सम्पादकीय

जोखिम की सड़कें

Subhi
19 Sep 2022 5:06 AM GMT
जोखिम की सड़कें
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महानगरों में वाहनों की बढ़ती संख्या और मनमाने तरीके से वाहन चलाने की वजह से सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े हर साल कुछ बढ़े हुए दर्ज होते हैं। इसे लेकर लगातार चिंता जताई जाती रही है।

Written by जनसत्ता: महानगरों में वाहनों की बढ़ती संख्या और मनमाने तरीके से वाहन चलाने की वजह से सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े हर साल कुछ बढ़े हुए दर्ज होते हैं। इसे लेकर लगातार चिंता जताई जाती रही है। सड़क हादसों पर काबू पाने के मकसद से यातायात नियमों में कड़े प्रावधान जोड़े और जुर्माने की राशि में बढ़ोतरी की गई। उसके बावजूद अपेक्षित नतीजे नहीं आ पा रहे।

दूरदराज के इलाकों और छोटे शहरों-कस्बों की तो क्या कहें, दिल्ली की सड़कें भी पैदल चलने वालों तक के लिए सुरक्षित नहीं रह गई हैं। यह बात खुद दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से जाहिर हुई है। पिछले साल दिल्ली में कुल चार हजार दो सौ तिहत्तर सड़क दुर्घटनाएं हुर्इं, जिनमें पांच सौ चार पैदल यात्रियों की मौत हो गई। सबसे अधिक दुर्घटनाएं हल्के और दुपहिया वाहनों से हुर्इं। जबकि सबसे अधिक जुर्माना भी हल्के वाहनों पर ही लगाया गया।

विचित्र है कि दिल्ली को दूसरे शहरों की अपेक्षा अधिक जागरूक और पढ़े-लिखे लोगों का शहर माना जाता है, मगर जब यहां भी तमाम जागरूकता अभियानों, कानूनी सख्ती के बावजूद सड़क हादसों पर काबू पाना मुश्किल बना हुआ है, तो दूसरे शहरों के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है।

सड़क दुर्घटनाओं से जुड़े पुलिस के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि ज्यादातर हादसे रात के दस बजे से दो बजे की बीच होते हैं। इन हादसों में घायल होने और जान गंवा देने वालों में अधिक संख्या युवाओं की होती है। जाहिर है, देर रात को जब सड़कें कुछ खाली होती हैं, लोग यातायात नियमों की परवाह किए बगैर तेज रफ्तार से गाड़ी चलाते और उसी में दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।

दुर्घटना का शिकार होने वालों में कई नशे की हालत में भी वाहन चला रहे होते हैं। नशा करके गाड़ी चलाने पर भारी जुर्माना है और पुलिस ऐसे लोगों पर कड़ी नजर भी रखती है, फिर भी लोग इस आदत से बाज नहीं आ रहे, तो फिर दूसरे उपायों पर विचार करने की जरूरत है। हालांकि दिल्ली की सड़कों पर जोखिम वाली जगहों की निशानदेही करके कैमरे लगाए गए हैं और यातायात नियमों की अनदेखी करने वालों पर स्वत: जुर्माना लगा दिया जाता है।

फिर भी लोग सड़कों पर संयम बरतना जरूरी नहीं समझते। इसके लिए केवल पुलिस को दोष नहीं दिया जा सकता। नागरिक समाज की भी इसमें जिम्मेदारी बनती है। लोगों को अपने बच्चों, परिवार के सदस्यों को बेवजह देर रात सड़क पर निकलने और तफरीह के लिए तेज रफ्तार वाहन चलाने से रोकना पड़ेगा।

सबसे चिंता की बात है कि पैदल चलते लोग भी वाहनों की चपेट में आकर जान गंवा बैठते हैं। हालांकि दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में पैदल चलने वालों के लिए अलग से पथ बने हुए हैं, मगर उन पर अनेक जगहों पर दुकानदारों आदि ने अतिक्रमण कर रखा है या उनकी नियमित सफाई, मरम्मत आदि न होने की वजह से वे लोगों के चलने लायक नहीं रह गए हैं। ऐसे में लोग सुबह की सैर के लिए या सामान्य तौर पर सड़कों पर चलने को मजबूर होते हैं।

इस तरह कई लोग तेज रफ्तार गाड़ियों की चपेट में आकर जान गंवा बैठते हैं या उनका कोई अंग भंग हो जाता है। कई बार मांग उठी कि पैदल चलने वाले रास्तों को ठीक किया जाए, मगर इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया जाता। यातायात व्यवस्था को समग्र रूप में सुधारने का प्रयास होना चाहिए।


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