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जलवायु परिवर्तन और धरती के बढ़ते तापमान के कारण अब जाड़े के मौसम की अवधि कम होती जा रही है
जलवायु परिवर्तन और धरती के बढ़ते तापमान के कारण अब जाड़े के मौसम की अवधि कम होती जा रही है. इससे सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में भारत भी है. इस वर्ष फरवरी 122 सालों में सर्वाधिक गरमा फरवरी रहा. वर्ष 1901, जब से तापमान के आंकड़े उपलब्ध हैं, से अब तक जो सबसे अधिक गर्म पांच फरवरी के महीने रहे हैं, वे सभी बीते 14 सालों के हैं. तापमान का राष्ट्रीय औसत ऊपर जाने में मुख्य कारक उत्तर-पश्चिमी भारत में गर्मी का बढ़ना है. उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में बीते एक दशक में अनेक बार फरवरी में अधिकतम तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जा चुका है.
इसका तात्कालिक स्थानीय कारण इस इलाके में बारिश का अभाव है, लेकिन वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी का भी असर हो रहा है. देश में फरवरी में बारिश औसत से 68 प्रतिशत कम हुई, लेकिन उत्तर-पश्चिमी भारत में यह कमी 75 प्रतिशत रही. ठंड के दिनों में कमी होने से गर्मी का मौसम बहुत मुश्किल होता जा रहा है. इसका प्रभाव खेती पर भी पड़ रहा है और लोगों की कार्यक्षमता पर भी. संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी विश्व मौसम संगठन के अनुसार, 2022 हालिया इतिहास के सबसे गर्म वर्षों में एक है.
पिछले आठ वर्षों से लगातार वैश्विक तापमान में पूर्व-औद्योगिक युग की तुलना में कम-से-कम एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है. अस्सी के दशक से हर दशक पिछले दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु समझौतों तथा अध्ययनों के सुझावों पर सही ढंग से अमल शुरू नहीं होगा, तो तापमान वृद्धि इसी तरह जारी रहेगी. जहां तक भारत की बात है, तो उत्तर-पश्चिमी हिस्से में मार्च का महीना भी सामान्य से अधिक शुष्क और गर्म रहेगा.
भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि देश के अधिकतर भागों में मार्च, अप्रैल और मई में ज्यादा गर्मी पड़ेगी और गर्म हवाएं चलेंगी. गर्मी के मौसम के जल्दी आने की आहट पाकर केंद्र सरकार ने मंत्रालयों की एक समिति गठित की है ताकि गेहूं की पैदावार पर मौसम के असर को रोका जा सके. उल्लेखनीय है कि पिछले साल अधिक तापमान के कारण गेहूं की उपज कम हुई थी.
केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य संबंधी निर्देश भी जारी किये हैं, जिन पर अमल किया जाना चाहिए. एक चिंताजनक आकलन यह भी है कि जून, जुलाई और अगस्त के मानसून की अवधि में अल-नीनो का लगभग 50 प्रतिशत प्रभाव रह सकता है, पर अधिक सही आकलन अप्रैल में ही हो सकेगा. गर्मी और लू से बचाव के साथ-साथ पानी की उपलब्धता और वितरण को लेकर भी समुचित तैयारी जरूरी है.
सोर्स : prabhatkhabar
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Triveni
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