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रिवरफ्रंट विकास के दोनों माडल पर करना चाहिए विचार
भरत झुनझुनवाला। अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट की सफलता को देखकर अक्सर कहा जाता है कि दिल्ली और अन्य शहरों में यमुना किनारे भी ऐसा किया जाए। नि:संदेह साबरमती रिवरफ्रंट से अहमदाबाद का विकास हुआ है। वहां साप्ताहिक हाट की व्यवस्था की गई है। विस्थापितों को अन्यत्र बसाया गया है। साबरमती के पाट की चौड़ाई पहले 382 मीटर थी जो रिवरफ्रंट बनने के बाद 275 मीटर रह गई है। पाट के सिकुड़ने से बची भूमि के 80 प्रतिशत हिस्से को खुला रखा गया है। उसमें कुछ जगह पर पौधारोपण हुआ है। खास बात यह है कि साबरमती पानी से लबालब भरी रहती है। इससे नयन सुख मिलने के साथ-साथ भूमिगत जल का पुनर्भरण होता है। उधर पिछले कुछ अर्से से रिवरफ्रंट विकास का दूसरा माडल भी लागू किया जा रहा है। इसमें नदी के पाट पर हुए अतिक्रमण को ध्वस्त कर पाट को और चौड़ा किया जाता है। कई देशों में सरकार ने भूमि अधिग्रहीत कर नदी को वापस लौटाई है। चौड़े किए गए पाट में पौधारोपण आदि करके नदी को वापस अपने प्राकृतिक रूप में बहने का अवसर दिया है।
नदी के पाट को संकुचित करने से हमें भूमि मिलती है। उस पर भवन निर्माण करके हम आर्थिक विकास करते हैं। दूसरे माडल में हम नदी के पाट को फैलाकर उसमें हरियाली बढ़ाते हैं। इससे पाट से लगी भूमि की कीमत बहुत बढ़ जाती है। जैसे पार्क के सामने का मकान गली के अंदर के मकान से महंगा मिलता है। पाट के बाहर की भूमि की कीमत बढ़ने से जो आर्थिक विकास होता है, वह माडल भारत जैसे देश के लिए विशेष उपयोगी है, क्योंकि हमारे आर्थिक विकास में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है। सेवा क्षेत्र से जुड़े उद्यमों के लिए हरियाली और प्राकृतिक रूप में बहती नदी के करीब दफ्तर बनाना अधिक लाभप्रद है। बिल्कुल वैसे जैसे पोषक तत्वों से भरपूर भोजन कम मात्र में भी मिले तो वह पर्याप्त होता है।
अपने देश में नदियों को मां कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा किनारे स्थित वाराणसी को विश्व की आध्यात्मिक राजधानी बनाने की बात कही थी। गंगा की भांति यमुना के प्रति भी देशवासियों की श्रद्धा है। इसीलिए दोनों नदियों के संगम स्थल प्रयागराज को तीर्थराज भी कहा जाता है। प्रयागराज में जिस यमुना का गंगा में मिलन होता है, वह इन दिनों अपनी गंदगी को लेकर चर्चा में है। छठ के अवसर पर वह दिल्ली में इतनी प्रदूषित हो गई, मानों उसमें जहर घुला हो। प्रदूषण के कारण उससे झाग निकलने लगे। यमुना का पानी यमुनोत्री से चलता है, तो वहां से नीचे आता है, लेकिन हरियाणा के यमुनानगर स्थित हथिनीकुंड बैराज पर यमुना का लगभग पूरा पानी निकाल लिया जाता है। पानीपत और सोनीपत के पास यमुना अमूमन पूरी तरह सूख जाती है। यमुना को पुनर्जीवित करने के लिए पर्याप्त मात्र में पानी हथिनीकुंड से छोड़ना होगा।
सरकार को आकलन करना चाहिए कि यमुनोत्री से निकले पानी से खेती करने में कितना आर्थिक विकास होता है और उसी पानी से दिल्ली में यमुना किनारे साफ्टवेयर पार्क, बैंक और अस्पताल आदि बनाकर कितना अतिरिक्त लाभ होगा। मेरा आकलन है कि यमुनोत्री के पानी में निहित ऊर्जा से यदि हरियाणा के किसान को 100 रुपये का लाभ होता है, तो दिल्ली के साफ्टवेयर पार्क को एक लाख रुपये का लाभ हो सकता है। दिल्ली द्वारा हरियाणा को पानी छोड़ने के लिए पर्याप्त मुआवजा दिया जा सकता है। तब हथिनीकुंड से पानी छोड़ना दिल्ली और हरियाणा, दोनों के लिए लाभप्रद हो जाएगा। यह समस्या साबरमती माडल में हल नहीं हो रही है। अहमदाबाद के ऊपर एक बांध से साबरमती का पूरा पानी निकाल लिया जाता है। फिर उसमें नर्मदा का पानी प्रवाहित किया जाता है। अहमदाबाद के नीचे दूसरा बांध बनाकर उस पानी को बहकर समुद्र में जाने से रोक लिया जाता है। वस्तुत: साबरमती रिवरफ्रंट एक प्रकार से रुके हुए पानी का 10 किलोमीटर लंबा तालाब है। नर्मदा की शक्ति का भी उसमें उपलब्ध होना संदिग्ध है, क्योंकि वह पानी एक लंबी यात्रा और तमाम व्यवधानों को पार करते हुए अहमदाबाद तक पहुंचता है।
इस बीच एक बड़ा सवाल यही है कि रिवरफ्रंट के माध्यम से हम आखिर किन मानवीय जरूरतों को पूरा करना चाहते हैं? मनोविज्ञानी एब्रहाम मासलो के अनुसार मनुष्य की आवश्यकताओं की सात श्रेणियां हैं। इनमें मनुष्य क्रमश: नीचे से ऊपर उठता है। ये श्रेणियां हैं भौतिक, सुरक्षा, आत्मीयता, स्वाभिमान, ज्ञान, सौंदर्य और आत्मज्ञान। जब हम नदी को कंक्रीट में बांधकर उसके पाट पर मकान बनाते हैं तो उनसे भौतिक एवं सुरक्षा की निचली इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। इसके विपरीत यदि हम नदी के पाट का विस्तार कर उसे वनस्पतियों और प्राणियों से आबाद करते हैं तो हम अपनी ज्ञान एवं सौंदर्य संबंधी उच्च अभिलाषाओं की पूर्ति करते हैं। ऐसी स्थिति में दिल्लीवासी भी यमुना के शुद्ध जल से आचमन और स्नान करके आनंदित होने के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी उठा पाएंगे। कुछ आकलनों के अनुसार दिल्ली पर बाढ़ का भारी खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि हिमालयी क्षेत्र में होने वाली भारी वर्षा कभी भी दिल्ली के लिए खतरे का सबब बन सकती है। ऐसी स्थिति में यमुना अगर कंक्रीट की दीवारों के बीच बहेगी तो उसकी बाढ़ के पानी को ले जाने की क्षमता न्यून रह जाएगी। सामान्य रूप से नदी का पाट अंग्रेजी के 'वी' अक्षर के आकार का होता है। पानी की मात्रा बढ़ने से नदी को फैलकर बहने का अवसर मिलता है। इससे पानी का स्तर बहुत ज्यादा नहीं बढ़ता।
हमें देश में सभी नदियों के लिए रिवरफ्रंट विकास के दोनों माडल पर विचार करना चाहिए। मसलन नदी के पाट को छोटा करें या उसे बढ़ाएं। दोनों में बुनियादी अंतर यही है कि साबरमती में पाट को सिकोड़कर प्राप्त हुई भूमि की मात्र बढ़ाई गई और पानी को निकालकर कृषि का विस्तार किया गया। दूसरे माडल में पाट को चौड़ा करके किनारे की भूमि का मूल्य बढ़ाया जाएगा। यदि दिल्ली में इस राह पर आगे बढ़ा गया, तो राष्ट्रीय राजधानी को न केवल यमुना की ऊर्जा मिलेगी, अपितु दिल्ली की सेहत सुधारने और बाढ़ से बचाव में भी मदद मिलेगी। अब यह सरकार को तय करना है कि स्थिति का समग्र आकलन कर वह कौनसा विकल्प चुने।
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)
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