सम्पादकीय

बढ़ता तनाव

Subhi
30 Aug 2022 5:02 AM GMT
बढ़ता तनाव
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ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच जैसा तनाव इन दिनों देखने को मिल रहा है, वह चिंताजनक है। लग रहा है जैसे दोनों देश युद्ध की ठाने बैठे हैं। ऐसा इसलिए कि ताइवान को लेकर चीन पीछे हटने वाला है

Written by जनसत्ता: ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच जैसा तनाव इन दिनों देखने को मिल रहा है, वह चिंताजनक है। लग रहा है जैसे दोनों देश युद्ध की ठाने बैठे हैं। ऐसा इसलिए कि ताइवान को लेकर चीन पीछे हटने वाला है नहीं और अमेरिका किसी भी कीमत पर ताइवान को चीन के हाथ में नहीं देना चाहता। जाहिर है, यह टकराव चलता रहेगा और इस बात का खतरा भी बढ़ता रहेगा कि कहीं यह इलाका भी जंग का वैसा केंद्र बन न बन जाए जैसा कि आज यूक्रेन बना हुआ है।

हालांकि ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका पहले से भिड़ते रहे हैं, पर इस बार स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर नजर आ रही है। गौरतलब है कि ताइवान जलडमरूमध्य में चीनी सेना की गतिविधियां अचानक बढ़ गई हैं। चीन के करीब दो दर्जन लड़ाकू विमान और जंगी बेड़े ताइवान के करीब युद्धाभ्यास कर रहे हैं। इसके जवाब में अमेरिका के भी दो बेड़े ताइवान जलडमरूमध्य से गुजरे और इलाके में अपनी मौजूदगी का संदेश दे दिया। अमेरिका के इस कदम से चीन का भड़कना लाजिमी है।

वैसे इस महीने के शुरू में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी अचानक ताइवान के दौरे के बाद से ही चीन और अमेरिका के बीच तलवारें खिंचने लगी थीं। पेलोसी का यह दौरा जिस तनावपूर्ण स्थिति में हुआ था, वह दोनों देशों के बीच बढ़ते टकराव को रेखांकित करने वाला था। पहली बार ऐसा हुआ था जब चीन की गंभीर नतीजों की धमकियों को नजरअंदाज कर किसी अमेरिकी नेता ने ताइवान का दौरा कर उसे अपना समर्थन दिया।

इस दौरे की गंभीरता का अंदाजा इसी से लग जाता है कि पेलोसी का विमान दो दर्जन अमेरिकी लड़ाकू विमानों के घेरे में ताइवान पहुंचा था। यानी अमेरिका ने चीन को साफ-साफ संदेश दे दिया कि वह उसके सामने झुकने वाला नहीं। उधर चीन के लड़ाकू विमानों ने भी पैलोसी के दौरे के बाद ताइवान के वायु क्षेत्र में उड़ान भर कर अपनी धमक दिखाई। तब से ही दोनों देश ताइवान के नाम पर जिस तरह से आमने-सामने हैं, उससे दुनिया का चिंतित होना स्वाभाविक है।

चीन की विस्तारवादी नीति अमेरिका और भारत सहित दुनिया के कई देशों के लिए बड़ी सुरक्षा चुनौती बन गई है। हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। चीन इस इलाके में अपना दबदबा बनाने के लिए सारे हथकंडे अपनाता रहा है। जबकि अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान और भारत सहित कई देश इस बात से घबराए हुए हैं कि अगर समुद्री जलमार्गों को भी चीन हथियाने लग गया तो दुनिया में एक नए तरह का संघर्ष छिड़ते देर नहीं लगेगी। इसीलिए हाल में अमेरिका ने अपने दो जंगी बेड़ों को हिंद प्रशांत क्षेत्र में भेजा।

इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन दुनिया के प्रमुख जलमार्गों पर कब्जे की रणनीति बना रहा है और उसी पर चल भी रहा है। इसीलिए हाल में भारत ने भी पहली बार सख्त रुख दिखाते हुए ताइवान के इर्दगिर्द चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों को ताइवान जलडमरूमध्य का सैन्यीकरण करार दिया है। गौरतलब है कि हाल में भारत के कड़े विरोध के बावजूद चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर अपना जासूसी जहाज युआंग वांग-5 तैनात किए रखा था। इसका मकसद भारत की जासूसी के अलावा कुछ था भी नहीं। सैन्य ताकत के बल पर दूसरों के इलाकों में घुसपैठ कर दबदबा बनाने और विवाद खड़े करने की चीन की नीति हर जगह साफ दिख रही है। चाहे वह भारत के पूर्वी लद्दाख के गतिरोध सहित सीमा विवाद हो या फिर ताइवान का मसला, इससे तो वैश्विक अशांति और बढ़ेगी ही।


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