सम्पादकीय

मणिपुर विधानसभा चुनाव में नदी संरक्षण का मसला

Deepa Sahu
25 Feb 2022 5:44 AM GMT
मणिपुर विधानसभा चुनाव में नदी संरक्षण का मसला
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एक जुलाई 2022 से पूरे देश में सिंगल यूज यानी केवल एक बार उपयोग में आने वाले प्लास्टिक के उपयोग पर पाबंदी के नए आदेश से मणिपुर की राजधानी इंफाल की एक नदी की जान में जान आई है।

पंकज चतुर्वेदी। एक जुलाई 2022 से पूरे देश में सिंगल यूज यानी केवल एक बार उपयोग में आने वाले प्लास्टिक के उपयोग पर पाबंदी के नए आदेश से मणिपुर की राजधानी इंफाल की एक नदी की जान में जान आई है। दरअसल हर बार चुनाव के समय हर राजनीतिक दल बेशुमार कचरे के कारण मौत के कगार पर खड़ी इंफाल की एक नदी के संरक्षण का मसला जरूर उठाते हैं, लेकिन जमीन पर कभी कुछ होता दिखा नहीं। मणिपुर की राजधानी इंफाल में 'मां का बाजारÓ दुनिया में एक अनूठा व्यावसायिक स्थल है जहां केवल महिलाएं ही दुकानें चलाती हैं। सदियों पुराने इस बाजार में लगभग पांच हजार महिलाओं का व्यवसाय है।

बीते दो दशकों के दौरान जिस वस्तु ने खरीदारी करने वालों को सामान ले जाने के लिए सुविधा दी, वही आज इस बाजार और इससे सटी नांबुल नदी के अस्तित्व पर संकट का कारण बन रही है। इस बाजार में आने वाली फल-सब्जी का उत्पादन इस नदी के जल से होता है। नदी के जल की सहज धारा कभी यहां के परिवेश को मुग्ध करती थी। आज इस नदी में जल के स्थान पर केवल पालीथीन, पानी की बोतलें व अन्य प्लास्टिक पैकिंग सामग्री का अंबार दिखता है। यह नदी आगे चल कर विश्व के एक मात्र तैरते नेशनल पार्क व गांवों के लिए प्रसिद्ध लोकटक झील में मिलती है और जाहिर है कि नदी के जहर का कुप्रभाव इस झील पर भी पड़ रहा है।
वर्ष 2019 में नांबुल नदी के कायाकल्प और संरक्षण के शुभारंभ ने नदी के प्रदूषण स्तर को कुछ हद तक कम करने में मदद की है, लेकिन आज भी यह देश की सबसे दूषित नदियों में शामिल है। विदित हो कि सीपीसीबी यानी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पांच अलग-अलग प्राथमिकता के आधार पर देश की 351 नदियों को अत्यधिक प्रदूषित के रूप में पहचाना था, जिसमें मणिपुर की नौ नदियों को सूचीबद्ध किया गया था, उनमें नांबुल एक है। अकेले इंफाल से हर दिन लगभग 12 टन कूड़ा निकलता है और इसके निबटारे की कोई माकूल व्यवस्था है नहीं। या तो इस कूड़े को शहर के बाहर पहाड़ी क्षेत्रों में फेंक दिया जाता है या फिर शहर के बीच से गुजरती नांबुल नदी में डाल दिया जाता है। लगातार कूड़ा फेंकने से जब शहर में नदी ढंक गई तो स्थानीय प्रशासन ने 2018 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत शहर में 50 माइक्रान से कम मोटाई की पालीथीन पर पाबंदी लगा दी। हालांकि स्थानीय लोगों ने नए नियमों का पालन शुरू किया, परंतु बाहरी लोग ऐसा कम ही करते दिखते हैं।
इस बार के चुनाव में पालीथीन पर सख्ती से पाबंदी, नदी की सफाई और शहर से निकलने वाले कूड़े के वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण जैसे मसले सबसे आगे हैं। बाजार चलाने वाली महिलाएं इस पर सबसे ज्यादा मुखर हैं और हर राजनीतिक दल इसके निराकरण के वादे अपने घोषणा पत्र में कर रहा है। एक स्थानीय सर्वेक्षण से पता चला है कि इंफाल शहर में साल दर साल सांस के रोगियों की संख्या बढ़ रही है और इसके मूल में भी प्लास्टिक कचरा ही है।
यह बात अब सबको खटक रही है कि इंफाल में पेयजल के मुख्य स्रोत नांबुल नदी 10 किमी के अपने रास्ते में नदी के रूप में दिखना ही बंद हो गई है। केवल यह नदी ही नहीं, इसके अलावा राज्य की अन्य आठ नदियों की भी कमोबेश यही दशा है। यानी आज मणिपुर की नदियां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं और जागरूक लोग इसे मतदान के दवाब से बचाने का प्रयास कर देश के सामने सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। इससे एक बड़ा विमर्श यह भी खड़ा हो सकता है कि मणिपुर के लोग जल संरक्षण के मसले को प्राथमिकता देते हैं, जैसाकि उत्तर भारत के तमाम राज्यों में कम ही दिखता है।


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