सम्पादकीय

कच्चे तेल के भावों में उफान

Subhi
26 Feb 2022 3:42 AM GMT
कच्चे तेल के भावों में उफान
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रूस व यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में जिस तरह कच्चे पेट्रोलियम तेल के भाव 100 डालर प्रति बैरल से ऊपर जा रहे हैं उससे वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती।

आदित्य नारायण चोपड़ा: रूस व यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में जिस तरह कच्चे पेट्रोलियम तेल के भाव 100 डालर प्रति बैरल से ऊपर जा रहे हैं उससे वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती। भारत के सन्दर्भ में यह कच्चे तेल की कीमतों में यह उफान बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध महंगाई से है। साथ ही रूस व यूक्रेन के बीच के युद्ध का सम्बन्ध भारत के आयात व निर्यात कारोबार से जुड़ा हुआ है। कच्चे तेल की कीमतों में हो रहे इजाफे का सम्बन्ध भारत की मुद्रा रुपये के डालर के मुकाबले दाम से भी है क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है। तेल की बढ़ती कीमतों का ताप सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कम्पनियां पहले से ही झेल रही हैं परन्तु पांच राज्यों में चुनाव की वजह से इन्होंने घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल के दामों का समायोजन नहीं किया है।यदि चुनाव समाप्त होने पर पेट्रोल-डीजल के घरेलू बाजार में दाम बढ़ाये जाते हैं तो इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ेगा जो पहले से ही खतरे के दायरे में घूम रही है जिसे नियन्त्रित करने के लिए रिजर्व बैंक समेत अन्य वित्तीय संस्थानों को कारगर कदम उठाने होंगे। महंगाई रोकने के लिए केन्द्र सरकार को पेट्रोल व डीजल की उत्पाद शुल्क की दरों को घटाना पड़ सकता है जिससे बाजार में इनके दाम स्थिर बने रहें। इसकी एक वजह यह भी है कि भारत की अर्थव्यवस्था में कोरोना संक्रमण दौर के बाद उठान का जो दौर शुरू हुआ है वह फिलहाल प्रारम्भिक चरण में ही है और इसमें और उठान आने पर पेट्रोलियम पदार्थों की मांग बढ़ सकती है जिसकी वजह से महंगाई को काबू में रखने की वजह से इनकी कीमतों को थामें रखना होगा। इसे देखते हुए डालर की रुपये के मुकाबले में विनिमय दर को भी नियन्त्रण में रखना होगा जो वर्तमान में 75 रुपए प्रति डालर तक पहुंच गई है। दूसरी तरफ यूक्रेन में चल रहे युद्ध का सीधा असर भारत के उससे होने वाले आयात पर पड़ेगा। यूक्रेन से भारत अपनी कुल जरूरत का 90 प्रतिशत सूरजमुखी का खाद्य तेल आयात करता है। भारत में खाद्य तेलों की कमी को देखते हुए यूक्रेन की ताजा घटना बहुत मायने रखती है। साथ ही भारत यूक्रेन से यूरिया उर्वरक का आयात भी करता है। जहां तक रूस का सम्बन्ध है तो भारत व रूस के बीच के व्यापारिक व वाणिज्यिक सम्बन्धों पर फिलहाल किसी प्रकार का खतरा नहीं है क्योंकि दोनों देशों के बीच माल की आवा-जाही निर्बाध जारी है परन्तु इस सन्दर्भ में देखना केवल यह होगा कि यूरोपीय संघ व अमेरिका रूस पर किस प्रकार के आर्थिक प्रतिबन्ध लगाते हैं। यूक्रेन व रूस दोनों को ही भारत बड़ी मिकदार में मोबाइल फोन व औषधियों का निर्यात करता है। यदि रूस व यूक्रेन के बीच जल्दी ही युद्ध विराम अथवा समझौते की बातचीत शुरू नहीं होती है तो आपसी व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से नहीं रुक सकता। परन्तु भारत के लिए सबसे बड़ी चिन्ता पेट्रोलियम कच्चे तेल के भावों को लेकर बढ़ रही है जिसकी वजह से अन्तर्राष्ट्रीय व घरेलू शेयर बाजार ठंडा पड़ रहा है। संपादकीय :पुतिन का अमेरिकी दादागिरी को जवाबगहलोत की सौगातेंतीसरे विश्व युद्ध की आहटपुतिन की चाल से भूचालचरणबद्ध बदलते चुनावी मुद्देजुगलबंदी प्रोग्राम से रिश्तों में मजबूतीभारत का अभी तक का सबसे बड़ा 50 हजार करोड़ रुपए मूल्य का भारतीय जीवन बीमा निगम का पब्लिक इशू पूंजी बाजार में प्रवेश कर चुका है और शेयर बाजार उल्टी रफ्तार पकड़ रहा है जिसकी वजह से इस पब्लिक इशू की चमक कम हो सकती है। भारत सरकार बीमा निगम के मात्र 5 प्रतिशत शेयर ही आम जनता को बेच रही है। इससे भारत सरकार का बजट प्रभावित हो सकता है। अतः भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए ऐसे वैकल्पिक उपाय ढूंढने पड़ सकते हैं जिससे अर्थव्यवस्था की गति बनी रहे। पेट्रोलियम पदार्थों के क्षेत्र में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होगी। रूस भारत को जो वस्तुएं निर्यात करता है उनमें कच्चा तेल भी शामिल है। इसके दाम बढ़ने से भारत का बजटीय आवंटन प्रभावित हो सकता है क्योंकि भारत के कुल आयात बिल में पेट्रोलियम पदार्थों का हिस्सा 25 प्रतिशत है। दूसरी तरफ जिस तरफ शेयर बाजार में पिछले एक महीने से विदेशी निवेशक लगातार बिकवाल बने हुए हैं उससे सरकार के विनिवेश के फैसले प्रभावित हो सकते हैं।

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