सम्पादकीय

RIP इब्राहिम अश्‍क: कोरोना से जंग हार गया 'कहो ना प्यार है...' लिखने वाला शायर

Gulabi
17 Jan 2022 3:43 PM GMT
RIP इब्राहिम अश्‍क: कोरोना से जंग हार गया कहो ना प्यार है... लिखने वाला शायर
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कोरोना ने हमारे कई अपनों को हमसे छीना है
कोरोना ने हमारे कई अपनों को हमसे छीना है. हमारे कई अजीज इस महामारी में हमेशा के लिए बिछड़ गए हैं. अब इस सूची में एक नाम और जुड़ गया है. मध्‍यप्रदेश में जन्‍मे और फिल्‍मी दुनिया में अलहदा शायरी से अपना सिक्‍का जमाने वाले ख्‍यात शायर इब्राहिम अश्‍क का निधन हो गया. वे कोरोना से पीडि़त थे और मुंबई में इलाज के दौरान अंतिम सांस ली. उनका जाना समकालीन ग़ज़ल को मालामल कर रहे एक नर्म मिजाज शायर का चला जाना है. वे हमेशा अपने प्रशंसकों से अपने कलाम के जरिए मिले हैं और आज जब वे नहीं हैं तो उनकी कमी का अहसास बताने के लिए हमें उनका ही लिखा याद आता है:
तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमां होंगे
हम ऐसे लोग ज़माने में फिर कहां होंगे.
चले गए तो पुकारेगी हर सदा हम को
न जाने कितनी ज़बानों से हम बयां होंगे.
पत्रकार, शायर, रंगकर्मी और फिल्‍म गीतकार. इब्राहिम अश्क के इतने परिचय हैं और हर परिचय कमाल का है. मध्य प्रदेश के मंदसौर में 20 जुलाई 1951 में उनका जन्‍म हुआ. प्रारंभिक शिक्षा बडनगर में हुई. बाद में, इंदौर से उच्‍च अध्‍ययन किया और वहीं पत्रकारिता में करियर शुरू किया. डेढ़ दशक लंबी पत्रकारिता के दौरान उन्‍होंने मशहूर पत्रिका सरिता, शमा सुषमा, इंदौर समाचार आदि के लिए काम किया. उस दौर के आम आदमी के संघर्ष की तरह करियर के लिए इब्राहिम अश्‍क के संघर्ष की अपनी ही एक कहानी है. मगर, जीवन के इस संघर्ष से अलग वे बतौर शायर अपनी खास पहचान बना रहे थे. ग़ज़लों का आरंभ अरबी साहित्य की काव्य विधा के रूप में हुआ.
स्‍त्री के सौंदर्य पर लिखी जाने वाली ग़ज़ल जब अरबी भाषा से उर्दू तक पहुंची, तो उसका चेहरा वही रहा मगर आत्‍मा बदल गई. अमीर ख़ुसरो ने जिस ग़ज़ल विधा को मकबूल किया था, उसे बाद के शायरों ने हिन्‍दुस्‍तानी प्रतीकों, बिंबों और अपने आसपास के अनुभवों से समृद्ध किया. इब्राहिम अश्‍क भी ऐसे ही शायर थे. जिन्‍होंने इश्‍क और दिल के अहसास को बयान करती ग़ज़लें लिखीं तो ईश्‍वर की सत्‍ता के आगे झुकते हुए हम्‍द भी लिखीं. डेढ़ दर्जन से ज्‍यादा प्रकाशित किताबों के खजाने में दोहें भी हैं और रूबाइयां भी. उनकी प्रकाशित किताबों में `इलहाम', `आगही', `कर्बला', `अलाव', `अन्दाज़े बयां और तकीदी शऊर', `रामजी का दुख', `बिजूका', `नया मंजरनामा', `आसमां अकेला', `मुहाफिजे मिल्लत', `अल्लामा इकबाल', `आसमाने-गजल', `सरमाया', `मुंबईनामा', `अलमास' प्रमुख हैं.
वे ऐसे शायर थे जो अपने बारे में कम बोलते थे मगर उनकी रचनाएं पाठकों और श्रोताओं के सिर चढ़ कर बोलती थी. एक मुलाकात में उन्‍होंने बहुत सहजता से इसबात को स्‍वीकार किया था कि आयोजनों में कई लोग उनसे वाकिफ नहीं होते हैं लेकिन रचना पाठ के बाद उनसे बात करने वालों की भीड़ लग जाती थी. लोग उन्‍हें नाम से खोजते हुए आते थे. यह उनकी रचनाओं का जादू था. उन्‍हें सार्वजनिक रूप से केवल रचनाएं सुनाते और उन पर बात करते हुए ही सुना गया है. उनका लेखन संसार इतना समृद्ध है कि जब कोई उन पर शोध शुरू करता तो उसकी पीएचडी पूरी होने तक लाइब्रेरी में इब्राहिम अश्‍क की किताबों और रचनाओं की संख्या बढ़ जाती. वे अदब के ऐसे पूत थे जिसकी सृजनात्‍मक उपस्थिति ने साहित्‍य को ऐसे ही समृद्ध किया है जैसा उन्‍होंने अपने एक दोहे में लिखा है:
निर्धन का धन एक ही, गुण वाला हो पूत.
अपनी सारी नस्‍ल वो, कर देगा मजबूत..
इब्राहीम 'अश्क' उन शायरों में शुमार किए जाते हैं जो अपने लिखे के कारण फिल्‍मी दुनिया में भी समान रूप से ख्‍यात हुए हैं. फिल्‍म गीतकार के रूप में इब्राहिम अश्क को पहली बार रितिक रोशन की पहली फिल्म `कहो न प्यार है के' गाने के कारण प्रसिद्धि मिली थी. "क्यों चलती है पवन, क्यों झूमे हैं गगन, क्यों मचलता है मन, न तुम जानो न हम" से पूरी दुनिया ने उन्‍हें बतौर फिल्‍म गीतकार जाना. इस फिल्‍म में गीत शामिल होने की भी कथा दिलचस्‍प है. यह कथा खुद इब्राहिम अश्‍क ने एक इंटरव्‍यू में बताई थी. उन्‍होंने बताया कि इस फिल्‍म के लिए पहले सावन कुमार टाक गाने लिख रहे थे. उनके कुछ गीतों से डिस्ट्रीब्यूटर संतुष्ट नहीं थे. तब निर्माता राकेश रोशन ने इब्राहिम इश्‍क से गाने लिखने को कहा. उन्‍होंने टाइटल सांग सहित अन्‍य गीत लिखे और क्‍या कमाल लिखा इसका गवाह फिल्‍म के गीतों को मिली ख्‍याति है.
इसके बाद इब्राहिम अश्क ने इसके बाद भी बहुत से गीत लिखे. राकेश रोशन ने 'कहो न प्यार है' के बाद उनसे 'कोई मिल गया' और 'कृष' फिल्म के गाने भी लिखवाए. 'दस कहानियां', 'वेलकम', 'आप मुझे अच्छे लगने लगे', 'कोई मेरे दिल से पूछे', 'ये तेरा घर ये मेरा घर', 'बहार आने तक', 'जीना मरना तेरे संग', 'दो पल', 'इन कस्टडी', 'तृष्णा', 'समझौता एक्सप्रेस' फिल्मों के गाने भी उन्होंने लिखे हैं. सुभाष घई की फिल्म 'ब्लैक एंड व्हाइट' में लिखे गए सूफियाना अंदाज के गानों से इब्राहिम अश्‍क को अलग ऊंचाई मिली. तमाम प्रायवेट अल्‍बम भी हैं जो हमें इब्राहिम अश्‍क से रचना संसार की ऊंचाई बताते हैं.
इब्राहिम अश्क के लिए शायरी हमेशा ऐसा इल्‍म रही जिसे खुदा अपने खास बंदों को ही अता करता है. यही कारण है कि ताउम्र शायरी के प्रति खासतौर पर ईमानदार रहे. कहा जा सकता है कि वे शायरी करते वक्‍त सजदे में रहने जितना पाक रहते थे. फिल्‍मों के लिए भी उन्‍होंने कभी फिल्‍मी हो कर नहीं लिखा बल्कि जमीन से जुड़े रह कर लिखा. और इस तरह उनके होने से पूरा साहित्‍य जगत खूब आबाद हुआ. उनके बारे में कहने के लिए कई पहलू हैं मगर उनकी रचनाओं को पढ़ा कर आप भी जानिए कि कौन शख्‍स हमारे बीच से चला गया है.
कभी ये दिल जो घबराया बहुत है
तो हमने इसको समझाया बहुत है.
न जाने कौन-सा जादू है तुझ में
तेरा अंदाज़ मनभाया बहुत है.
बहुत कमज़ोर है ये दिल हमारा
मगर दुनिया से टकराया बहुत है.
बचा लेगा तुझे हर इक बला सेकि सर पे माँ का इस साया बहुत है.
न आया कोई सीधे रास्ते पर
पयम्बर ने तो फ़रमाया बहुत है.
बहुत रोका मगर ये दिल न माना
तेरी बातों ने ललचाया बहुत है.
वही है संत, वही क़लंदर, वही पयंबर है
जहाँ में जो भी मुहब्बत को आम करता है.
किससे हम यारी करें किससे निभाएँ दोस्ती
सैकड़ों में एक दो भी ख़ुश-नवा मिलते नहीं.
उस शख्श के चेहरे में कई रंग छुपा था
चुप था तो कोई और था बोला तो कोई और.
दो-चार क़दम पर हीं बदलते हुए देखा
ठहरा तो कोई और था गुज़रा तो कोई और.
तुम जान के भी उस को न पहचान सकोगे
अनजाने में वो और है जाना तो कोई और.
उलझन में हूं खो दूँ के उसे पा लूँ करूँ क्या
खोने पे कुछ और है पाया तो कोई और.
निया बहुत क़रीब से उठ कर चली गई
बैठा मैं अपने घर में अकेला ही रह गया.
करे सलाम उसे तो कोई जवाब न दे
इलाही इतना भी उस शख्स को हिज़ाब न दे.
तमाम शहर के चेहरों को पढ़ने निकला हूं
ऐ मेरे दोस्त मेरे हाथ में क़िताब न दे.
गज़ल के नाम को बदनाम कर दिया उसने
कुछ और दे मेरे साक़ी मुझे शराब न दे.
वो न मिल पाए अगर मुझको इस ज़माने में
तो ऐसी हूर का दुनिया में कोई ख़्वाब न दे.
ये मेरे फन की तलब है कि दिल की बात कहूं
वो 'अश्क' दे के ज़माने को को इंकिलाब न दे.
आँखों से न आँसू पोंछ सके, होंठों पे ख़ुशी देखी न गई
आबाद जो देखा घर मेरा, तो आग लगाई लोगों ने.
चंदा में भी नूर है, सूरज में भी नूर.
सब में जिसका नूर है वह कितना भरपूर..
एक कतरा ए दरिया है तो दरिया हो जा
एक जर्रा ए सहरा है तो सहरा हो जा
इस तरह गुजर अश्क हदों से अपनी
एक शख्श अगर तू है तो दुनिया हो जा.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
पंकज शुक्‍ला पत्रकार, लेखक
(दो दशक से ज्यादा समय से मीडिया में सक्रिय हैं. समसामयिक विषयों, विशेषकर स्वास्थ्य, कला आदि विषयों पर लगातार लिखते रहे हैं.)
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