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- शरणार्थी नहीं...
प्रो. रसाल सिंह : एक रोहिंग्या घुसपैठिये मोहम्मद सलीमुल्ला की याचिका पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय कई मायनों में महत्वपूर्ण है। उसमें उसने जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा कठुआ जिला स्थित हीरानगर डिटेंशन सेंटर में रखे गए 170 रोहिंग्या घुसपैठियों की तत्काल रिहाई की मांग की थी। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा शुरू की गई रोहिंग्या घुसपैठियों की पहचान और उनकी स्वदेश रवानगी की कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की थी। साथ ही गृह मंत्रालय को यह निर्देश देने की भी गुजारिश की थी कि वह अनौपचारिक शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए तीव्र गति से शरणार्थी पहचान पत्र जारी करे, ताकि इन तथाकथित 'शरणार्थियों' का कथित उत्पीड़न न हो सके, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने न सिर्फ हिरासत में लिए गए घुसपैठियों की रिहाई के लिए आदेश देने से मना कर दिया, बल्कि प्रशासन द्वारा घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए की जा रही कार्रवाई में हस्तक्षेप से भी इन्कार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 32 सिर्फ देश के नागरिकों पर लागू होता है। हालांकि उसने घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए तय प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश सरकार को अवश्य दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को असम में घुसपैठियों की भारी समस्या से निपटने के लिए उसके द्वारा पूर्व में दिए गए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाने के निर्णय की निरंतरता में देखा जाना चाहिए।