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- ऋषि सुनक की ताजपोशी
Written by जनसत्ता; सुनक की जड़ें अविभाजित भारत से जुड़ी हैं। वे धर्मनिष्ठ हिंदू हैं। इस तरह औपनिवेशिक सत्ता के बरक्स एक भारतीय मूल के व्यक्ति का ब्रिटिश हुकूमत के शीर्ष पर पहुंचना समय के पलटने के रूप में भी देखा जा रहा है। अमेरिका में कमला हैरिस उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचीं तब भी ऐसा ही गर्व अनुभव किया गया।
सुनक से भारत की उम्मीदें सहज ही जुड़ी हुई हैं। मगर ब्रिटेन की सुनक से उम्मीदें दूसरी हैं। वहां के सांसदों ने उनमें एक ऐसे दक्ष प्रशासक के गुण देखे हैं, जो एकता और स्थायित्व की दिशा में कारगर साबित हो सकता है। लिज ट्रस पैंतालीस दिनों में ही वहां की चरमरा चुकी अर्थव्यवस्था को संभालने से हार मान बैठीं। दरअसल, इस वक्त ब्रिटेन अर्थव्यवस्था के मामले में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। महंगाई वहां चरम पर पहुंच चुकी है और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से ऊर्जा मामलों में उसे अपनी जरूरतें पूरी करना मुश्किल साबित हो रहा है। बिजली के दाम आम लोगों की क्षमता से बाहर निकल चुके हैं।
ऐसी स्थिति में ब्रिटिश सरकार के पास दो ही आसान रास्ते हैं कि वह करों में बढ़ोतरी और खर्चों में कटौती करे। मगर ये दोनों कदम जोखिम भरे हैं। सुनक वित्तमंत्री रह चुके हैं और उनके पास अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के कुछ नुस्खे हैं, जिन पर वहां के लोगों को भरोसा है। हालांकि किसी भी नए शासक के पास कोई जादू की छड़ी नहीं होती, जिसे घुमा कर एकदम से खराब अर्थव्यवस्था को सुधार दे।
बेशक सुनक के पास कुछ बेहतर उपाय हो सकते हैं, मगर उनके लिए ब्रिटेन को वर्तमान स्थितियों से बाहर निकालना आसान काम नहीं होगा। फिर देश की स्थिति संभालने के साथ-साथ उन पर पार्टी की छवि सुधारने का दारोमदार भी है। अगर उनकी सरकार खर्चों में कटौती का फैसला करती है, तो आम लोगों में विद्रोह फूट सकता है।
अभी स्थिति यह है कि लोगों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं, बड़ी संख्या में छोटे कारोबार बंद हो गए और होते जा रहे हैं, पौंड की कीमत चिंताजनक स्तर पर गिर चुकी है, वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगी हैं, लोगों को चिंता है कि सर्दी में घर गरम करने के लिए वे बिजली का खर्च कैसे जुटाएंगे। मगर व्यापारिक संबंधों को बेहतर बना कर वे इस दलदल से शायद जल्दी बाहर निकल सकें।
पिछले कुछ सालों में भारत और भारतीय मूल के लोगों के प्रति वहां के नागरिकों में कुछ नकारात्मक भावनाएं भरनी शुरू हो गई थीं, जिन्हें सुनक दूर करने में कारगर साबित होंगे। अभी लेस्टर में हुए सांप्रदायिक दंगों से भी वहां के उदारवादी लोकतांत्रिक ताने-बाने को चोट पहुंची है। सुनक ने स्पष्ट कर दिया है कि वे भारत के साथ व्यापारिक समझौतों को पूरी मजबूती के साथ लागू रखेंगे और कारोबारी गतिविधियों को बढ़ावा देंगे।
सुनक युवा हैं और पूरी ऊर्जा से भरे हुए हैं। इस तरह उनसे बेहतर प्रबंधन की उम्मीदें अधिक हैं। वित्तमंत्री रहते हुए उन्होंने अर्थव्यवस्था के लिए जिन बदलावों की सलाह दी थी, उन्हें नहीं माना गया और वही हुआ, जिसकी आशंका उन्होंने जताई थी। अब उन्हें उन सुझावों पर अमल का मौका है। निस्संदेह उनमें ब्रिटेन को आर्थिक दलदल से बाहर निकालने और उसे सामाजिक रूप से बिखने से रोकने का माद्दा नजर आता है।