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आदित्य चोपड़ा | देश में खाद्य तेलों के बढ़ते भावों से केन्द्र सरकार को अब चिन्ता होने लगी है क्योंकि सरसों के तेल से लेकर सोयाबीन, पाम आयल या मूंगफली आदि के तेलों के भाव पिछले साल के भावों के मुकाबले औसतन ड्योढे हो गये हैं। यहां तक कि सरसों का तेल जो कि सबसे सस्ता और गरीब आदमी की खुराक में शामिल होता है उसके दाम भी 40 प्रतिशत बढ़ गये हैं। इस सप्ताह के शुरू में ही केन्द्रीय खाद्य व संभरण मन्त्रालय के उच्चाधिकारियों ने बैठक करके इस पर बेहद चिन्ता व्यक्त की। बैठक में खाद्य तेल कारोबार से जुड़े उद्योग जगत के लोगों व कारोबारियों तथा आयातकों का भी प्रतिनिधित्व था। इसमें सरकार की तरफ से अपील की गई कि खाद्य तेलों के दामों को काबू में करने के लिए सभी आवश्यक कार्रवाई सभी मोर्चों पर की जानी चाहिए। घरेलू बाजार में इस बार तिलहन के दामों में भी जबर्दस्त उछाल आया है और सरसों का भाव छह सौ लेकर आठ सौ रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। सबसे दुखद यह है कि खाद्य तेलों के भावों में यह उछाल कोरोना काल व लाॅकडाउन के दौरान ही आया है। भारत में खाद्य तेलों का भाव कमोबेश इनके अन्तर्राष्ट्रीय भावों पर निर्भर करता है क्योंकि भारत खाद्य तेल की कमी को पूरा करने के लिए इनका भारी मिकदार में आयात करता है। देश में खाद्य तेलों की मांग के मुकाबले घरेलू उत्पादन केवल 40 प्रतिशत ही हो पाता है जबकि 60 प्रतिशत की आपूर्ति आयात करके की जाती है। बेशक अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में इन तेलों की कीमतें बढ़ी हैं मगर भारत में जिस तरह खुदरा कारोबार में इनके दाम बढे़ हैं वे आनुपातिक नहीं हैं। पूरी दुनिया में मलेशिया पाम आयाल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसकी 'बुरसा तेल मंडी' में विगत वर्ष मई के महीने में कच्चे पाम आयल का भाव 2281 रिंगित (मलेशिया की मुद्रा) प्रति टन था जो विगत 25 मई को बढ़ कर 3890 रिंिगत प्रति टन हो गया। भारत में यह तेल एक लिटर की पैकिंग में अब 131.69 रुपए का बिक रहा है जबकि विगत वर्ष मई महीने में इसके दाम 88.27 रुपए थे। यदि दस साल पहले का हिसाब लिया जाये तो यह 50 रुपए किलो से भी कम था। भारत के अधिसंख्य गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों की पसन्द सरसों के तेल का भाव अब 164.44 रुपए प्रति किलो है जबकि विगत वर्ष मई के महीने में इसके भाव 118.25 रुपए थे। दस साल पहले इसका भाव 60 रुपए था। हालांकि दस साल पुराने भावों से आज के भावों की तुलना करने का कोई तुक नहीं है मगर पिछले साल के भावों से तुलना को तार्किक तो कहा ही जा सकता है।