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- श्रीलंका की राह
Written by जनसत्ता: श्री`लंका में आर्थिक स्थिति डांवाडोल होने के पीछे वहां के मंत्रिमंडल और प्रधानमंत्री द्वारा लिए गए कई अनुपयुक्त निर्णय हैं। इससे भारत को भी सबक लेना होगा। हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर और राज्य स्तरों पर भी बढ़ता ऋण भार महंगाई को न केवल बढ़ा रहा है, बल्कि आम जन के जीवन को भी दूभर बना रहा है।
रोजगार का न मिलना, मुफ्त राशन वितरण योजनाएं, करों का बढ़ता बोझ, जनता के बारे में कम और अपनी छवि और कुर्सी के प्रति मोह का अधिक होना इसके कारण हैं, जो चिंतनीय हैं। सबसे बड़ी बात सशक्त विपक्ष के न रहने से भी राज्यों और राष्ट्र के सत्तासीन द्वारा लिए जा रहे मनमाने गलत और अनुचित निर्णय हमें भी श्रीलंका की तरह बनाने में कसर नहीं छोड़ेंगे। आज की आवश्यकता है कि हम समय रहते चेत जाएं और जनहित में समुचित निर्णय लें। तभी कुछ अच्छा हो पाएगा, जिन सपनों को दिखाकर वोट बटोरे गए, उनको यथार्थ का जामा पहनाना होगा।
'नई हुकूमत' (संपादकीय 11 अप्रैल पढ़कर पाकिस्तान की कोर्ट और उसकी निष्पक्षता के बारे में अंदाजा हुआ। पिछले दो महीनों से पाकिस्तान में जिस तरह की राजनीतिक असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, उसका हश्र इमरान सरकार के पतन के रूप में होना ही था। पाकिस्तान में भले ही कहने को लोकतंत्र है, मगर वहां सत्ता के सारे सूत्र सदैव सेना के हाथ में रहते हैं। सेना के इशारे पर ही सरकारें बनती-बिगड़ती हैं।
इमरान के सेना से बिगड़ते रिश्ते ने ही शाहबाज के लिए सत्ता का मार्ग प्रशस्त किया है। संपादकीय में पाकिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए जो कामना की गई है, वह शायद पूरी नहीं हो सकती, क्योंकि वहां सत्ता संघर्ष के कारण ही सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती। शाहबाज का आगामी चुनाव तक का सफर पाकिस्तान और उनका भविष्य तय करेगा। देखने वाली बात यही होगी कि अब इमरान क्या चाल चलते हैं?