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अर्थव्यवस्था भारत को हथियार निर्यात पर निर्भर है।
यूक्रेन के घटनाक्रम के चलते विश्व स्तर पर खतरे की घंटी बज रही है। करीब एक लाख रूसी सैनिक यूक्रेन की सीमा पर डटे हुए हैं और अमेरिकी सैन्य सूत्रों को आशंका है कि रूस यूक्रेन पर हमला करने वाला है। अमेरिकी सरकार द्वारा यूक्रेन में रहने वाले अमेरिकी नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने की सलाह दी गई है, क्योंकि वहां युद्ध छिड़ सकता है। रूसी सेना यूक्रेन के उत्तर में अपनी सीमाओं पर बेलारूस की सेना के साथ अभ्यास कर रही है, जो और भी चिंताजनक है।
करीब 70,000 अमेरिकी सैनिक यूरोप में स्थायी रूप से तैनात हैं। उनमें से करीब आधे जर्मनी में हैं। अमेरिकी सेना का एकीकृत यूरोपीय कमान मुख्यालय स्टुअटगार्ट में है। सेना जर्मनी में पांच सैन्य जमावड़े की देखभाल करती है और वायुसेना के यूरोपीय संचालन का मुख्यालय रैमस्टीन एयरबेस में है। स्थायी सैनिकों के अलावा, 7,000 अतिरिक्त अमेरिकी सैनिक अटलांटिक रिजॉल्यूशन नामक नाटो समर्थन मिशन के हिस्से के रूप में छोटी-छोटी पारी की तैनाती पर यूरोप में हैं।
इनमें 85 हेलीकॉप्टरों के साथ एक विमानन प्रभाग, तोपखाने और टैंकों के साथ एक बख्तरबंद डिविजन शामिल है। उन सैनिकों का मुख्यालय पॉज्नान, पोलैंड में है।
हालांकि, अमेरिका को रूसी सैनिकों के साथ किसी भी सशस्त्र संघर्ष की आशंका नहीं है, क्योंकि यूक्रेन नाटो का हिस्सा नहीं है, लेकिन इसने लगभग 5,000 सैनिकों को यूक्रेन के पड़ोसी देशों यानी रोमानिया और बेलारूस में स्थानांतरित कर दिया है। और शायद पोलैंड में भी।
दरअसल विवाद का मुख्य बिंदु यह है कि रूस यूक्रेन को नाटो का हिस्सा बनने की अनुमति नहीं दे सकता, क्योंकि उसके आकलन के मुताबिक, नाटो सैनिकों और सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों की निकटता रूसी क्षेत्र के लिए आसन्न खतरा पैदा करेगी। जबकि यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की मांग यूरोपीय संघ के कई सदस्यों द्वारा उठाई गई है, जिसका मुख्य कारण वर्तमान यूक्रेनी नेतृत्व द्वारा नाटो की सुरक्षात्मक छतरी का लाभ उठाने के लिए दिया गया एक प्रस्ताव है।
वस्तुतः यूक्रेन क्रीमिया की तरह अपने और क्षेत्रों पर रूस द्वारा कब्जा कर लेने की आशंका से डरता है। वर्ष 2014 में रूस ने यूक्रेन के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया था। यूक्रेन के नेतृत्व को क्रीमिया के लिए भूमि मार्ग की सुविधा प्रदान के लिए रूस द्वारा दक्षिण पूर्वी क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर फिर से कब्जा कर लेने का डर भी है। रूस के बाद यूक्रेन यूरोप में क्षेत्रफल के हिसाब से दूसरा सबसे बड़ा देश है, जिसकी सीमा पूर्व और उत्तर-पूर्व में है।
यूक्रेन समाजवादी आंदोलन का एक प्रमुख खिलाड़ी था। सोवियत नेतृत्व के कई सदस्य यूक्रेन से आए थे, विशेष रूप से निकिता ख्रुश्चेव और लियोनिद ब्रेझनेव वर्ष 1964 से 1982 तक सोवियत नेता थे। इसके अलावा भी कई प्रमुख सोवियत खिलाड़ी, वैज्ञानिक और कलाकार यूक्रेन के थे। वर्ष 1954 में रूसी आबादी वाले क्रीमिया को रूस से यूक्रेनी सोवियत गणराज्य में स्थानांतरित कर दिया गया था।
यूक्रेन ने 24 अगस्त, 1991 को सोवियत संघ से अलग होते हुए स्वयं को आधिकारिक तौर पर स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। और फिर सोवियत संघ का भी 26 दिसंबर को अस्तित्व समाप्त हो गया, जब यूक्रेन, बेलारूस और रूस (सोवियत संघ के संस्थापक सदस्य) के राष्ट्रपति सोवियत संविधान के अनुसार, संघ को औपचारिक रूप से भंग करने के लिए मिले। लेकिन इन परिवर्तनों के बावजूद तत्कालीन सोवियत संघ के कुछ अवशेष अब भी यूक्रेन के भीतर पाए जा सकते हैं।
सबसे पहले, पूर्वी यूक्रेन और क्रीमिया की अधिकांश आबादी रूसी थी, जिनका रूस के प्रति लगाव बना रहा। और यही मुख्य कारण रहा कि रूस को क्रीमिया पर कब्जा करने में किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। सोवियत संघ काल में, पूर्वी यूक्रेन में कई उच्च प्रौद्योगिकी आयुध और सैन्य शिपिंग उद्योग स्थापित किए गए थे और जो निष्क्रिय थे।
सोवियत संघ के विघटन के बाद, यूक्रेनी अधिकारियों के पास सोवियत शस्त्रागार के एक हजार से अधिक परमाणु हथियार थे, जिन्हें नष्ट करने के लिए रूस भेजा गया था। अभी रूस-यूक्रेन सैन्य टकराव के अलावा पूर्वी यूक्रेन में एक बहुत मजबूत अलगाववादी आंदोलन चल रहा है, जिससे एक अस्थिर सशस्त्र संघर्ष की आशंका है। यह आरोप लगाया जाता है कि रूसी सेना द्वारा सशस्त्र संघर्ष को बढ़ावा दिया जा रहा है।
पश्चिमी यूक्रेन ने राजनीतिक रूप से और व्यावसायिक उद्यमों के जरिये पश्चिमी देशों को इसमें शामिल किया है और इसे अमेरिका की तरफ झुकाव के रूप में देखा जाता है। इस मामले में राहत की बात सिर्फ यह है कि यूरोपीय और रूसी नेताओं के बीच कई बैठकें हो चुकी हैं, विशेष रूप से बाइडन और पुतिन के बीच संवाद। दूसरी ओर चीनी शासन ने स्पष्ट रूप से रूसी नेतृत्व का पक्ष लिया है।
इस मामले में भारत सरकार दुविधा में फंसी हुई है, जिसे वह कूटनीति से हल करने की कोशिश कर रही है, हालांकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर चर्चा में भारत ने रूस के खिलाफ मतदान से परहेज किया था। रूस के साथ भारत का संबंध सोवियत संघ के समय से ही मित्रवत रहा है। रूस से भारत को हथियारों की आपूर्ति महत्वपूर्ण है, खासकर तब, जब चीनी सैनिक लद्दाख की सीमाओं पर जमा हैं।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में भारत ने फ्रांस और इस्राइल पर भरोसा करके अपने हथियार आयात के स्रोतों में काफी विविधता लाई है, फिर भी यह रूस से अपने एयरोस्पेस, छोटे हथियार, कवच सामग्री हासिल करना जारी रखे हुए है। भारत ने हाल ही में भारतीय कारखानों में असॉल्ट राइफल्स के निर्माण के लिए रूस के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किया है।
यह भारतीय आयात के लगभग 60 फीसदी में से एक छोटा सा हिस्सा है। इसके अलावा रूस से भारत को परमाणु अयस्क और विशेष धातुओं की भी आपूर्ति होती है। रूस को भी पारस्परिकता की भावना को ध्यान में रखना होगा, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था भारत को हथियार निर्यात पर निर्भर है।
सोर्स: अमर उजाला
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