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इस पृष्ठभूमि के विपरीत एक बड़ा टकराव जारी है और यह मुद्दा 2024 के लोकसभा चुनावों तक सुर्खियों में रह सकता है।
ऐसा लगता है कि नेशनल हेराल्ड-यंग इंडिया से संबंधित कथित मनी लॉन्डरिंग के कानूनी मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ ही मोतीलाल वोरा तथा ऑस्कर फर्नांडीस (दोनों अब दिवंगत) के प्रतिनिधित्व वाली यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड ने एजेएल (एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड) का स्वामित्व हासिल करने के लिए 2012 में कांग्रेस को 50 लाख रुपये का भुगतान किया था। इसे चुनौती देते हुए तब दिल्ली हाईकोर्ट में एक मामला दर्ज किया गया।
इस मामले के याचिकाकर्ता भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के मुताबिक, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा ऋण के रूप में हस्तांतरित 90.21 करोड़ रुपये के अलावा यंग इंडिया के पास अपनी कोई संपत्ति नहीं थी, जिसे कथित तौर पर 50 लाख रुपये के ऋण की बिक्री के रूप में छिपाया गया था। स्वामी यह भी दावा करते हैं कि एजेएल के पास दिल्ली, भोपाल, इंदौर, लखनऊ, पंचकुला और अन्य स्थानों पर 1,600 करोड़ रुपये की संपत्ति है।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इसी मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र तथा सांसद राहुल गांधी को तलब किया है। ईडी ने पिछले दो दिनों में राहुल से कई घंटों की पूछताछ की है। कांग्रेस की इस आलोचना में दम है कि कैसे प्रवर्तन निदेशालय कथित रूप से राजनीतिक प्रतिशोध के मामलों में शामिल रहा है। इस वर्ष मार्च में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में एक लिखित प्रश्न में ईडी के प्रदर्शन के बारे में कई तरह के सवाल पूछे थे।
वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने जवाब दिया कि वर्ष 2004-14 के दौरान, 112 तलाशी की गई, नतीजतन 5,346.16 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की गई और 104 मामले दर्ज किए गए। लेकिन वर्ष 2014-22 के दौरान, 2,974 तलाशी की गई, नतीजतन 95,432.08 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की गई और 839 मामले दर्ज किए गए। लेकिन ईडी के मामलों में सजा की दर देखें, तो वह और भी चौंकाने वाली है। ईडी की सजा की दर एक प्रतिशत से भी कम है।
वास्तव में, 0.5 प्रतिशत से भी कम। 2,974 छापे में 23! समझ सकते हैं कि कथित गलत कामों के आधार पर 2,974 व्यक्तियों के सम्मान और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को धूमिल किया गया, जबकि केवल 23 को ही दोषी पाया गया। 2,951 व्यक्तियों और संस्थाओं की गरिमा कौन बहाल करेगा? इस लिहाज से, कांग्रेस के सवाल उठाने और राहुल, सोनिया गांधी के साथ खड़े होने में कुछ भी गलत नहीं है। दूसरी ओर, भाजपा या एनडीए सरकार कांग्रेस पर हमलावर है।
राज्यसभा चुनावों के बाद कांग्रेस का संख्याबल और घट गया है, जिससे कांग्रेस में बेचैनी चरम पर पहुंच गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने पूरे प्रचार अभियान में 'भ्रष्ट' लोगों के खिलाफ कार्रवाई का वादा किया था, चाहे कोई कितना ही बड़ा क्यों न हो। यह वादा अब तक पूरा नहीं हुआ है। नेशनल हेराल्ड की कहानी वित्तीय शब्दजाल और जटिलताओं से भरी है, जिसमें मतदाताओं को यह समझाने की क्षमता है कि कोई बड़ा, भयावह घोटाला हुआ है।
राजनीतिक रूप से प्रधानमंत्री मोदी अपने विरोधियों से निपटने को लेकर सावधानी बरतते रहे हैं। शायद उन्हें पता है कि कैसे इंदिरा गांधी ने अक्तूबर, 1977 से 1979 के बीच शानदार वापसी की थी, जब उनके राजनीतिक विरोधी मोरारजी देसाई और चरण सिंह उन्हें निपटाने की कोशिश कर रहे थे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राहुल अपनी दादी के कौशल को दोहरा सकते हैं। निजी तौर पर ज्यादातर पार्टी नेता मोदी शासन के खिलाफ पलटवार करने की राहुल और कांग्रेस की क्षमता को लेकर आश्वस्त नहीं लगते।
वैसे वर्ष 1938 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्थापित नेशनल हेराल्ड का गलत कारणों से सुर्खियों में रहने का इतिहास रहा है। अपने पूरे इतिहास में नेशनल हेराल्ड एक वित्तीय आपदा बना रहा। आजादी से पहले तीन साल तक अखबार बंद पड़ा था। बहाना ब्रिटिश सेंसरशिप था, लेकिन वास्तविक कारण धन की कमी का बताया जाता है। नेहरू के जीवनीकार बेंजामिन जकारिया के अनुसार, नेहरू ने 1936 में एक अखबार चलाने का फैसला किया था, जब वह खुद कांग्रेस की आंतरिक राजनीति से निराश हो रहे थे और उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक मंच की आवश्यकता थी।
जकारिया लिखते हैं, 'कांग्रेस को नियंत्रित करने वाली प्रतिक्रियावादी प्रवृत्तियों में स्वयं को उलझा पाकर और उसे रोक न पाने की बेबसी में जवाहरलाल ने पत्रकारिता की शरण ली। वर्ष 1936 में उन्होंने अपना खुद का अखबार शुरू करने का विचार किया और 9 सितंबर, 1938 को लखनऊ से नेशनल हेराल्ड का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ।' जकारिया का दावा है कि जिन सिद्धांतों को वह सार्वजनिक जीवन में खुलकर नहीं कह सकते थे, उन्हें अहस्ताक्षरित संपादकीय के जरिये व्यापक पाठकों के सामने पेश किया।
कुछ मौकों पर नेहरू ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने विचार व्यक्त करने के लिए नेशनल हेराल्ड का इस्तेमाल किया। इंदर मल्होत्रा के अनुसार, अप्रैल, 1954 में अमेरिका द्वारा बिकनी द्वीप के परमाणु परीक्षण के बाद जब पत्रकारों ने प्रतिक्रिया चाही, तो नेहरू ने उनसे कुछ नहीं कहा। तब लखनऊ में मौजूद नेहरू सीधे हेराल्ड के दफ्तर गए और एक लेख लिख डाला- डेथ डीलर (मौत के सौदागर)! ईडी की कार्रवाई के बीच कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि राहुल कुछ दिन तो जेल में गुजार सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक वहां रहना या लंबा राजनीतिक अभियान चलाना उनके वश का नहीं है।
कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि नेशनल हेराल्ड-यंग इंडिया ने जो कुछ किया, वह अनावश्यक था, क्योंकि वे जो करना चाहते थे, उसके लिए बेहतर विकल्प देखे जा सकते थे। ऐसा कहा जाता है कि भाजपा के एक वरिष्ठ नेता (जो अब दिवंगत हैं) से एक बार कांग्रेस के तीन समझदार नेता मिले थे, जिन्होंने उनसे गांधी परिवार के खिलाफ अभियान नहीं चलाने के लिए एनडीए के राजनीतिक नेतृत्व को मनाने का अनुरोध किया था।
राजनीतिक नेतृत्व ने इस शर्त पर कुछ इच्छा दिखाई कि नेशनल हेराल्ड/यंग इंडिया द्वारा सूचीबद्ध संपत्तियों को सरकार को वापस कर दिया जाए, तो किसी प्रकार का राजनीतिक समझौता हो सकता था। जब कांग्रेस के उन नेताओं ने पार्टी नेतृत्व के सामने यह मुद्दा रखा, तो उन्होंने कहा कि पार्टी सार्वजनिक रूप से अपनी 'गलती' स्वीकार करने के बजाय जेल जाना पसंद करेगी। इस पृष्ठभूमि के विपरीत एक बड़ा टकराव जारी है और यह मुद्दा 2024 के लोकसभा चुनावों तक सुर्खियों में रह सकता है।
सोर्स: अमर उजाला
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