सम्पादकीय

हास्यास्पद आपत्ति, राष्ट्रीय प्रतीकों को भी विवाद का विषय बनाने की मानसिकता

Rani Sahu
14 July 2022 3:04 PM GMT
हास्यास्पद आपत्ति, राष्ट्रीय प्रतीकों को भी विवाद का विषय बनाने की मानसिकता
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विपक्षी दल किस तरह निरर्थक, निराधार और देश का समय एवं ऊर्जा बर्बाद करने वाले मुद्दों की ताक में रहने लगे हैं

सोर्स- Jagran

विपक्षी दल किस तरह निरर्थक, निराधार और देश का समय एवं ऊर्जा बर्बाद करने वाले मुद्दों की ताक में रहने लगे हैं, इसका नया प्रमाण है निर्माणाधीन संसद भवन के ऊपर स्थापित अशोक स्तंभ की प्रतिकृति में बने शेरों की मुख मुद्रा को लेकर उठाई गई आपत्ति। पहले विपक्षी नेताओं ने यह प्रश्न उछाला कि इस प्रतिकृति का अनावरण प्रधानमंत्री ने क्यों किया? जब उन्हें यह पता चला कि इस अवसर पर लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के उपसभापति भी उपस्थित थे तो वे ऐसा कुछ खोजने लगे, जिस पर आपत्ति जताई जा सके। अंतत: उनकी दृष्टि इस प्रतिकृति में बने शेरों के मुख पर गई और फिर उन्होंने ऐसी बेतुकी बातों के साथ हंगामा खड़ा कर दिया कि ये तो सारनाथ जैसे नहीं, बल्कि गीर के जंगलों सरीखे शेर लग रहे हैं।
यह स्पष्ट ही है कि गीर का उल्लेख करके यह बताने की कोशिश की गई कि चूंकि प्रधानमंत्री गुजरात से आते हैं, इसलिए वहां के शेरों को महत्ता दी गई। क्या ऐसी बात करने वाले यह बता सकते हैं कि सैकड़ों वर्ष पहले सारनाथ के अशोक स्तंभ पर उकेरे गए शेर देश के किस हिस्से के थे? समझना कठिन है कि इस साधारण से तथ्य की अनदेखी क्यों की गई कि यदि मूल कृति की प्रतिकृति कहीं अधिक बड़े आकार में बनाई जाएगी तो उसमें कुछ न कुछ अंतर दिखना स्वाभाविक है। इसी तरह कई बार इससे भी फर्क पड़ता है कि किसी प्रतिकृति-प्रतिमा को किस एंगिल से देखा जा रहा है अथवा उसकी फोटो कितनी दूरी या निकट से खींची गई।
इससे हास्यास्पद और कुछ नहीं कि एक विपक्षी नेता ने यह भी भांप लिया कि सारनाथ के अशोक स्तंभ वाले शेरों के चेहरे पर सौम्यता दिखती है, लेकिन संसद भवन में स्थापित प्रतिकृति वाले शेर आक्रामक और आदमखोर प्रवृत्ति के दिख रहे हैं। क्या किसी प्रतिकृति में बने शेर के चेहरे पर सौम्यता तलाशने की कोशिश से अधिक और कोई बचकानी बात हो सकती है? यह गनीमत ही रही कि हंसते-मुस्कुराते शेर दर्शाने की मांग नहीं की गई।
भले ही ऐसी बचकानी बातें करने का उद्देश्य प्रधानमंत्री पर निशाना साधना हो, लेकिन इससे कुल मिलाकर राष्ट्रीय प्रतीकों को भी जानबूझकर विवाद का विषय बनाने की मानसिकता ही उजागर हुई। इस मानसिकता का परिचय उसी समय से दिया जा रहा है, जबसे नए संसद भवन के निर्माण की पहल की गई। यह किसी से छिपा नहीं कि पहले किस तरह नए संसद भवन के निर्माण को अनावश्यक बताया गया और फिर किस प्रकार बार-बार अदालतों का दरवाजा खटखटाया गया। यह काम केवल इस ईर्ष्‍या के कारण किया गया ताकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नए संसद भवन के निर्माण का श्रेय न मिलने पाए।


Rani Sahu

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