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- निजता के अधिकार की...
नई पीढ़ी को लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के तौर अखबार और न्यूज चैनल किस और दुनिया के लगते हैं। ऐसी स्थिति इसलिए पैदा हुई क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी के जबदस्त विस्फोट ने चौथे स्तम्भ के दायरे से बाहर के स्रोतों से समाचार और सूचना जाने के रास्ते खेल दिए हैं। नई पीढ़ी की हथेली में दुनिया है। बौद्धकिता कहीं हाशिये पर धकेल दी गई है। कोई सोच विचार नहीं, केवल सूचना और उसके बाद में उथली प्रतिक्रियाएं। सूचना प्रौद्योगिकी के वैश्विक खिलाड़ियों ने क्या जबरदस्त खेल खेला है। फेसबुक, व्हाट्सएप इंस्ट्राग्राम जैसी सेवाओं की एवज में उपभोक्ताओं से कोई शुल्क नहीं लिया जाता। इस उक्ति का महत्व काफी बढ़ गया है कि यदि आप उत्पाद के लिए भुगतान नहीं करेंगे तो आप खुद उत्पाद बन जाएंगे। सोशल साइट्स चलाने वाली कम्पनियों ने वास्तव में भारतीयों को उत्पाद बना डाला। भारतीयों के व्यवहार के रुझानों के आधार पर विज्ञापन कारोबार को बढ़ावा दिया गया।
उन्होंने नई प्राइवेसी पालिसी यानी निजात नीति तैयार कर ली, जहां उपभोक्ता से कहा गया कि या तो निजता नीत स्वीकार करे या फिर उसकी सेवा से वंचित रहे। शुरूआत में उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ाने के लिए ये सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं और जब लाखों की संख्या में उपभोक्ताओं ने इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया तो एक तरफा निजता नीति ले आए। हाल ही में व्हाट्सएप ने अपनी निजता नीति में बदलाव करते हुए फरमान सुनाया था कि वह उपभोक्ता से संबंधित सूचनाएं अपने समूह की दूसरी कम्पनियों के साथ साझा करेगा, जिसे उपभोक्ताओं को मंजूरी देनी होगी वरना उन्हें व्हाट्सएप की सेवा से वंचित कर दिया जाएगा। लेकिन भारतीय उपभोक्ताओं के तीखे विरोध के बाद व्हाट्सएप ने इस नीति पर अमल फरवरी 2021 से मई 2021 तक टाल दिया।