उद्घोष किया था यानी कारगिल विजय के बाद वह जांबाज योद्धा अपने जहन में कारगिल क्षेत्र से आगे बढ़ने की हसरत लिए बैठा था। यदि देश की तत्कालीन सियासत ने इच्छाशक्ति दिखाई होती तो शायद आज पाकिस्तान अपने वजूद पर अफसोस जाहिर करता। जिस मुल्क में वतन पर कुर्बानी का जज्बा रखने वाले ऐसे शूरवीर योद्धा मौजूद हों, वहां दुश्मन कोई भी हिमाकत करने से खौफजदा रहते हैं। भारत अपने पड़ोस में शातिर चीन व आतंक के सरपरस्त पाकिस्तान के साथ हजारों कि. मी. लंबी सरहद साझा करता है। पाक सेना भारत पर चार मर्तबा हमला करके भारतीय सेना द्वारा शर्मनाक शिकस्त का सामना कर चुकी है। चीन ने सन् 1962 में भारत पर हमला करके अपना असली चरित्र दिखा दिया था। देश की सरहदों पर चीन व पाक जैसे देशों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय सेना के तीनों अंगों का युवा जोश व तकनीकशुदा अचूक मारक क्षमता वाले हथियारों से लैस होना जरूरी है।
