- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- चुनाव की राह

Written by जनसत्ता; चुनावी महोत्सव के रंग में रंग जाने का समय है, जिसका पहला पड़ाव जोरदार प्रचार और चुनावी उम्मीदवार का नामांकन करना है। यही वास्तव में असल चुनावी अखाड़े में उतरने और लड़ने का प्रमाण पत्र है, भले उन्हें राजनीति के शाब्दिक अर्थ का भी ज्ञान हो या न हो। आज राजनेता कहलाने वाले लोग पूर्व में समाजसेवक नाम से परिचत थे। हालांकि वास्तविकता यह है कि ज्यादातर समाज सेवक निस्वार्थ भाव से काम करते हैं।
दूसरी ओर, अपराधियों, शराबियों, माफियाओं एवं मौकापरस्त लोगों को चुनावी उम्मीदवार बना कर कुछ रंगे सियारों को भविष्य में भारत का भाग्य विधाता बनाने की कोशिश की जा रही है। ऐसे उम्मीदवार जनता की उम्मीदों पर विपरीत वार ही करेंगे, यही तय है। जैसा उद्देश्य, वैसे ही उनकी पूर्ति और प्राप्ति के निहित काम होते हैं। अगर उद्देश्य केवल अपने स्वार्थों को ध्यान रख करने हैं, अन्यथा वह आवाम के हक की पूर्ति नहीं कर पाएंगे।
आज हर पार्टी यह भलीभांति समझती है कि जनता के व्यावहारिक मुद्दे बहुतेरे हैं, जिन पर अभी भी बहुत काम होना बाकी है। लेकिन जानबूझ कर वे केवल ऐसे मसलों को छेड़ते भर ही हैं। वे इन मुद्दों को जनता के सामने रखते तो हैं, पर ऐसे मुद्दों को किन सफल रास्तों से पार किया जाए, उन विषयों पर बात करते वे हिचकिचाते दिखते हैं।
दरअसल, उन्होंने ऐसा खाका तैयार ही नहीं किया, जिस पर काम हो सके! बेरोजगारी दूर करने के लिए शिक्षा और शिक्षा के अवसरों, रोजगार के साथ स्वरोजगार जैसे उपायों की तलाश हो। मुफ्त बिजली की जगह सौर ऊर्जा के विस्तार पर ध्यान हो। स्वास्थ्य योजनाओं के साथ खाद्य पदार्थों में रसायन और मिलावट के साथ पर्यावरण के सुधार की योजनाओं के अलावा आयात-निर्यात के स्तर पर भी काम किया जाए। बाहरी और आंतरिक सुरक्षा, आय के विभिन्न स्रोेतों का ज्ञान, नई तकनीकी से जनता को लाभ कैसे मिले आदि अनेक विषय हैं, जिन पर काम होना बाकी है।
वन आर्थिकी को सशक्त करने के लिए सुदूर गांवों तक पहुंचा रहे बाजार की खबर पढ़ी। महिलाओं के जीवन में समृद्धि लाने के वनोपज एकत्र करने के बाद उत्पाद बनाकर बेचने का कार्य वन के समीप बसे समुदाय के लिए वनोपज आजीविका का साधन एवं महिला सशक्तिकरण को एक नई दिशा देगा। कुछ दिनों पहले आनलाइन मिलेंगे आदिवासी महिलाओं के बनाए उत्पाद की खबर भी आई थी।
आदिवासी महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए श्योपुर में आनलाइन शापिंग वेबसाइटों में अस्सी से अधिक उत्पादकों को आगे लाया गया। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में महिलाएं मजदूरी के अलावा घरेलू नुस्खों से ही औषधि बनाने के लिए जगलों की जड़ी-बूटियों से कारोबार कर अपनी आय में बढ़ोतरी कर रही हैं। महिला समूह की इकाई का कार्य प्रशंसनीय है।
गौरतलब है कि तोरणमाल (महाराष्ट्र) में भी महिलाएं जड़ी-बूटियों को ढूंढ़ कर कारोबार करती आ रही हैं। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों अपने पूर्वजों के ज्ञान से पीढ़ी दर पीढ़ी जड़ी-बूटियों की पहचान कर छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज जड़ी-बूटियों की औषधि बनाकर करते आए हैं। आयुर्वेदिक दवाइयों में इनके उपयोग किए नुस्खों का रूप को देखने को मिलता है।
इंसान के अलावा पशु-पक्षियों का भी जड़ी बूटियों से इलाज किया जाता रहा है। अगर ये भी छत्तीसगढ़ की तरह कारोबार में प्रतिभागी बनें तो जड़ी-बूटियों के कारोबार को विस्तृत रूप मिलेगा ही, साथ ही जंगल की जड़ी-बूटियां भी विलुप्त होने से बच सकेंगी। वन की आर्थिकी सुधारने के लिए जरूरी है कि ग्रामीण समुदाय वनों के मालिक बनें।