सम्पादकीय

रोजगार की राह

Subhi
1 Sep 2022 5:39 AM GMT
रोजगार की राह
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भारत विश्व की सर्वाधिक युवा आबादी वाला देश है जो एक बड़ी श्रम शक्ति है, जिसके सहारे ही भारत को नंबर वन बनाया जा सकता है, लेकिन आज यही युवा बेरोजगारी के भंवर में फंसा हुआ है

Written by जनसत्ता: भारत विश्व की सर्वाधिक युवा आबादी वाला देश है जो एक बड़ी श्रम शक्ति है, जिसके सहारे ही भारत को नंबर वन बनाया जा सकता है, लेकिन आज यही युवा बेरोजगारी के भंवर में फंसा हुआ है, जिसका एक कारण सरकारों की उदासीनता है। देर से निकलने वाली सरकारी नौकरियां युवाओं के लिए चिंता का विषय हैं, पर इस पर मंथन करना आवश्यक है।

केवल सरकारी नौकरियों के माध्यम से इस चक्रव्यूह से निजात पाना नामुमकिन है। हालांकि सरकारी नौकरियों के माध्यम से मुसीबत कुछ कम तो होगी, लेकिन पूर्ण रूप से खत्म नहीं होगी, क्योंकि एक तो सरकारी नौकरियां बहुत कम हैं और जो हैं भी, या तो उन पर भर्तियां नहीं हो रही हैं या फिर पदों को ही खत्म किया जा रहा है। इसके समांतर ज्यादातर महकमे निजी क्षेत्रों को सौंपे जा रहे हैं।

ऐसे में स्वरोजगार एक विकल्प है, मगर इसके आर्थिक जोखिम को बर्दाश्त करने वाला तबका अभी नहीं खड़ा हो पाया है। अमरीका में दसवीं, बारहवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करते ही बड़ी संख्या में युवा व्यापार की तरफ प्रयासरत होते हैं, जबकि हमारे देश में यह देखने को नहीं मिलता। बेरोजगारी दर बढ़ने के कारण आत्महत्या होना आम बात हो चुकी है जो एक बड़ी चिंता का विषय है।

देश के गांवों और शहरों में मजदूरों, बेरोजगारों का हो या विदेश से अपने देश में वापस नौकरियां छूटने के कारण वापस लौटे या कहे पलायन से अपने देश आए लोगों की व्यथा का, समस्या गहराती जा रही है। विदेशों की बात करें तो यूक्रेन-रूस के युद्ध के कारण वहां शिक्षा, नौकरी के लिए गए लोगों के लिए वापस अपने-अपने देश लौटना चिंतनीय प्रश्न खड़े करता है। भविष्य में कई देशो में बेरोजगारी चरम पर पहुंच जाएगी। दो माह में करोड़ो लोगों की नोकरियां चले जाने से दर महामंदी के बाद से सर्वोच्च स्तर पर जा पहुंची।

कई देशों के लोग भी वहां बेरोजगार एवं संक्रमण देखते वापस अपने देश लौटने का मन बना चुके। कई देशों में पहले से ही बेरोजगारी है। अगर विदेश से आए बेरोजगार युवा अपने देश वापस आए तो उन्हें रोजगार मिलना असम्भव-सा होगा। पलायन होने पर जहां रहते उस जगह सभी चीजों से मोह हो जाता है। रिश्ते बन जाते है। लेकिन परिस्थितियां ही युद्ध के कारण कुछ ऐसी बनीं कि मजबूरन पलायन की ओर रुख करना पड़ा।

वापस अपने घर आए पलायनकर्ता अब वापस जाने से कतरा रहे है। वे रूखी-सूखी अपने घर में खाकर सुकून से रहना चाहते है। रोजगार भी अपने ही गांव-शहरों में या आसपास तलाश करने लगे हैं। स्वरोजगार की चाहत रखने लगे। पलायन से उद्योगों में मजदूरों कमी से एक विकराल समस्या सामने आ खड़ी हुई है। अब महसूस होने लगा पलायन कितना दर्द भरा होता है।

कोई भी व्यक्ति शौक से अपना घर और शहर या गांव नहीं छोड़ता है। अगर घर के आसपास बेहतर पढ़ाई और रोजगार के अवसर मौजूद हों तो कोई क्यों हजार या दो हजार किलोमीटर दूर किसी अनजान जगह पर अपना जीवन तलाशने जाएगा! इस स्थिति के लिए सरकारों की अदूरदर्शिता और योजनाएं बनाने में कल्पनाशीलता का अभाव जिम्मेदार है। इस लिहाज से देखें तो इस गंभीर समस्या की आखिरी जिम्मेदारी सरकार और उसकी दृष्टि पर जाती है।


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