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भारत में महंगाई की कहानी यूके (UK) या यहां तक कि अमेरिका में महंगाई की कहानी से बहुत अलग है
करन भसीन |
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती की घोषणा की. इसके अलावा कई तरह के आयात शुल्कों में कटौती की गई और घरेलू अर्थव्यवस्था पर ग्लोबल कमोडिटी की कीमतों के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए कई तरह के निर्यात शुल्क बढ़ाए गए. उत्पाद शुल्क (Excise duty) में 8 रुपये प्रति लीटर और डीजल में 6 रुपये प्रति लीटर की कटौती से पेट्रोल की कीमतों में 9.5 रुपये और डीजल की कीमतों में 7 रुपये प्रति लीटर की कमी आएगी. इससे सरकारी खजाने पर 1 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ने का अनुमान है जो ग्रोथ आउटलुक को देखते हुए उचित लगता है.
हालांकि, भारत में महंगाई की कहानी यूके (UK) या यहां तक कि अमेरिका में महंगाई की कहानी से बहुत अलग है. इन दोनों देशों और वास्तव में अधिकांश उन्नत अर्थव्यवस्थाओं ने अपनी सरकारों के द्वारा किए गए मजबूत राजकोषीय उपायों के कारण बहुत तेजी से आर्थिक सुधार हुए हैं. नतीजतन, यहां तक कि सप्लाई चेन पर जोर देने के बावजूद, उन्होंने अपने उत्पादन में आई कमी को बहुत हद तक संभाल लिया है और भारत में महंगाई का प्रभाव काफी हद तक उपभोक्ता डिमांड पर निर्भर करता है. ऐसे संकेत हैं कि इन देशों में उपभोक्ता डिमांड अब कमजोर पड़ने लगा है और हाल ही में महंगाई दर बढ़ने से यह और कम होगा.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सिलिकॉन वैली से एक कहानी सामने आ रही है जिसमें कई स्टार्ट-अप्स ने छंटनी की योजना बनाई है और अधिक मुनाफा पाने के प्रयास में नई भर्ती पर पाबंदी लगा रखी है. यही ट्रेंड भारत में भी दिखाई दे रहा है और कई एड-टेक कंपनियां पहले ही फर्स्ट राउंड की छंटनी कर चुकी हैं. यह चलन केवल एड-टेक तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि आने वाले महीनों में फिन-टेक क्षेत्र सहित कई क्षेत्रों में ऐसा होने वाला है. वाकई, कर्ज लेकर मौज करने का दौर खत्म हो गया है और इसके कई दिलचस्प मायने सामने आएंगे.
हालांकि, जिस तरह कई कंपनियां डॉट कॉम बबल से बचने में कामयाब रहीं, इनोवेशन (innovation) और अपने बिजनेस मॉडल में लगातार बदलाव के कारण भारत में कई स्टार्ट-अप ग्रोथ की राह पर होंगे. बहरहाल, अगले 18 महीनों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे और हमारे शहरों में टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं या यहां तक कि आवास की मांग पर इसका क्या प्रभाव होगा, इस बारे में कुछ भी निश्चित पर नहीं कहा जा सकता है.
अगर कोई अगले कुछ महीनों की उपेक्षा भी करता है, तो यह साफ तौर पर दिखाई देता है कि भारत की वर्तमान महंगाई संबंधी समस्याओं में से ज्यादातर सप्लाई में उतार-चढ़ाव से संबंधित हैं और इसकी वजह है यूक्रेन में युद्ध. चीन के लॉकडाउन से कुछ राहत मिल सकती है क्योंकि इससे कमोडिटी डिमांड कमजोर पड़ी है और इससे कुछ हद तक कमोडिटी की कीमतों को नियंत्रण में रखने में मदद मिली है. यूक्रेन में युद्ध की अवधि और चीन में लॉकडाउन आने वाले महीनों में ग्लोबल और काफी हद तक भारत में महंगाई दर को निर्धारित करेंगे.
लेकिन इन बाहरी कारकों से निपटने के लिए हमारे पालिसी मेकर्स के पास घरेलू करों में बदलाव का उपाय था. महीने-दर-महीने के आधार पर अप्रैल में जारी आंकड़ों से पता चलता है कि एकमुश्त मूल्य समायोजन (price adjustment) के बाद भी महंगाई उच्चतम स्तर पर जा पहुंचा है. इसलिए इसके लिए कुछ नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता थी, और जिसके परिणामस्वरूप कर में कटौती कर दी गई. फल, फ्यूअल और लाइट सेक्टर के अलावा परिवहन और संचार ऐसे क्षेत्र हैं जिसने महीने-दर-महीने महंगाई बढ़ाने में सबसे अधिक योगदान दिया. ईंधन कर में कटौती से परिवहन और संचार दोनों क्षेत्रों को मदद मिलेगी.
इसके बाद ऑयल (oils) और फैट (fats) का नंबर आता है, लेकिन दुर्भाग्य से उस मोर्चे पर डोमेस्टिक पॉलिसी के माध्यम से बहुत कुछ नहीं किया जा सकता है. कुछ हद तक, कटौती आगे चलकर कीमतों में भारी वृद्धि को रोकने में मदद करेगी और यह शायद अगली दो तिमाहियों में अधिक दिखाई देगी. लेकिन अधिक महत्वपूर्ण हिस्सा मैक्रोइकॉनॉमिक (macroeconomic) से संबंधित है क्योंकि टैक्स रेट में कमी का मतलब या तो इस वित्तीय वर्ष में अतिरिक्त बोझ या खर्च में कटौती है. दोनों में से बाद वाला अधिक अनुकूल हो सकता है, भले ही कुछ हद तक इसका असर विकास परिणामों पर हो. इसके लिए तर्क दिया जा रहा है कि राजकोषीय स्थिति पर प्रतिकूल असर को कम करने के लिए सरकार को प्राइवेट सेक्टर से ज्यादा उधारी लेनी होगी. यह ऐसे समय में है जब कई एमएसएमई (MSMEs) को अपनी बैलेंस शीट को दुरुस्त करना बाकी है और ग्लोबल डेवलपमेंट अस्थिरता आने की उम्मीद है,जो वांछनीय नहीं है.
टैक्स में कटौती करना जरुरी था और वित्त मंत्रालय ने इसकी घोषणा करके सही काम किया. हालांकि, इस पर कमेंट्री करने वालों और एक्सपर्ट्स को मौजूदा चुनौतीपूर्ण व्यापक आर्थिक माहौल से अवगत होना चाहिए. बाहरी कारकों की अनदेखी करते हुए विकास और महंगाई पर टिप्पणी नहीं की जा सकती है. जहां तक बाहरी कारकों का संबंध है, मेरा अब भी मानना है कि वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में मुद्रास्फीति में नरमी आएगी और यह वृद्धि हममें से कई लोगों को चौंका देगी. चालू वित्त वर्ष में बेहतर ग्लोबल डेवलपमेंट सुनिश्चित करने के लिए भारत को भारी भार उठाना पड़ सकता है, और कौन जानता है भारत उल्टा सबको चौंका सकता है.
Rani Sahu
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