- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- नफरत की सड़क
Written by जनसत्ता: पहले नूपुर शर्मा, फिर 'अग्निवीर', उसके बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिरोध और अब उदयपुर की घटना। इसमें कोई शक नहीं कि उदयपुर की घटना हिला देने वाली है और किसी भी लिहाज से ऐसी घटना का बचाव करना खुद में अपराधी होना है। ऐसी जघन्य हिंसा और घृणित मानसिकता हमारे समाज को तो कमजोर करती ही है, धर्म को भी बदनाम ही करती है। इस तरह के अपराधों से तो किसी धर्म के भगवान खुश नहीं होंगे! ऐसे दरिंदों को किसी भी कीमत पर बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए।
यह समझना मुश्किल है कि ऐसी घटनाएं राजस्थान में ही बार-बार क्यों होती हैं! राजस्थान में ही इसी तरह शंभूलाल रैगर नाम के एक दरिंदे ने अफराजुल नाम के एक मजदूर को कुल्हाड़ी से बेरहमी से मार कर जला डाला था। शर्मनाक यह है कि उसे नफरती गिरोहों की तरफ से समर्थन भी मिला और उसके लिए चंदा भी जुटाया गया।
सवाल है कि इस सबके पीछे मूल वजह क्या है? क्या कारण है कि किसी हत्यारे और अपराधी को फर्जी राष्ट्रवादियों के गिरोह का समर्थन मिल जाता है और उसे बचाने के लिए अभियान चलाया जाता है? क्या इसकी वजह नफरत का वह संगठित कारोबार नहीं है जो साल दर साल से रोज देश भर में अफीम के रूप में प्रसारित होता है? क्या भीड़ के हाथों हत्या का बचाव करना, हत्यारों को माला पहनाना, टीवी मीडिया को जहर की फैक्टरी बना देना, लगातार हिंदू-मुसलमान के जज्बातों को छेड़ना इसकी वजह नहीं है? क्या जनता को बांट कर चुनावी लाभ लेने की कुटिल मंशा इसके पीछे काम नहीं कर रही है?
यह बहुत कठिन समय है। यह हमारे एकजुट और शांत हो जाने का समय है। अगर हम एक न हुए, सौहार्द न बढ़ाया, आपसी प्रेम को मजबूत नहीं किया तो हम वह दिन देखेंगे जिसके बारे में सोच कर रूह कांपती है। किसी भी तरह की धार्मिक कट्टरता को कुचलने और उसे हराने का काम जनता ही कर सकती है… और कोई नहीं। हमारा देश बहुत सुंदर है। आइए, हम सब मिल कर इसे नफरत की आग से बचाएं और संवारें।े तभी हमारी भारत माता की जय हो सकती है।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर और रीवा शहर में मासूम बच्चियों से बलात्कार की घटना ने एक बार फिर देश का सिर शर्म से झुका दिया है। ऐसा लगता है कि इन मासूम बच्चियों से बलात्कार करने वाले आरोपियों को न तो कानून का डर है, न किसी और का। देश के अलग-अलग इलाकों से रोजाना ही ऐसी अमानवीय खबरें आती हैं। ऐसी घटनाओं के बाद भी महिला सुरक्षा और बलात्कारियों के खिलाफ कोई सख्त व्यवस्था लागू करने को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। हालांकि कहने को बलात्कार के अपराधों के खिलाफ सख्त कानून हैं।
विरोध की कोई चिंगारी उठती भी है तो अन्य धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों के बीच ठंडी पढ़ जाती है। सवाल है कि इस सबसे चिंताजनक समस्या के कायम रहते हम किस धर्म, राजनीति और देश की आत्मा को बचा सकेंगे? मुख्यधारा के सवालों में उलझते हुए क्या हमें एक बार लगता है कि स्त्रियों की जिंदगी में इस त्रासदी को दूर किए बिना हम कभी भी एक सभ्य समाज नहीं बन सकते?
यों महिला सुरक्षा को लेकर हर नेता बड़े-बड़े वादे करता है, पर वे सिर्फ चुनावी घोषणा-पत्रों तक सीमित रह जाते हैं। जो लोग धर्म और जाति के नाम पर वोट मांग रहे हैं, उन्हें यह पता होना चाहिए कि महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा हर धर्म, जाति और समुदाय का प्रमुख कर्तव्य है। आज देश में लोग अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, पर देश की महिलाओं की रक्षा के लिए क्यों कोई आगे नहीं आ रहा? देश में सरकार चाहे जिस भी पार्टी की रहे, कानून व्यवस्था में महिलाओं और छोटी बच्चियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक सख्ती कानूनी व्यवस्था की जरूरत है। कहने के लिए देश में स्त्रियों का दर्जा देवी के बराबर माना जाता है, लेकिन यहीं ऐसी घटनाएं पूरे समाज और व्यवस्था की हकीकत बताती है। अब समय आ गया है कि समाज का हर एक वर्ग एकजुट होकर बच्चों और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाए।