सम्पादकीय

मंदिर आय का सही निवेश

Rani Sahu
3 Jun 2022 10:09 AM GMT
मंदिर आय का सही निवेश
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राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में मंदिरों की आय के सदुपयोग को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार के सुझाव प्रशंसनीय हो सकते हैं

राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में मंदिरों की आय के सदुपयोग को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार के सुझाव प्रशंसनीय हो सकते हैं, लेकिन हिमाचल के संबंध में मंदिरों के प्रबंधन पर कहीं अधिक तवज्जो देने की जरूरत है। मंदिरों की आय पर पहला हक श्रद्धालुओं की सुविधाएं बढ़ाने से उस श्रद्धा के नाम होगा, जिसके चलते अस्सी फीसदी पर्यटक हिमाचल आते हैं। विडंबना यह है कि धार्मिक पर्यटन को केवल मंदिर व्यवस्था मान लिया गया है या इसकी क्षमता का सही मूल्यांकन ही नहीं हुआ। शांता कुमार मंदिरों की आय को तीन लाख करोड़ मानते हैं, तो इसमें हिमाचल के सौ-डेढ़ सौ करोड़ तो दिखाई भी नहीं देते या हमने इस क्षमता को केवल एक सीमित गतिविधि के तौर पर ही देखा है। हिमाचल अगर तय कर ले कि मंदिर आय अगले कुछ सालों में दो हजार करोड़ तक पहुंचानी है, तो प्रमुख धार्मिक स्थलों को आर्थिक केंद्रों के रूप में विकसित करना होगा। यह वर्तमान ढर्रे में असंभव इसलिए है, क्योंकि हर मंदिर अपने-अपने ट्रस्ट के मार्फत केवल क्षेत्रीय राजनीतिक वर्चस्व में फंसा है। इस तरह आय-व्यय का हिसाब अनावश्यक कर्मचारियों की अप्रत्यक्ष नियुक्तियों तक सिमट गया है।

दियोट सिद्ध मंदिर की आय का सबसे बड़ा हिस्सा केवल कर्मचारियों की पगार को ही पुरस्कृत कर रहा है। ऐसे में सरकार के अधीन चल रहे समस्त मंदिरों के लिए एक केंद्रीय ट्रस्ट, मंदिर विकास बोर्ड या प्राधिकरण के गठन की जरूरत है ताकि पारदर्शिता के साथ इनका संचालन हो सके। मंदिर व्यवस्था को अपना स्वतंत्र कॉडर तैयार करना होगा और यह सरकारी नौकरी की तरह नहीं, बल्कि एक अलग परिपाटी के तहत सुनिश्चित करना होगा। हिमाचल में मंदिर आय बढ़ाने का संकल्प ही तय करेगा कि मंदिर विकास प्राधिकरण के तहत प्रदेश में टैंपल सिटी कैसे विकसित हो सकती है और आय के विविध स्रोत कैसे बढ़ेंगे। मसलन अगर ज्वालाजी या दियोट सिद्ध मंदिर परिसरों को अपनी आमदनी बढ़ानी है, तो इनके साथ स्थानीय निकाय जोड़ते हुए एक विस्तृत इलाके को नई भूमिका में रूपांतरित करना होगा।
कम से कम छह या सात ऐसे मंदिर हैं जो अपने प्रारूप में धार्मिक नगरियों का महत्त्व, दक्षिण भारत की मंदिर व्यवस्था की तरह जोड़ पाएंगे। ये धार्मिक नगरियां उच्च कोटि की टूरिस्ट डेस्टिनेशन, सांस्कृतिक केंद्र, व्यापारिक परिसर, समागम स्थल और आर्थिक रूप से नए निवेश केंद्रों के रूप में भविष्य की आशा जगा सकती हैं। इतना ही नहीं मंदिरों की परिकल्पना और परिक्रमा के नए स्वरूप के साथ ये नगरियां कुछ उत्पादों के जरिए प्रदेश के खान-पान, स्मृति चिन्हों और हिमाचली विशिष्टता को पर्यटकों तक पहंुचा सकती हैं। मसलन ज्वालामुखी के पेड़े, दियोटसिद्ध के रोट, पर्वतीय शुद्धता से परिपूर्ण धूप, शहद, आम पापड़, शाल-टोपी, लकड़ी का सामान, चंबा रूमाल व कांगड़ा पेंटिंग के बड़े उत्पादन केंद्रों के रूप में इन नगरियों की भूमिका बढ़ेगी, जबकि लोक कलाकारों की प्रतिभा के प्रदर्शन को नियमित करके सैकड़ों लोगों को आजीविका कमाने का अवसर भी देंगी। हिमाचल के मंदिर अगर केंद्रीय ट्रस्ट या मंदिर विकास प्राधिकरण के तहत अपना विस्तार करते हुए आमदनी को दो से पांच हजार करोड़ पहुंचाते हैं, तो कल मंदिर रेल परियोजना, रज्जु मार्ग, मनोरंजन पार्क, धार्मिक शहर व्यवस्था, खेल, संस्कृति एवं शैक्षणिक योगदान में आय का यह स्रोत पूरे प्रदेश की स्थिति बदल देगा। राष्ट्रीय स्तर पर अगर दक्षिण भारत के मंदिरों के अलावा शिरड़ी व वैष्णो देवी मंदिरों ने अपनी निजी आय को हजार-हजार करोड़ से ऊपर पहुंचाया है, तो हिमाचल के मंदिरों की आय का सही निवेश जरूरी है और यह भी कि पर्यटन को प्राथमिक मानते हुए मंदिर परिसरों के आवश्यक विकास के लिए एक उच्च स्तरीय गवर्निंग बाडी चाहिए।

सोर्स- divyahimachal


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