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जब पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के आए दिन बढ़ते दाम चिंता की वजह हैं, तब भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का सुझाव जरूरत के मुताबिक है। जब-जब ईंधन के भाव में बढ़ोतरी होती है, आम लोगों की तरफ से पेट्रोल, डीजल पर टैक्स घटाने की मांग उठती है। इस बार यही मांग रिजर्व बैंक के गवर्नर ने की है, तो तमाम सरकारों को इस पर गौर करना चाहिए। करीब पांच राज्य सरकारों ने पेट्रोल, डीजल पर टैक्स में कमी की है, लेकिन ज्यादातर सरकारों ने इस जरूरत को महसूस नहीं किया है, जिसकी वजह से कुछ राज्यों में पेट्रोल की कीमत तिहाई के आंकडे़ को छू रही है।
जनता की मांग के अनुरूप अगर हम देखें, तो आदर्श स्थिति यही है कि केंद्र व राज्य सरकारें टैक्स में इतनी कमी करें कि जनता को तत्काल राहत महसूस हो। विशेषज्ञ लगातार यह आशंका जताते रहे हैं कि अगर पेट्रोल, डीजल के भाव को बढ़ने से नहीं रोका गया, तो महंगाई को बढ़ने से रोकना भी मुश्किल होगा।
अभी मौसम और जरूरत के प्रभाव में महंगाई अपेक्षाकृत नियंत्रण में है, पर जब मौसम थोड़ा भी प्रतिकूल हुआ, तो महंगाई छलांग लगाने लगेगी।
अत: ईंधन के दाम घटाने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को मिलकर कदम उठाने चाहिए। लोगों में यह धारणा फैलती जा रही है कि सरकार को ईंधन की बढ़ती कीमतों की परवाह नहीं है। लोगों पर जो आर्थिक दबाव पड़ रहा है, उसकी चिंता सरकार को होनी चाहिए। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उम्मीद जताई है कि सर्दियां खत्म होने पर तेल के दामों में नरमी आएगी। हालांकि, ऐसा आश्वस्त होकर नहीं कहा जा सकता।
पेट्रोलियम मूल्यों को अंतरराष्ट्रीय बाजार ने प्रभावित किया है, लेकिन ज्यादा चिंता और नाराजगी आए दिन होने वाली बढ़ोतरी को लेकर है। ध्यान रहे, कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है, जितनी तेजी से पेट्रोल, डीजल की खुदरा कीमतें। संभव है, सर्दियां जाते ही कीमतों में थोड़ी कमी आ जाए, पर थोड़ी कमी से इनकी कीमतें हमारे पड़ोसी देशों में चल रही कीमतों के बराबर नहीं आ जाएंगी। लोगों को पर्याप्त राहत देने के लिए टैक्स में कमी करना सबसे सही रास्ता है।
सरकार को यह तय करना होगा कि भारत में पेट्रोलियम पदार्थों की वाजिब कीमत क्या होनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि पड़ोसी देशों से तस्करी बढ़ जाए और देश को नुकसान हो। पेट्रोल, डीजल सरकारों के लिए कमाई के अच्छे साधन हैं, लेकिन न्यायपूर्ण अर्थव्यवस्था वही है, जो गरीबों की ज्यादा चिंता करती हो। फरवरी में तीसरी बार घरेलू रसोई गैस सिलेंडर को महंगा किया गया है, दिल्ली में 14.2 किलोग्राम एलपीजी सिलेंडर की कीमत बढ़कर 794 रुपये हो गई है। गरीबों की रसोई पर जितना असर पड़ा होगा, लोगों की नाराजगी भी उतनी ही बढ़ी होगी।
ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी सरकार की जेब के लिए भले ही अच्छी हो, लेकिन देश के लिए कितनी सही है, यह सोच लेना चाहिए। राजस्व के दूसरे साधन व माध्यम भी हो सकते हैं, उन्हें भी खंगालना चाहिए। ईंधन की कीमत बढ़ने से अगर समग्रता में महंगाई बढ़ने लगी, तो फिर पूरी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा, जिससे अंतत: देश और सरकार को ही नुकसान होगा। ऐसे किसी भी भावी व परोक्ष नुकसान से बचने के लिए हमारी सरकारों को पहल करनी चाहिए। देश के आम लोगों को राहत का इंतजार है।