सम्पादकीय

हादसों की सड़क

Subhi
6 Sep 2022 4:47 AM GMT
हादसों की सड़क
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महाराष्ट्र के पालघर में रविवार को हुए एक हादसे में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की मौत ने एक बार फिर सड़कों पर मामूली लापरवाहियों की वजह से लोगों की जान जाने के मसले की ओर सबका ध्यान खींचा है।

Written by जनसत्ता: महाराष्ट्र के पालघर में रविवार को हुए एक हादसे में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की मौत ने एक बार फिर सड़कों पर मामूली लापरवाहियों की वजह से लोगों की जान जाने के मसले की ओर सबका ध्यान खींचा है। यों शायद ही ऐसा कोई दिन जाता हो, जब ऐसे हादसे नहीं होते हैं और उसमें लोगों की जान नहीं जाती हो, मगर इसकी गंभीरता को लेकर तभी बहस होती है, जब कोई मामला सुर्खियों में आ जाता है। साइरस मिस्त्री की मौत जिस हादसे में हुई, उसमें उनकी कार अहमदाबाद से मुंबई लौटते हुए राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर डिवाइडर से टकरा गई।

कार में अगली सीट पर बैठे दो लोगों की जान तो किसी तरह बच गई, लेकिन पिछली सीट पर सवार साइरस मिस्त्री सहित एक अन्य व्यक्ति की मौत हो गई। शुरुआती वजहों में यही जानकारी सामने आई है कि संभवत: पिछली सीट पर बैठे साइरस मिस्त्री और एक अन्य व्यक्ति ने सीट बेल्ट नहीं लगाई थी और खबरों के मुताबिक कार में पिछली सीट पर एअर बैग नहीं था। नतीजतन, पिछली सीट बैठे दोनों के सिर में गहरी चोट आई और उनकी जान चली गई।

इस हादसे के ब्योरे के मुताबिक कुछ साधारण लापरवाहियों की वजह से कार का नियंत्रण बिगड़ गया और इसकी कीमत दो लोगों की जिंदगी बनी। अगर गाड़ी चलाते हुए रफ्तार को काबू में रखा गया होता तो शायद यह दुर्घटना होती ही नहीं। इसके बाद अगर कार हादसे का शिकार हो भी गई और उसमें सवार लोगों ने सीट बेल्ट लगाने जैसी मामूली सावधानी बरती होती तो कम से कम उनकी जान बच गई होती।

आखिर आगे बैठे दो लोगों का जीवन इसी सावधानी की वजह से बचा। यों एक सवाल यह भी है कि इतनी महंगी और सभी तरह के सुरक्षा-उपायों से लैस वाहन में पिछली सीट के लिए एअर बैग क्यों नहीं थे! लेकिन तकनीकी खामी का मामला लगभग अनिश्चित होता है और सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली कोई तकनीक भी कभी अचानक नाकाम हो जा सकती है। ऐसे में तकनीक के स्तर पर सुरक्षा के लिए सभी उपायों से लैस होने के बावजूद सावधानी बरतने और बचाव के लिए खुद को तैयार रखने को लेकर हमेशा सजग रहना ही कई बार सबसे अहम साबित होता है।

यह छिपा नहीं है कि सड़क सुरक्षा के साधारण उपायों को लेकर भी लोग कैसी उदासीनता बरतते हैं और इसकी वजह से आए दिन कैसे हादसे होते रहते हैं। दुर्घटना की वजहों से लेकर उसके बाद घायलों को वक्त पर अस्पताल पहुंचाने में देरी के चलते भी वैसे लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है, जिन्हें बचाया जा सकता था। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की हाल में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल देश भर में हुए सड़क हादसों में एक लाख पचपन हजार छह सौ बाईस लोगों की जान चली गई।

ऐसी दुर्घटनाओं की कई वजहें हैं और आमतौर पर सभी जानते हैं। इसके बावजूद ऐसे तमाम लोग होते हैं, जो सड़क पर वाहन चलाते हुए रफ्तार पर लगाम रखने की जिम्मेदारी को समझना जरूरी नहीं समझते। हैरानी की बात यह भी है कि अगर ऐसे लोगों को दूसरों की परवाह नहीं होती तो वे खुद अपने जीवन को बचाने को लेकर भी शायद गंभीर नहीं होते। सिर्फ नियंत्रित तरीके से वाहन चला कर जहां सुरक्षित सफर किया जा सकता है, वहां लोग बेलगाम रफ्तार को शान का पर्याय मानते हैं। यह जगजाहिर तथ्य रहा है कि सिर्फ इस वजह से अक्सर होने वाले सड़क हादसों में नाहक ही मौतें होती हैं। अकेले रफ्तार पर लगाम लगा कर ही सड़क हादसों में काफी कमी लाई जा सकती है।


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